कागजों में सफाई करना छोड़िए, कचरे के पहाड़ों पर ध्यान दीजिए: बीएस वोहरा

ईस्ट दिल्ली आरडब्ल्यूए ज्वाइंट फोरम के अध्यक्ष बीए वोहरा ने दिल्ली में कूड़े की समस्या के मुद्दे पर प्रकाश डाला है। उनका कहना है कि कागजी कार्रवाइयां कर दिल्ली को स्वच्छ नहीं बनाया जा सकता बल्कि इसे जमीनी स्तर पर लागू करना होगा।

By Shivam YadavEdited By: Publish:Wed, 17 Aug 2022 11:16 AM (IST) Updated:Wed, 17 Aug 2022 11:16 AM (IST)
कागजों में सफाई करना छोड़िए, कचरे के पहाड़ों पर ध्यान दीजिए: बीएस वोहरा
ये तीनों पहाड़ राजधानी की सीमाओं पर हैं। फाइल फोटो

नई दिल्ली [बीएस वोहरा]। राजधानी में जब तक तीन कूड़े के पहाड़ खड़े हैं, तब तक स्वच्छता की कल्पना करना बेमानी है। ये तीनों पहाड़ राजधानी की सीमाओं पर हैं। ऐसे में इनसे एनसीआर भी अछूता नहीं है। इन तीनों पहाड़ में 280 लाख टन कूड़ा जमा होने का अनुमान है। हाल में इसे खत्म करने को लेकर कुछ प्रयास शुरू हुए हैं। लेकिन, जिस गति से काम चल रहा है, उसमें कई साल लगने का अंदेशा है।

दिल्ली और एनसीआर में आबादी लगातार बढ़ रही है। इस कारण कूड़े की उत्पत्ति में कमी तो नहीं आएगी। अभी दिल्ली में प्रतिदिन 11 हजार टन नया कूड़ा निकलता है। आगे इसमें वृद्धि ही होगी। इसलिए कूड़े के निस्तारण में तेजी से ही पहाड़ को कम या खत्म किया जा सकता है। अभी स्थिति यह है कि ट्रामेल मशीनों के जरिये जितना कूड़ा निस्तारित हो रहा है, उसकी खपत भी नहीं हो पा रही है।

स्वच्छ शहर की कल्पना बहुत मुश्किल

राजमार्ग और ढांचागत कार्यों में इसका प्रयोग बढ़ाना चाहिए। ऊर्जा और खाद उत्पादन के लिए इनका अधिकाधिक प्रयोग करना होगा। इसके साथ पूरी दिल्ली में कहीं भी चले जाएं, खुले हुए डलावघर अवश्य नजर आएंगे, जिनमें कूड़ा बाहर तक फैला हुआ होगा। कुछ डलावघरों में कई दिनों तक कूड़ा सड़ता हुआ भी मिल जाएगा। कूड़ा उठाने के लिए दिनभर में एक बार गाड़ी आती है। जितना कूड़ा मिला, उतना लेकर गाड़ी निकल जाती है। बाकी सड़क पर या डलावघर में ही पहुंचता है।

कई जगहों पर खाली प्लाट भी डलावघर समान ही हैं। बरसात में नाले और नालियां ओवरफ्लो हो जाते हैं। इनका गंदा पानी सड़कों पर और कुछ स्थानों पर तो घरों में भी पहुंच जाता है। राजधानी की जीवनरेखा यमुना में 47 प्रतिशत सीवेज का गंदा पानी जाता है। इन स्थितियों में स्वच्छ शहर की कल्पना बहुत मुश्किल है।

कूड़ा निस्तारण की हो व्यापक व्यवस्था

स्वच्छता में सबसे बड़ी बाधा इच्छाशक्ति की है। सरकार और नगर निगम के स्तर पर इसका घोर अभाव है। इच्छाशक्ति हो तो शहर को स्वच्छ बनाने का तरीका इंदौर से सीखा जा सकता है। इंदौर में घर-घर से कूड़ा उठाने की व्यवस्था है। कूड़ा निस्तारण वहां बेहतर हो रहा है। जुर्माने का प्रविधान है। ये उपाय राजधानी और एनसीआर में क्यों नहीं किए जा सकते हैं। कूड़ा उठाने के लिए दिन में एक बार ही वाहन क्यों आएं। ये पालियों में दो से तीन बार आ सकते हैं। 

सोसायटियों को कूड़ा निस्तारण अपने स्तर पर करने का जिम्मा दिया जाए। अनधिकृत इलाकों से कूड़ा उठाने के लिए व्यापक प्रबंध किए जा सकते हैं। हर वर्ष नालों और नालियों की सफाई पर करोड़ों रुपये खर्च होते हैं। लेकिन असल में सफाई हो नहीं पाती है। सरकारी विभाग कागज पर सफाई करते हैं।

अगर सब कुछ सही से हो तो फिर कोई समस्या ही न खड़ी हो। सरकार और नगर निगम को यह भी सोचना पड़ेगा कि सफाई पर अधिक बजट आवंटन कर दिया जाए और इसका परिणाम सुखद हो तो अस्पतालों पर मरीजों का बोझ कम होगा। स्वास्थ्य सेवाओं पर कम खर्च होगा।

स्वच्छता तो मूल है। इसका निवारण तो हर हाल में करना होगा। जनता के बीच जागरूकता की कमी स्वच्छता की राह में रोड़ा है। लोग अपना घर तो साफ रखते हैं लेकिन बाहर कूड़ा फैला हो तो उन्हें इससे दिक्कत महसूस नहीं होती है। पिछले कुछ सालों में जागरूकता आई है लेकिन उसका प्रभाव काफी सीमित है। इसे व्यापक करने की आवश्यकता है।

स्वदेश कुमार से बातचीत पर आधारित

बीएस वोहरा

अध्यक्ष, ईस्ट दिल्ली आरडब्ल्यूए ज्वाइंट फोरम

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