जानिए, दिल्ली के सियासी चक्रव्यूह में किसके बुने जाल में फंस गई AAP

संसदीय सचिव में मामले में उठा बवाल क्‍या 21 विधायकों की सदस्‍यता तक सिमटा है। नहीं, इसके बड़े राजनीतिक निहितार्थ होंगे।

By Ramesh MishraEdited By: Publish:Wed, 15 Jun 2016 10:16 AM (IST) Updated:Thu, 16 Jun 2016 10:26 AM (IST)
जानिए, दिल्ली  के सियासी चक्रव्यूह में किसके बुने जाल में फंस गई AAP

नई दिल्ली [ रमेश मिश्र ] आम आदमी पार्टी के 21 विधायकों पर लटक रही तलवार ने कई सवाल एक साथ खड़े कर दिए हैं। यह न केवल दिल्ली में केजरीवाल सरकार के अस्तित्व से जुड़ा मामला है, बल्कि एक व्यवस्था का भी प्रश्न है। यह संसदीय परंपरा का मामला है। यह आम आदमी पार्टी के अस्तित्व से जुड़ा मामला है। दिल्ली में संसदीय सचिव को लेकर उठा राजनीतिक तूफान के क्या-क्या होंगे असर? यह जानने की बेचैनी इस महादेश को है।

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यहां एक बड़ा सवाल, क्या सच में केजरीवाल सरकार ने संसदीय सचिव को नियुक्ति कर एक बड़ी संसदीय परंपरा को तोड़ दिया है? क्या सही मायने में एक संवैधानिक संकट की स्थिति पैदा हो गई है? क्या दिल्ली सरकार को खतरा उत्पन्न हो गया है? इसका आप की राजनीति पर क्या असर होगा? इन सब को कुरेदती यह रिपोर्ट।

महफूज है दिल्ली सरकार, AAP की प्रतिष्ठा दांव पर

यह कयास लगाया जा रहा है कि अब दिल्ली में आप की सरकार महफूज नहीं है, लेकिन अगर आंकड़ों में तो तस्वीर साफ है। आप सरकार के पास सदन में विधायकों की पर्याप्त संख्या है। ऐसे में यह कहना लाजमी है कि दिल्ली में केजरीवाल सरकार पर कोई महासंकट नहीं है।

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आप की सरकार पूरी तरह से महफूज है-सुरक्षित है। 21 विधायकों की सदस्यता जाने के बाद भी आप की सदन में पूर्ण बहुमत है, जो सरकार चलाने के लिए जरूरी है। लेकिन ऐसा भी नहीं कि इसकी आंच से आप बच पाएगी। इसके असर दूरगामी होंगे।

पहला, पंजाब में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर केजरीवाल की निगाह पंजाब में थी। उनकी पूरी सक्रियता पंजाब में है, लेकिन इस मामले के बाद उन्हें अपना ध्यान दिल्ली पर लगाना होगा। अब वह एक लंबी कानूनी दावपेंच की प्रक्रिया में उलझ कर रह जाएंगे। विपक्ष की मंशा भी यही है कि तेजी से भाग रहे आप के घोड़े को लगाम दिया जाए और वह काफी हद तक सफल भी होते दिख रहे हैं।

दूसरे, अगर यह मान लिया जाए कि 21 विधायकों की सदस्यता निर्वाचन आयोग खत्म कर देता है। न्यायपालिका भी आयोग के फैसले को सही ठहरा देती है। तो इसका राजनीतिक असर क्या होंगे। यह एक बड़ा राजनीतिक सवाल है। यह आप की प्रतिष्ठा से जुड़ा मामला होगा। क्यों कि अगर इन विधायकों की सदस्यता खत्म होती है, तो यहां होने वाले चुनावों में केजरीवाल सरकार को अपनी प्रतिष्ठा और साख को बचानी होगी। अगर आप इन 21 स्थानों पर पांच सीटों पर भी हार का सामना करती है, तो उसके राजनीतिक भविष्य पर इसका असर जरूर पड़ेगा। ऐसे में विपक्ष उन पर हावी होने की का काई अवसर नहीं छोड़ेगा।

भाजपा ने अपने कार्यकाल में भी बनाया संसदीय सचिव

वर्ष 1993 में जब दिल्ली में भाजपा की सरकार बनी और मदनलाल खुराना मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने संसदीय सचिव की नियुक्ति नहीं की। लेकिन 1996 में उन पर हवाला मामले में आरोप सामने आने के बाद साहिब सिंह वर्मा को मुख्यमंत्री बनाया गया तो उन्होंने पार्टी विधायक नंदकिशोर गर्ग को सरकार को पहला संसदीय सचिव नियुक्त किया।

दिल्ली की पहली बीजेपी सरकार बनने के बाद से संसदीय सचिव बनाने की परंपरा चल रही है और इस पद पर बैठे विधायकों को सरकार की ओर से ऑफिस, बंगला व अन्य सुविधाएं दी जाती रही हैं। जानकार कहते हैं कि इनकी सदस्यता इसलिए खतरे में नहीं पड़ पाई, क्योंकि बीजेपी और कांग्रेस में ‘आपसी-सहमति’ रही और इस मसले पर कोर्ट या अन्य जगह इनके खिलाफ कोई याचिका दायर नहीं हुई।

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