अंतरिम बजट की रियायतों से मिलीं हर किसी को खुशियां

पर्सनल फाइनेंस के लिहाज से सेक्शन 54 में कैपिटल गेन्स की रियायत में वृद्धि करना एक और दिलचस्प घोषणा है

By Praveen DwivediEdited By: Publish:Sun, 03 Feb 2019 12:22 PM (IST) Updated:Sun, 28 Apr 2019 02:21 PM (IST)
अंतरिम बजट की रियायतों से मिलीं हर किसी को खुशियां
अंतरिम बजट की रियायतों से मिलीं हर किसी को खुशियां

सभी के लिए अब यह सीख है कि अगर उच्चतम पायदान के लोग मर्जी या बिना मर्जी के कर चुकाते है तो गरीबों और मध्यम वर्ग के लोगों को प्रगति का फायदा मिल सकता है। सेक्शन 87बी के तहत कर रियायत में भारी वृद्धि होने से करीब तीन करोड़ ऐसे लोगों को फायदा मिलेगा जो आयकर छूट सीमा से थोड़ा ऊपर हैं। प्रभावी तौर पर हर महीने 60,000-65000 रुपये तक वेतन पाने वालों पर शायद ही कर का कोई बोझ पड़ेगा।

आश्चर्यजनक रूप से कार्यवाहक वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने बजट भाषण में ही टैक्स-प्लानिंग की कुछ टिप्स भी दे डालीं। यह थोड़ा अजीब लगता है लेकिन चार्टर्ड एकाउंटेंट की परीक्षा में अखिल भारतीय रैंक पाने वाले गोयल मुझे लगता है कि कम टैक्स भरने के बारे में सलाह देने की अपनी आदत से बच नहीं पाए। निश्चित ही यह सुखद बदलाव है। अभी तक कई वित्त मंत्री पेशे से अधिवक्ता रहे हैं जो आदत से थोड़े कड़क मिजाज होते हैं।

जैसा खुद गोयल ने कहा कि आप अपनी पीएफ कटौती, बीमा और सेक्शन 80सी के अन्य निवेशों को जोड़ लें तो कर छूट सीमा 6.5 लाख रुपये तक चली जाएगी। अगर आप थोड़ी और बचत कर सकते हैं तो सात लाख रुपये तक आय होने पर आपको टैक्स नहीं देना होगा। इन सबके बाद भी (यह वित्त मंत्री ने सलाह नहीं दी है), निजी क्षेत्र की ज्यादातर कंपनियां अपने कर्मचारियों के वेतन का पुनर्गठन कर सकती हैं। इससे कुछ और ज्यादा आय होने पर भी कर अदायगी से बचा जा सकता है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि निचले और मध्यम वर्ग में ज्यादातर करदाताओं को कोई भी टैक्स भरने से राहत मिल गई है।

बचत के पैरोकार होने के नाते मेरे दृष्टिकोण से यह प्रस्ताव एक और सौगात लेकर आया है। डिडक्शन से पहले पांच लाख से सात लाख रुपये तक सालाना आय वाले करदाताओं को बचत निवेश से और ज्यादा फायदा मिल सकता है। मामूली महंगाई जिसका उल्लेख गोयल ने गर्व के साथ अपने बजट भाषण में किया, के दौर में बचत और कम कठिनाई के साथ शुरू की जा सकती है। हर स्थिति में देश के मध्यम वर्ग को बचत के लिए प्रेरित करने में कर रियायतें अहम भूमिका निभाती हैं। बचत जितनी जल्दी शुरू की जाए, उतना ही बेहतर है।

पर्सनल फाइनेंस के लिहाज से सेक्शन 54 में कैपिटल गेन्स की रियायत में वृद्धि करना एक और दिलचस्प घोषणा है। इसके तहत कोई व्यक्ति एक मकान बेचकर दो मकान या फ्लैट खरीद सकता है। आजकल तमाम लोगों को जीवन में किसी मौके पर अपना पुराना और संभवत: बड़ा मकान बेचकर दो छोटे मकान खरीदने की आवश्यकता होती है। अभी तक पुराना मकान बेचने पर मिली रकम में से सिर्फ उस हिस्से पर यह कैपिटल गेन्स टैक्स से रियायत मिल पाती है जिसका इस्तेमाल पहला मकान खरीदने में किया गया है।

यह उत्साहजनक है कि कर कानूनों में ऐसे वाजिब बदलाव किए जा रहे हैं जिनसे बचतकर्ताओं की जेब में ज्यादा पैसा आए। कैपिटल गेन्स टैक्स में छूट की यह सुविधा किसी भी करदाता को जीवन में सिर्फ एक बार मिलेगी। यह पाबंदी भी तार्किक लगती है ताकि रियल एस्टेट कारोबार में लगे लोगों को इसका अनुचित लाभ उठाने से रोका जा सके। इसी तरह की रियायत खुद के इस्तेमाल वाले दूसरे मकान पर काल्पनिक टैक्स के मामले में दी गई है। जैसा वित्त मंत्री ने कहा कि ये मध्यम वर्ग की वास्तविक दिक्कतें है। अमीरों का इन दिक्कतों से वास्ता नहीं पड़ता है।

अब अगर बजट के सभी प्रावधानों पर गौर करें तो इसके राजनीतिक मायने आसानी से समझे जा सकते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह चुनावी बजट है। इसमें दोनों तरह से सौगातें देने का प्रयास किया गया है। घोषणाओं के जरिये समाज के कई वर्गो को सीधे तौर पर वित्तीय मदद दी गई है जबकि कई वर्गो को कर रियायतें देने से सरकार को राजस्व छोड़ना होगा। स्पष्ट है कि मतदाताओं को रिझाने का प्रयास किया गया है। लोकतंत्र में इसकी अपेक्षा भी की जाती है।

हालांकि, दो कदम ऐसे हैं जिन पर मोदी की स्पष्ट छाप दिखाई देती है। पहला, सेक्शन 87बी में बढ़ोतरी से तीन करोड़ करदाताओं को तो राहत दी गई लेकिन इसका लाभ सिर्फ पहले टैक्स स्लैब (2.5 लाख से 5 लाख रुपये) के करदाताओं तक सीमित रखा गया है। दूसरा, ऐसी कोई घोषणा नहीं की गई जिसे अमीर हितैषी के तौर पर देखा जा सके। शेयर निवेश पर पिछले साल लगाए गए कैपिटल गेन्स टैक्स के रोल बैक के लिए मैं पिछले कुछ हफ्तों से लिख रहा था। लेकिन पेश किए गए बजट के संदर्भ में समझा जा सकता है कि इस तरह का कदम अभी संभव नहीं था। इस साल ऐसा कोई टैक्स वापस नहीं लिया जा सकता है जिसका आमतौर पर भार अमीरों पर पड़ता है। यह वास्तविकता है। बजट पर सभी बिंदुओं से देखते हैं तो इसमें कोई कमी नजर नहीं आती है। हर कोई खुश हो सकता है।

(इस लेख के लेखक वैल्यू रिसर्च के सीईओ धीरेंद्र कुमार हैं)

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