रायपुरः घास बेच कर भी किया मुफ्त इलाज

डॉ. सुरेश बताते हैं कि 1971 में बैचलर ऑफ होमियोपैथी की डिग्री लेने के बाद लगा कि इस शिक्षा से लोगों के कष्ट दूर करूं तो सही होगा। यदि इसे व्यापार बना दिया तो सब व्यर्थ है।

By Nandlal SharmaEdited By: Publish:Mon, 09 Jul 2018 06:00 AM (IST) Updated:Mon, 09 Jul 2018 06:00 AM (IST)
रायपुरः घास बेच कर भी किया मुफ्त इलाज

शहरों में दिन पर दिन महंगे हो रहे इलाज के बीच एक शख्स हजारों लोगों के लिए उम्मीद की एक किरण बन गया है। थोड़ी रियायत मिल जाए तो हर आदमी को सुकून मिल जाता है, लेकिन आप बीमार हों और कोई चिकित्सक आपका मुफ्त में इलाज कर दे, तो क्या कहने। ऊपर से दवा भी मुफ्त मिल जाए तो सोने पर सुहागा... लेकिन यह सच है।

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पंडरी स्थित छोटे से दवाखाना में 40 साल से अनवरत एक कमरे का क्लीनिक मरीजों का दर्द दूर कर रहा है। इस दवाखाना के प्रमुख डॉ. सुरेश श्रीवास्तव हैं। उनका मानना है कि इलाज करना सेवा है। इसके लिए किसी भी तरह का शुल्क नहीं लिया जाना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति दर्द में मेरे पास आया है तो उसका निवारण करूं। न कि उसे आर्थिक रूप से कमजोर कर दूं। यही वजह है कि बगैर साइन बोर्ड वाले इस दवाखाने में मरीजों का तांता लगा रहता है।

1971 से शुरू किया मुफ्त इलाज
डॉ. सुरेश बताते हैं कि 1971 में बैचलर ऑफ होमियोपैथी की डिग्री लेने के बाद लगा कि इस शिक्षा से लोगों के कष्ट दूर करूं तो सही होगा। यदि इसे व्यापार बना दिया तो सब व्यर्थ है। इसलिए मैं सुबह उठकर घास काट कर पंडरी में लाकर बेचता, उससे जो पैसे मिलते दवाइयां लेता और टेबल-कुर्सी लगाकर इलाज करने बैठ जाता। इसके बाद कई लोगों के हाथ बढ़े, कुलविंदर सिंह ने कॉम्प्लेक्स में एक कमरा दे दिया और यहां दवाखाना खोल लिया। आसपास की दुकान वालों ने टेबल-कुर्सी दे दी।

न्यायमूर्ति ने दी दानपेटी
1985 की बात है। मेरे पास जिला सत्र न्यायालय के न्यायमूर्ति आरके दीक्षित आए। वे निमोनिया से ग्रसित थे। मैंने उनका इलाज किया तो वे पैसे लेने के लिए मुझे मजबूर करने लगे। मैंने नहीं लिए। कुछ दिनों बाद वे पुन: मेरे दवाखाना आए और उनके अर्दली ने एक बॉक्स लाकर मेरे टेबल पर रख दिया। वह बक्सा दानपेटी था।

न्यायमूर्ति दीक्षित ने कहा- 'श्रीवास्तवजी, मैं सेवा, शिक्षा, दूध और नमक का कर्ज नहीं लेता। आप तो फीस लेते नहीं, इसलिए यह बॉक्स छोड़ रहा हूं। इसमें अपनी स्वेच्छा से रुपये डाल रहा हूं। यह आप निरंतर जारी रखना। यदि किसी और व्यक्ति को लगे तो वह भी डाल देगा।" जब से दानपेटी मेरे पास उपलब्ध है, जिसे भी मन करता है, कुछ भी पैसे, रुपये डाल देता है। इसकी राशि से दवा खरीदी जाती है।

 ऐसे समझें डॉ. सुरेश की बनाई व्यवस्था

दवाखाना में एक रोचक बात ये है कि किसी बीमार व्यक्ति का इलाज होने के बाद बची हुई दवाई को वह वापस कर देता है, ताकि वे दवाइयां किसी दूसरे के काम आ सकें। डॉ. श्रीवास्तव ने बताया कि ये प्रक्रिया निरंतर जारी है।

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