बल्लेबाज बनना चाहते थे नितिन मेनन, लेकिन खिलाड़ियों को नचाने लगे उंगलियों पर

अंपायर नितिन मेनन बतौर बल्लेबाज अपना करियर शुरू करना चाहते थे लेकिन पिता के कहने पर वे अंपायरिंग के प्रोफेशन में चले गए।

By Vikash GaurEdited By: Publish:Tue, 30 Jun 2020 07:55 AM (IST) Updated:Tue, 30 Jun 2020 07:55 AM (IST)
बल्लेबाज बनना चाहते थे नितिन मेनन, लेकिन खिलाड़ियों को नचाने लगे उंगलियों पर
बल्लेबाज बनना चाहते थे नितिन मेनन, लेकिन खिलाड़ियों को नचाने लगे उंगलियों पर

कपीश दुबे, इंदौर (नईदुनिया)। मध्यप्रदेश के इंदौर शहर की आजादी के पहले से पहचान क्रिकेट के लिए थी। होलकर कालीन क्रिकेट से शुरू होकर आधुनिक दौर तक कई क्रिकेटर इंदौर से भारतीय टीम तक पहुंचे। मगर बीते कुछ सालों में यह सिलसिला थम सा गया, लेकिन इस बीच बतौर अंपायर नितिन मेनन ने इंदौर का नाम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कायम रखा। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आइसीसी) ने सोमवार को सत्र 2020-21 के लिए नितिन को एलीट पैनल में शामिल किया है। वे इंग्लैंड के नाइजेल लोंग की जगह लेंगे। हालांकि यह रोचक तथ्य है कि खुद नितिन बतौर क्रिकेटर करियर बनाना चाहते थे, लेकिन किस्मत से वे क्रिकेटरों को अंगुलियों पर नचाने लगे।

नितिन ने बतौर बल्लेबाज करियर शुरू किया था। वे मध्यप्रदेश के लिए अंडर-16, अंडर-19, अंडर-22, अंडर-25 और दो लिस्ट-ए (वनडे) मैच खेल चुके हैं। 2006 में बीसीसीआइ की अंपायरिंग परीक्षा थी और पिता के कहने पर परीक्षा दे दी। इसके बाद 2007 से घरेलू मैचों के जरिए अंपायरिंग का सिलसिला ऐसा चला कि अब तक जारी है। नितिन के पिता नरेंद्र भी अंतरराष्ट्रीय अंपायर रहे है। वे दो टेस्ट मैचों में थर्ड अंपायर जबकि एक मैच में चौथे अंपायर रहे हैं। चार वनडे मैचों में मैदानी अंपायर भी रहे हैं।

पिता नरेंद्र ने कहा, मोनू (नितिन के घर का नाम) मध्य प्रदेश के लिए क्रिकेट खेल रहा था। उसका एक सत्र अच्छा नहीं रहा तो थोड़ा निराश हुआ। मैंने पूछा अंपायर बनोगे तो उसने हां में सिर हिलाया। उसका रुझान अंपायरिंग की ओर शुरू से था। 2006-07 में बीसीसीआइ की परीक्षा हुई और मेरे कहने पर उसने और उसके भाई निखिल ने परीक्षा दी। दोनों पास हुए और तब से नितिन ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। वह नियमों की बहुत बारीक समझ रखता है और सामने कोई भी बड़ा खिलाड़ी हो, विचलित नहीं होता। वह बीसीसीआइ का वर्ष का श्रेष्ठ अंपायर भी बन चुका है।

आइसीसी के एलीट पैनल में शामिल होना हर अंपायर का सपना होता है, लेकिन बहुत कम होते हैं जो वहां तक पहुंचते हैं। 36 वर्ष के मेनन ने इस मौके पर कहा कि मुझे उम्मीद नहीं थी इतनी जल्दी इस ग्रुप में शामिल हो जाऊंगा। इस समय नितिन आइसीसी के निर्देश पर चंडीगढ़ में बन रहे विश्व के सबसे आधुनिक स्टेडियम का मुआयना करने जवागल श्रीनाथ के साथ गए हैं। उन्होंने फोन पर चर्चा में कहा कि आज जब आइसीसी से फोन आया तो यकीन नहीं हुआ। यह मेरे लिए सुखद आश्चर्य की तरह है। मुझे इतनी जल्दी उम्मीद नहीं थी। इस साल तो बिल्कुल भी नहीं। यह सोचा था कि कुछ सालों में यहां तक पहुंच जाऊंगा। अब भविष्य की यही योजना है कि अपने प्रदर्शन में निरंतरता रखूं, ताकि मेरा चयन सार्थक हो सके।

क्या होता है एलीट पैनल :

पहले अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आइसीसी) पैनल और उसके ऊपर एलीट पैनल होता था। पिछले कुछ सालों से इसके बीच में इमìजग पैनल भी जोड़ दिया था। इमìजग पैनल में अच्छी अंपायरिंग करने वालों को शामिल करते हैं और छोटी टीमों के टेस्ट मैच देते हैं। पूर्णकालिक टीमों के टेस्ट मैचों में एलीट पैनल के अंपायर ही होते हैं। यह अंपायरों का श्रेष्ठ समूह होता है। हालांकि कोरोना के कारण नियमों में बदलाव किया गया है। इसके तहत जिस देश में टेस्ट होना है, वहीं के आइसीसी पैनल अंपायर नियुक्त हो सकते हैं।

स्थानीय मैचों में अंपायरिंग से खुद को बेहतर बनाया

बीसीसीआइ के पूर्व सचिव संजय जगदाले के मार्गदर्शन में नितिन ने बतौर बल्लेबाज मप्र टीम तक का सफर तय किया था। वे बताते हैं, वह सीसीआइ क्लब का नियमित चौथे नंबर का बल्लेबाज था। फिर मप्र की विभिन्न टीमों से भी खेला। पिता नरेंद्र को देखकर अंपायरिंग में कदम रखा और यहां भी पूरी मेहनत की। वह फिटनेस पर बहुत ध्यान देता है। स्थानीय मैचों में उसने बहुत अंपायरिंग की है, जिसका भी फायदा मिला। अन्य भारतीय अंपायरों की तुलना में नितिन का संवाद कौशल बेहतर है। यह मप्र ही नहीं पूरे देश के लिए खुशी की बात है कि नितिन विश्व का सबसे युवा एलीट पैनल अंपायर बना है।

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