'भारतीय टीम को सेमीफाइनल तक ही पहुंचने की उम्मीद थी, विश्व कप जीतने का सोचा ही नहीं था'
कीर्ति ने जागरण से बात करते हुए बताया कि भारतीय टीम को केवल सेमीफाइनल तक ही पहुंचने की उम्मीद थी। विश्व कप जीतने का तो मन में कहीं नहीं था।
संजीव गुप्ता, नई दिल्ली। 1983 में भारत ने पहला विश्व कप जीता जरूर, लेकिन आधी-अधूरी उम्मीदों के साथ। न तो भारतीय क्रिकेट टीम ही इस जीत का कोई सपना संजोए थी और न अन्य देशों की टीमें भारत की मौजूदगी से किसी प्रकार के तनाव में थीं। लेकिन इस विश्व कप ने देश दुनिया में इतिहास रचते हुए भारत को वैश्विक पटल पर सम्मानजनक स्थान दिलाया।
विश्व कप विजेता टीम का हिस्सा रहे पूर्व क्रिकेटर कीर्ति आजाद ने जागरण के साथ उस दौर की कई यादें साझा कीं। कीर्ति ने बताया कि 1983 में 28-29 मई को उनके पास टीम के कप्तान कपिल देव का फोन आया कि विश्व कप की टीम में तुम्हारा चयन हो गया है तो लगा जैसे डेढ़ महीने का पेड ट्रिप मिल गया। हालांकि उस समय भी वह, मोहिंदर अमरनाथ और देश के कई क्रिकेटर काउंटी के बुलावे पर नॉर्थ इंग्लैंड में क्रिकेट ही खेल रहे थे। इस फोन के बाद इंग्लैंड और अमेरिका घूमने का सपना पूरा होने की उम्मीद भी जग गई।
कीर्ति ने बताया कि भारतीय टीम को केवल सेमीफाइनल तक ही पहुंचने की उम्मीद थी। विश्व कप जीतने का तो मन में कहीं नहीं था। लेकिन जब पहला मैच 1975 और 1977 की विश्व विजेता टीम वेस्टइंडीज के साथ खेला और उसमें जीत हासिल की तो आत्मविश्वास बढ़ा। लगा कि यह जीत एक तुक्का नहीं थी। बाद में जिंबाब्वे के साथ एक मैच में कपिल ने नाबाद 175 रन बनाए तो यह उम्मीदें बलवती होने लगीं।
कीर्ति बताते हैं कि यह विश्व कप भारत के लिए एक टर्निंग प्वाइंट कहा जा सकता है। भारतीय क्रिकेट टीम की क्षमता बढ़ी, उसे गंभीरता से लिया जाने लगा। इसके बाद ही देश में खेल चैनल शुरू हुआ। निजी कंपनियां भी निवेश के लिए आगे आईं। उनका कहना है कि इतने लंबे समय में बहुत कुछ बदल गया है। इसलिए तब और आज में तुलना की ही नहीं जा सकती।