केजरीवाल सरकार को झटका, सरकारी स्कूलों के 40% छात्र-छात्राएं कुपोषण के शिकार

मिड-डे मील से बच्चों को उपयुक्त आहार नहीं मिल पा रहा है। इससे सिर्फ बच्चों का पेट भर रहा है। वे मिड-डे मील की व्यवस्था के तहत मिलने वाले भोजन से भी ऊब गए हैं।

By JP YadavEdited By: Publish:Fri, 07 Sep 2018 09:27 AM (IST) Updated:Fri, 07 Sep 2018 09:49 AM (IST)
केजरीवाल सरकार को झटका, सरकारी स्कूलों के 40% छात्र-छात्राएं कुपोषण के शिकार
केजरीवाल सरकार को झटका, सरकारी स्कूलों के 40% छात्र-छात्राएं कुपोषण के शिकार

नई दिल्ली (जेएनएन)। एक पुरानी कहावत के मुताबिक इंसान के जीवन में जो सात सुख हैं उनमें
से पहला है निरोगी काया। धन, ऐश्वर्य और परिवार भी बाद में आता है। सही भी है, अगर शरीर स्वस्थ और निरोगी नहीं होगा तो जीवन का हर सुख फीका नजर आएगा। और शरीर को तंदुरुस्त रखने के लिए जरूरी है पौष्टिक आहार। ईश्वर ने शरीर की संरचना कुछ ऐसे की है कि प्रत्येक अंग के लिए अलग खनिज, प्रोटीन और विटामिन लाभकारी है। तभी तो शरीर के संपूर्ण विकास के लिए संतुलित आहार लेने की सलाह दी जाती है। खान-पान में लापरवाही का अर्थ सीधे-सीधे सेहत से खिलवाड़ करना है।

बच्चों के लिए संपूर्ण आहार
नवजात शिशुओं के लिए जीवन के शुरुआती छह महीनों में मां का दूध ही सर्वोत्तम होता है। इसके बाद दो वर्ष की उम्र तक हल्के भोजन के साथ मां का दूध अनिवार्य रूप से दिया जाए। बढ़ते बच्चों के भोजन में दूध, पनीर, दही और पालक व ब्रॉकली शामिल किए जाने चाहिए। इनमें कैल्शियम होता है जो हड्डियों के विकास के लिए जरूरी है। गेहूं, ब्राउन राइस, वनस्पति तेल, आलू, शकरकंद और केले में मौजूद कार्बोहाइड्रेट और वसा बच्चों की ऊर्जा की जरूरत पूरी करेगा। मांसपेशियों के विकास और एंटीबॉडीज को बनाने में अंडा, दूध और मछली जैसे खाद्य पदार्थ बहुत जरूरी होते हैं। शरीर के सुचारू रूप से काम करने और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए विटामिन युक्त रंग-बिरंगे फल व सब्जियां आहार में शामिल करना चाहिए।

वयस्कों के लिए
फल, सब्जी, दालों, पूर्ण अनाज (बिना प्रोसेस किए भुट्टे के दाने, जौ-बाजरा, ओट्स, गेहूं, ब्राउन राइस) भोजन में शामिल करें। एक दिन में काम से कम 400 ग्राम सब्जियां और फल खाएं (पांच भागों में)। आलू, शकरकंद और स्टार्च युक्त अन्य जड़ें। फलों और सब्जियों की श्रेणी में नहीं आती हैं। अनसैचुरेटेड फैट वाले खाद्य पदार्थ (मछली, एवोकाडो, दाने, सूरजमुखी का तेल, ओलिव ऑयल) सैचुरेटेड फैट वाले खाद्य सामग्री (मांस, बटर, पाम व नारियल तेल, क्रीम, चीज) के मुकाबले बेहतर होते हैं। दिन में 5 ग्राम से अधिक नमक का सेवन न करें। दिनभर में 7-8 चम्मच शक्कर ले सकते हैं। कोल्ड ड्रिंक, चॉकलेट और अन्य मीठे पदार्थों का सेवन कम करें।

ऋतुजा दिवेकर का कहना है कि सेहत को लेकर लोग परेशान हैं क्योंकि हमने अपने घरों में मिलने वाले और स्थानीय अनाजों और खाद्य पदार्थों की कद्र ही नहीं की। अब देखिए कैसे हल्दी को न्यूयॉर्क में वजन घटाने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। और कैसे सैनफ्रांसिस्को के पांच सितारा होटल भी फ्रेंच टोस्ट पर मेपल सिरप की बजाय घी लगा रहे हैं। 

शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत बच्चों को स्कूल की तरफ आकर्षित करने व भरपूर पोषण उपलब्ध कराने के लिए मिड-डे मील की व्यवस्था की गई है। दिल्ली के स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को मिलने वाला मिड डे मील महज औपचारिकता पूरी करता नजर आ रहा है। इससे बच्चों का सिर्फ पेट भर रहा है, उन्हें भरपूर पोषण नहीं मिल पा रहा है। दिल्ली स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय ने स्कूल स्वास्थ्य योजना के अंतर्गत सरकारी स्कूलों में पढ़ रहे बच्चों में पोषण-कुपोषण की स्थिति जानने के लिए गत वर्ष एक अध्ययन किया था। तीन लाख से अधिक बच्चों को इसमें शामिल किया गया था।

रिपोर्ट बीते महीने ही जारी हुई, जिसके अनुसार सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले 40 फीसद से अधिक बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। स्कूलों में मिड-डे मील के बाद भी बच्चों के कुपोषण की स्थिति को लेकर एक प्रिंसिपल कहते हैं कि इस अध्ययन पर सवाल खड़े नहीं किए जा सकते हैं, लेकिन इसके लिए सिर्फ मिड-डे मील को ही दोष नहीं दिया जा सकता हैं।

वहीं एक प्रधानाचार्य कहते हैं कि मिड-डे मील के सहारे बच्चों के कुपोषण से नहीं लड़ा जा सकता है। दिल्ली में ऐसे बच्चों की संख्या बहुत अधिक है, जो सुबह खाली पेट स्कूल आते हैं और मिड-डे मील से ही अपना पेट भरते हैं। स्कूलों में मिड-डे मील की पौष्टिकता को लेकर सरकारी विद्यालय शिक्षक संघ के महासचिव अजय वीर यादव कहते हैं कि इसी उम्र में बच्चों की वृद्धि और विकास होता है। 

मिड-डे मील से बच्चों को उपयुक्त आहार नहीं मिल पा रहा है। इससे सिर्फ बच्चों का पेट भर रहा है। वे मिड-डे मील की व्यवस्था के तहत मिलने वाले भोजन से भी ऊब गए हैं। अजय कहते हैं कि सरकार ने दावा किया था कि वह मिड-डे मील में दूध और केले की व्यवस्था करेगी, लेकिन तीन साल बीतने के बाद भी इस घोषणा पर काम नहीं हुआ है। बच्चों को अगर स्वस्थ रखना है तो उन्हें पौष्टिक आहार व संतुलित भोजन उपलब्ध कराया जाए, जिसमें चना, दूध, केला भी शामिल हो।

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