नोटबंदी के बाद कर्ज की रफ्तार हुई बेहद सुस्त, नहीं हो रहा बैंकों को फायदा

नोटबंदी के बाद कर्ज लेने वाले बड़ी संख्या में आगे नहीं आ रहे हैं। वहीं दूसरी ओर जमा राशि पर बैंक लगातार ब्याज दे रहे हैं

By Surbhi JainEdited By: Publish:Mon, 16 Jan 2017 01:51 PM (IST) Updated:Mon, 16 Jan 2017 01:57 PM (IST)
नोटबंदी के बाद कर्ज की रफ्तार हुई बेहद सुस्त, नहीं हो रहा बैंकों को फायदा
नोटबंदी के बाद कर्ज की रफ्तार हुई बेहद सुस्त, नहीं हो रहा बैंकों को फायदा

नई दिल्ली (जागरण ब्यूरो)। सोचा था क्या और क्या हो गया..? यह पंक्ति अभी देश के सरकारी बैंकों पर पूरी तरह से मुफीद बैठ रही है। ये बैंक सोच रहे थे कि नोटबंदी के बाद जो बेशुमार जमा राशि खाते में जमा हुई है उससे उनका भारी फायदा होगा। लेकिन, अब इन्हें आशंका है कि मामला कहीं उल्टा न पड़ जाए। यह इसलिए हो रहा है क्योंकि कर्ज लेने वाले बड़ी संख्या में आगे नहीं आ रहे। जबकि, बैंकों को जमा राशि पर लगातार ब्याज देना पड़ रहा है। अब बैंकों ने सरकार से आग्रह किया है कि ऐसे में उन्हें अगले वित्त वर्ष के दौरान दिल खोल कर वित्तीय मदद दी जाए। उम्मीद है कि वित्त मंत्री अरुण जेटली भी बैंकों की मांग को स्वीकार करेंगे।

सूत्रों के अनुसार नोटबंदी के बाद बैंकों में लगभग लाख करोड़ रुपये जमा हो चुके हैं। इसका बड़ा हिस्सा सरकारी बैंकों में गया है। जमा पुराने नोटों पर तीन से चार फीसद की दर से ब्याज देना पड़ रहा है। बैंकों को फायदा तब होता जब जमा राशि का बड़ा हिस्सा कर्ज के तौर पर वितरित किया जाता। लेकिन, कर्ज की रफ्तार बहुत धीमी है। दिसंबर, में कर्ज की रफ्तार महज 5.1 फीसद थी जो पिछले 19 वर्षो में सबसे कम है। इसमें हाल फिलहाल खास बढ़ोतरी के आसार नहीं हैं। मौजूदा नियम के मुताबिक बैंक कुल जमा राशि का 21.5 फीसद ही नकदी, स्वर्ण या सरकारी प्रतिभूतियों (बांड्स आदि) में निवेश कर सकते हैं। सरकारी बांड्स पर ब्याज की दरें फिलहाल 6.40 फीसद के करीब हैं, लेकिन अगर इसमें से बैंक संचालन की लागत (2-2.50 फीसद) घटा दी जाए तो यह भी बहुत फायदेमंद विकल्प नहीं दिखाई देता है। रही सही कसर फंसे कर्जे (एनपीए) पूरा कर रहे हैं। यही वजह है कि पहले जहां बैंकों ने वित्त मंत्रलय को बताया था कि उन्हें अगले वित्त वर्ष के दौरान सरकारी खजाने से कम वित्तीय मदद की जरूरत होगी वहीं अब वे ज्यादा राशि की मांग कर रहे हैं।

बैंकों ने सरकार से स्पष्ट तौर पर कह दिया है कि उन्हें वर्ष 2017-18 के दौरान पूर्व निर्धारित 25 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा की राशि की जरूरत पड़ेगी। केंद्र सरकार ने सरकारी बैंकों को अतिरिक्त वित्तीय मदद देने के लिए इंद्रधनुष स्कीम की घोषणा की थी जिसके तहत इन्हें चार वर्षो में 70 हजार करोड़ रुपये दिए जाने हैं। चालू वित्त वर्ष के दौरान आवंटन 25 हजार करोड़ रुपये का किया गया था, लेकिन हकीकत में अभी 22,9 करोड़ रुपये ही दिए गए हैं। इन बैंकों की एक दिक्कत यह थी कि उन्हें अपने बूते भी 1.1 लाख करोड़ रुपये की राशि बाजार से जुटानी थी। लेकिन, इनकी हालत इतनी खराब हो गई है कि अब इनके लिए पैसा जुटाना मुश्किल हो गया है। इसलिए भी ये ज्यादा राशि की गुहार लगा रहे हैं।

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