नक्सलियों के खौफ से स्कूल में कोई पढ़ाने को तैयार नहीं, दो लड़कियां ने दिखाई हिम्मत

झारखंड सीमा पर बसा बरपानी गांव हार्डकोर नक्सली एरिया है। जब सरकार ने यहां प्राइमरी स्कूल खोला तो गांव वालों ने सोचा कि उनके बच्चों का पढ़ाई से जीवन संवर जाएगा।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Mon, 08 Aug 2016 06:34 AM (IST) Updated:Mon, 08 Aug 2016 06:39 AM (IST)
नक्सलियों के खौफ से स्कूल में कोई पढ़ाने को तैयार नहीं, दो लड़कियां ने दिखाई हिम्मत

रायपुर। छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले से 20 किलोमीटर दूर झारखंड सीमा पर बसा बरपानी गांव हार्डकोर नक्सली एरिया है। जब सरकार ने यहां प्राइमरी स्कूल खोला तो गांव वालों ने सोचा कि उनके बच्चों का पढ़ाई से जीवन संवर जाएगा। बच्चों को इंग्लिश पढ़ाने का सपना पूरा होगा, लेकिन एक वक्त के बाद टीचर ही नक्सलियों के डर से स्कूल आने में कतराने लगे। बच्चों की पढ़ाई खतरे में देख दो लड़कियों ने हिम्मत दिखाई।

शहर में पढ़ाई कर अब गांव में पढ़ा रहीं
ग्रामीणों को डर सताया कि उनके बच्चे शहर के बच्चों से कहीं पिछड़ न जाएं, अंग्रेजी उनकी कमजोरी न बने। इसलिए उन्होंने मिलकर खुद ही इंग्लिश मीडियम स्कूल खोल लिया। उन्होंने अपनी जमीन दान कर स्कूल बनवाया। नक्सलियों के खौफ के कारण जब कोई पढ़ाने के लिए आगे नहीं आया तो गांव की ही दो युवतियां बच्चों को पढ़ाने के लिए आगे आईं। उन्होंने कहा, इन बच्चों को हम पढ़ाएंगे। ग्रामीणों ने दोनों को 4000-4000 रुपए मासिक वेतन पर रख लिया। इनके वेतन का भुगतान चंदे की राशि से होता है। टीचर 25 साल की सुषमा और 26 साल की नीलम ने अपने रिश्तेदारों के यहां शहर में रहकर पढ़ाई की है।

अब स्कूल भेजना शुरु किया बच्चों को

स्कूल में शिक्षा की गुणवत्ता न गिरे, इसके लिए ग्रामीणों ने स्कूल के रखरखाव व माॅनीटरिंग की जिम्मेदारी भी अपने पास ही रखी है। स्कूल को खुले हुए तीन साल हो गए हैं। स्कूल खोलने में सबसे बड़ी समस्या जमीन की आ रही थी। गांव के ही एक शख्स ने बच्चों के भविष्य को देखते हुए 2200 वर्ग फीट जमीन दान कर दी। इससे किसानों ने मिल-जुलकर खुद से स्कूल तैयार किया, जिसमें दो कमरों के साथ टॉयलेट और खेल के मैदान के इंतजाम किया। गांव के स्कूल की गुणवत्ता को देखकर आसपास के कई गांव के लोग अपने बच्चों को यहां पढ़ने के लिए भेजने लगे हैं।क्लास थर्ड तक के इस स्कूल में अभी 27 बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं। अब गांव के लोग एक गाड़ी खरीदने का सोच रहे हैं, ताकि आसपास के गांव के बच्चों को स्कूल आने-जाने में सुविधा हो सके।

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