आखिर तक हैदराबाद को खुद पर भरोसा था

रॉयल चैलेंजर्स बेंगलूर लोगों की पसंद थी। इनमें से कई हजार हमें चिन्नास्वामी स्टेडियम में दिखे, जबकि लाखों हमारी नजर के सामने नहीं थे। लेकिन उनके दिल बेंगलूर के लिए धड़क रहे थे। बहुत से प्रशंसकों ने इस हार को व्यक्तिगत क्षति के तौर पर लिया होगा। इनके दिलो दिमाग

By sanjay savernEdited By: Publish:Mon, 30 May 2016 06:40 PM (IST) Updated:Mon, 30 May 2016 06:48 PM (IST)
आखिर तक हैदराबाद को खुद पर भरोसा था

(शास्त्री का कॉलम)

रॉयल चैलेंजर्स बेंगलूर लोगों की पसंद थी। इनमें से कई हजार हमें चिन्नास्वामी स्टेडियम में दिखे, जबकि लाखों हमारी नजर के सामने नहीं थे। लेकिन उनके दिल बेंगलूर के लिए धड़क रहे थे। बहुत से प्रशंसकों ने इस हार को व्यक्तिगत क्षति के तौर पर लिया होगा। इनके दिलो दिमाग में बेंगलूर की टीम एक सोने के हंस की तरह थी जो आइपीएल नाम के तालाब को तैरते हुए आगे बढ़ रही थी। लेकिन सनराइजर्स हैदराबाद के भीषण आक्रमण के बाद अब यह हंस भाव शून्य हो गया है।

चाहे जिंदगी हो या खेल, नायकों के लिए कुछ ऐसी ही अनुभूति होती है। इस सत्र में विराट कोहली बेशक नायक थे। सुपरस्टार्स का सुपरस्टार, जिसने क्रिकेट में वो राग छेड़ी जो हमने अपने जीवन में कभी नहीं सुनी थी। फाइनल में बेंगलूर के गेंदबाज बेसुरे साबित हुए, लेकिन समर्थक अपनी-अपनी सीटों से चिपके रहे। उन्हें यकीन था कि अंजाम उनके मुताबिक होगा। ये टीम बल्लेबाजी में जितनी हिट हुई गेंदबाजी में उतनी ही फ्लॉप। शायद वॉटसन के बजाय अब्दुल्ला को आजमाया जाना चाहिए था। या फिर सचिन बेबी की जगह सरफराज को मौका दिया जाता।

हैदराबाद की कहानी एक ऐसी टीम की कहानी है जिसे खुद पर भरोसा था। जिसकी नींव गेंदबाजी थी। टीम के खिलाड़ी स्टील से बनी बीम की तरह थे, जिन्होंने आकाश को छूती उम्मीदों को मजबूती से उठा रखा था। डेविड वार्नर मुख्य सूत्रधार थे, लेकिन मुस्तफिजुर और भुवनेश्वर का योगदान भी कम नहीं था।

खिताब की दावेदार रहीं दो अन्य टीमों ने भी फाइनल देखा होगा। हालांकि मुंबई को होम ग्र्राउंड बदले जाने से काफी नुकसान उठाना पड़ा। जबकि कोलकाता ने काफी कुछ यूसुफ पठान के कंधों पर छोड़ दिया था। इससे पता चलता है कि आइपीएल में सभी टीमों के लिए समान मौका होता है। तभी तो गुजरात लायंस ने पहली बार में ही प्लेऑफ तक का सफर तय किया। दूसरी ओर दिल्ली डेयरडेविल्स ने भी सभी टीमों से हिसाब बराबर किया। पुणे और पंजाब के लिए भी कुछ यादगार पल रहे। धौनी ने आखिरी में सिर उठाकर आइपीएल-9 से विदाई ली। मुरली विजय ने कप्तानी में छाप छोड़ी। इस बार कुछ स्कोर 200 के पार गए। छक्के भी कम ही लगे और ज्यादातर स्कोर 160 से 170 के बीच रहे। लेकिन सिर्फ कोहली और वार्नर ही थे जो हमें ये कहने से रोक रहे हैं कि यह आइपीएल गेंदबाजों का बदला था।

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