निजीकरण फिर भी तय समय में नहीं पहुंचती कैट्स एंबुलेंस

राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली : गंभीर मरीजों और हादसा पीड़ितों को जल्द अस्पताल पहुंचाने के मकसद से कैट्स एं

By JagranEdited By: Publish:Sat, 21 Apr 2018 06:57 PM (IST) Updated:Sat, 21 Apr 2018 06:57 PM (IST)
निजीकरण फिर भी तय समय में नहीं पहुंचती कैट्स एंबुलेंस
निजीकरण फिर भी तय समय में नहीं पहुंचती कैट्स एंबुलेंस

राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली : गंभीर मरीजों और हादसा पीड़ितों को जल्द अस्पताल पहुंचाने के मकसद से कैट्स एंबुलेंस सेवा को अत्याधुनिक बनाने की कवायद ध्वस्त हो गई। मरीजों के पहुंचने से पहले अस्पतालों को अलर्ट करने की योजना तो अब तक शुरू नहीं हो पाई। दिक्कत यह है कि कैट्स एंबुलेंस सेवा का परिचालन निजी हाथों में सौंपने के बावजूद निर्धारित समय में एंबुलेंस मरीज की मदद के लिए नहीं पहुंच पातीं। शर्तो पर खरा नहीं उतर पाने के कारण दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य विभाग के कैट्स एंबुलेंस सेवा ने संचालक कंपनी का बकाया भुगतान रोक दिया दिया है। अब संचालक कंपनी ने आर्बिट्रेटर में आवेदन कर बकाया भुगतान कराने की गुहार लगाई है।

मौजूदा समय में कैट्स एंबुलेंस सेवा के बेड़े में 265 एंबुलेंस हैं। स्वास्थ्य विभाग ने वर्ष 2016 में बीवीजी- यूकेएएस इमरजेंसी मेडिकल सर्विस नामक कंपनी को तीन साल के लिए एंबुलेंसों के परिचालन और रखरखाव की जिम्मेदारी सौंपी। कैट्स एंबुलेंस सेवा के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि जुलाई 2016 से संचालक कंपनी ने परिचालन की जिम्मेदारी अपने हाथ में ली। इसका मकसद कैट्स एंबुलेंस के परिचालन को बेहतर बनाना था। ताकि जरूरतमंदों के कॉल करने पर एंबुलेंस कम से कम समय में मौके पर पहुंच सके।

इस समझौते में तय किया गया है कि 95 फीसद एंबुलेंस प्रतिदिन सड़क पर उतरना जरूरी है। साथ ही 15 से 25 मिनट में एंबुलेंस को मौके पर पहुंचना आवश्यक है। इसके तहत प्रावधान है कि 80 फीसद कॉल पर एंबुलेंस को औसतन 15 मिनट में और 100 फीसद कॉल पर मरीज की मदद के लिए औसतन 25 मिनट में पहुंचना जरूरी है। इसके अलावा सभी एंबुलेंस में दवाएं और जरूरी चिकित्सा उपकरण सुनिश्चित करना संचालक कंपनी की जिम्मेदारी है। सेवा शर्तो का उल्लंघन होने पर जुर्माने का प्रावधान है।

कैट्स एंबुलेंस सेवा के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि यह देखा गया है कि 265 एंबुलेंस में से पहले सड़कों पर सिर्फ 220-230 एंबुलेंस ही सड़क पर उतर पा रही थीं। करीब 35-45 एंबुलेंस खड़ी रहती थीं। इन दिनों करीब 240 एंबुलेंस का परिचालन हो पा रहा है। इस तरह 25 एंबुलेंस अब भी खड़ी रहती हैं। जबकि प्रतिदिन औसतन 252 एंबुलेंस सड़क पर होनी चाहिए। कई एंबुलेंस में उपकरणों की भी कमी होती है। इन कारणों से मरीजों को उम्मीद के मुताबिक सुविधा नहीं मिल पा रही है। इसलिए कंपनी का करीब 30 फीसद भुगतान रोका गया है। एक एंबुलेंस पर हर महीने करीब 1.35 लाख रुपये का खर्च

संचालक कंपनी को हर महीने प्रति एंबुलेंस 1.35 लाख रुपये भुगतान का प्रावधान है। इस तरह हर महीने 265 एंबुलेंस के संचालन के लिए 3.57 करोड़ का बिल तैयार होता है। इसमें से करीब 1.02 करोड़ कैट्स एंबुलेंस सेवा की ओर से नियुक्त 460 कर्मचारियों (130 पैरामेडिकल और 330 चालक) के वेतन के रूप में काट लिया जाता है। कर्मचारियों का वेतन काटने के बाद संचालक कंपनी को हर महीने 2.56 करोड़ व साल में 30.71 करोड़ रुपये भुगतान का प्रावधान है। कैट्स एंबुलेंस सेवा के अनुसार संचालक कंपनी द्वारा शर्तो के अनुसार मरीजों को सेवा नहीं दे पाने के कारण भारी जुर्माना किया गया है। इसलिए संचालक कंपनी का 30 फीसद भुगतान रोका गया है। इस बारे में संचालक कंपनी के अधिकारियों से भी बात करने की कोशिश की गई पर बात नहीं हो पाई पर इस पूरे मामले से एक बात तय है कि निजीकरण का लोगों को फायदा नहीं मिल पा रहा है।

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