31 साल बीत गए न्याय की आस में, अब तो सब्र का बांध भी टूट रहा है

क नवंबर 1984 के उस खौफनाक मंजर को भले ही 31 वर्ष बीत गए, लेकिन पीड़ित परिवारों के जहन मे अभ भी उसकी यादें ताजा हैं। चारों ओर हाहाकार और बर्बादी के बीच सो रही सियासत ने सबको बदहवास कर दिया था।

By Amit MishraEdited By: Publish:Sun, 01 Nov 2015 07:52 PM (IST) Updated:Mon, 02 Nov 2015 07:50 AM (IST)
31 साल बीत गए न्याय की आस में, अब तो सब्र का बांध भी टूट रहा है

पश्चिमी दिल्ली [भगवान झा] एक नवंबर 1984 के उस खौफनाक मंजर को भले ही 31 वर्ष बीत गए, लेकिन पीड़ित परिवारों के जहन मे अभ भी उसकी यादें ताजा हैं। चारों ओर हाहाकार और बर्बादी के बीच सो रही सियासत ने सबको बदहवास कर दिया था। किसी की मांग उजड़ गई तो किसी का बेटा नहीं रहा। घटना के बाद भी इस पर सिर्फ सियासत होती रही। लोग न्याय की मांग करते रहे और सरकारें उन्हें दिलासा देती रही।

आम आदमी पार्टी की ओर से तिलक विहार मे एक श्रद्धांजलि सभा के दौरान पीडि़त परिवार के परिजनो को पांच-पांच लाख रुपये के चेक दिए गए। इस दौरान कई महिलाओ के आंसू रुकने का नाम नही ले रहे थे। उनकी सिर्फ एक ही मांग थी, दोषियो को सजा दो। हमें न्याय चाहिए। पैसों से जख्मों को नहीं भरा जा सकता। जख्म तो न्याय मिलने के बाद ही भर पाएगा।

दंगों ने कई परिवारों को बर्बाद किया। लोग रोटी को मोहताज हो गए। आज काफी कुछ बदला है। लोगो की स्थिति में भी सुधार हुआ है, लेकिन एक सवाल सबके जहन में है, आखिर ऐसा क्यों हुआ हमारे साथ। हमने किसी का क्या बिगाड़ा था। राजनीति से कोसों दूर हम अपने परिवार में हंस-खेल रहे थे, लेकिन इस दंगे ने सब कुछ एक झटके में ही तहस-नहस कर दिया।

मुझे आज भी सब कुछ याद है: सुखचैन कौर

जिस दिन यह दंगा हुआ उस दिन हमारे यहां मेहमान आए थे। मेरी बेटी भी आई थी। कुछ लोगों का हुजूम घर पर आया और देखते ही देखते मेरे परिवार के 13 लोगों को जिंदा जला दिया। इसमें कई मेहमान भी थे। मै बदहवास हो चुकी थी। आज भी उस खौफनाक मंजर को नही भूल पा रही हूं। भरापूरा परिवार चंद लम्हों मे ही बिखर गया।

सब राजनीतिक साजिश का हिस्सा था: महेंद्र कौर

यह सब राजनीतिक साजिश का हिस्सा था। मेरे पति रतन सिंह को जिंदा जला दिया गया। मैंने दंगाइयो से काफी विनती की, लेकिन किसी ने एक न सुनी। आज 31 वर्ष बीत चुके हैं। स्थिति भी काफी बदली है, लेकिन हमें उस दिन का इंतजार है जब आरोपियो को सजा मिलेगी।

क्या कसूर था हमारा, अब तक नहीं मिला जवाब: मंजीत कौर

चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ था। सभी एक दूसरे को मारकाट रहे थे। मेरे परिवार के एक सदस्य को भी जिंदा जला दिया। परिवार को संभालने मे काफी वक्त लगा। क्या कसूर था हम लोगों का। आजतक किसी ने इस सवाल का जवाब नही दिया है।

टूटने लगा है सब्र का बांध: राजेंद्र कौर

दंगे के बाद कुछ राजनीतिक दल इस पर सिर्फ राजनीति कर रहे हैं। हमें इस पर राजनीति नहीं चाहिए बल्कि आरोपियो के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई चाहिए। इन 31 वर्षों में हमने बहुत कष्ट झेले। मन को मनाया कि आज नही तो कल हमें न्याय मिलेगा। अब तो सब्र का बांध भी टूटने लगा है।

chat bot
आपका साथी