अवैध निर्माण का नतीजा है गिरती इमारतें, दिल्ली में कभी भी हो सकता है बड़ा हादसा

दिल्ली में कई ऐसे इलाके हैं जहां कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है। नियमों और सुरक्षा को दरकिनार कर धड़ल्ले से फ्लैट बनाए जा रहे हैं।

By Amit MishraEdited By: Publish:Sun, 22 Jul 2018 05:26 PM (IST) Updated:Sun, 22 Jul 2018 08:03 PM (IST)
अवैध निर्माण का नतीजा है गिरती इमारतें, दिल्ली में कभी भी हो सकता है बड़ा हादसा
अवैध निर्माण का नतीजा है गिरती इमारतें, दिल्ली में कभी भी हो सकता है बड़ा हादसा

नई दिल्ली [जेएनएन]। दिल्ली-एनसीआर में एक अदद आशियाने की चाह में लोग इस कदर गुमराह हो जाते हैं कि उन्हें जिंदगी की फिक्र तक नहीं रहती। आंख तब खुलती है जब कोई बड़ा हादसा हो जाता है और उसके बाद सामने आती है परत दर परत सच्चाई। दिल्ली-एनसीआर के कई इलाकों में नियमों और सुरक्षा को दरकिनार कर धड़ल्ले से फ्लैट बनाए जा रहे हैं और इनके फेर में फंस जाते हैं सस्ते आशियाने की तलाश में भटकते लोग।

सुरक्षित नहीं हैं इमारतें 

ग्रेटर नोएडा के शाहबेरी में हुए हादसे को कौन भूल सकता है। सच्चाई तो ये है कि शाहबेरी में निर्माणाधीन छह मंजिला इमारत का ढहना एक बानगी भर है। यह चेतावनी है कि यदि समय रहते ध्यान नहीं दिया तो आने वाले साल दिल्ली-एनसीआर के लिए भारी होंगे। बात सिर्फ एनसीआर के इलाकों की नहीं है। दिल्ली में भी ऐसे इलाकों की कमी नहीं हैं, जहां लाखों परिवार मौत की छांव में जिंदगी गुजार रहे हैं। ग्रेटर नोएडा और गाजियाबाद में इमारतों के गिरने की जो घटना हुई है, उसकी पुनरावृत्ति दिल्ली के कई इलाकों में भी हो सकती है।

भवन निर्माण में कई खामियां 

संगम विहार और जामिया नगर में लाखों परिवार ऐसे मकानों में रह रहे हैं, जो सुरक्षा मानकों पर किसी भी स्तर पर खरे नहीं उतरते। जहां दो-तीन मंजिला भवन बनाने की अनुमति है, वहां लोगों ने पांच-छह मंजिला भवन बना लिए हैं। इन मकानों की नींव बनाने लेकर दीवारों की मोटाई तक का ध्यान नहीं रखा गया है, वहीं इन भवनों का नक्शा भी अधिकृत रूप से स्वीकृत नहीं कराया गया है। भवन के निर्माण से पहले मिट्टी की जांच भी नहीं कराई जाती है, वहीं भवन का निर्माण किए जाने के दौरान उसकी मजबूती का ख्याल रखने के बजाय सिर्फ उसकी ऊंचाई पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।

हादसों को दावत 

जो लोग स्वयं के रहने के लिए मकान बना रहे हैं, वे भी किराया वसूलने के चक्कर में भवन की ऊंचाई को प्राथमिकता देते हैं। वहीं, जो लोग फ्लैट बनाकर बेचने के लिए इमारतें खड़ी कर रहे हैं, वे किसी भी प्रकार के सुरक्षा मानकों का ख्याल नहीं रखते। ऐसे में इन इमारतों में रहने वाले लोगों की सांसों की डोर कब जिंदगी के हाथ से फिसलकर मौत के हाथ में आ जाए, यह उन लोगों को भी नहीं पता, जो ऐसे अवैध रूप से निर्मित भवनों में रह रहे हैं।

सुरक्षा की अनदेखी 

अवैध रूप से बनाए जाने वाले मकानों को लोग सस्ते के लालच में खरीद लेते हैं। जो लोग पांच-छह मंजिला इमारत में फ्लैट खरीदते हैं, वे भी सस्ते के चक्कर में उसकी मजबूती, सुरक्षा और सही मानकों के अनुरूप बने होने की बात की अनदेखी करते हैं। सस्ते के लालच में लोग गलत तरह की प्रॉपर्टी में निवेश करने के साथ हमेशा के लिए मौत के साये में रहने का जोखिम उठाने से भी नहीं चूक रहे हैं।

बड़ी मुसीबत हैं अवैध निर्माण 

अवैध निर्माण को रोकने वाली संस्थाओं के अधिकारी पूरी तरह से आंखें बंद कर बैठे हुए हैं। जिन लोगों पर अवैध निर्माण को रोकने की जिम्मेदारी है वे स्वार्थ के चलते निर्माणाधीन क्षेत्र में जाकर जांच करने की जहमत नहीं उठाते हैं। इस कारण अवैध रूप से बनने वाली इमारतों की संख्या और ऊंचाई लगातार बढ़ती जा रही है।

सरकारी जमीन पर घनी आबादी

अधिकारियों की लापरवाही का आलम यह है कि एक तरफ जहां वे अवैध निर्माण को रोकने के लिए कार्रवाई नहीं कर रहे हैं, वहीं सरकारी जमीन को भी कब्जे से बचाने में नाकाम हो रहे हैं। एक-एक करके बनाए जाने वाले अवैध मकानों के कारण लगातार घनी आबादी अवैध रूप से सरकारी जमीन पर बसती जा रही है।

वोट बैंक का लालच 

अवैध निर्माण को नजरअंदाज करने वाले अधिकारी शायद किसी बड़ी घटना के इंतजार में हैं। दक्षिणी दिल्ली के विभिन्न इलाकों में अवैध निर्माण रोकने की जिम्मेदारी दिल्ली पुलिस, डीडीए, एसडीएमसी, वन मंत्रालय की है। अपने क्षेत्र में होने वाले निर्माण को वोट बैंक के लालच में पार्षद, विधायक और सांसद भी अनदेखा कर देते हैं। 

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