FRDI Bill: समझिए आपके लिए क्या हैं इस बिल के मायने

वित्तीय संकल्प और जमा बीमा (एफआरडीआई) को लेकर लोगों के बीच इन दिनों अफवाहें तेज हो रही हैं, हालांकि वित्त मंत्री और प्रधानमंत्री इस पर सफाई दे चुके हैं

By Praveen DwivediEdited By: Publish:Fri, 15 Dec 2017 02:59 PM (IST) Updated:Tue, 26 Dec 2017 04:17 PM (IST)
FRDI Bill: समझिए आपके लिए क्या हैं इस बिल के मायने
FRDI Bill: समझिए आपके लिए क्या हैं इस बिल के मायने

नई दिल्ली (बिजनेस डेस्क)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने हाल ही में लोगों से अपील की है कि उन्हें घबराने की बिल्कुल भी जरुरत नहीं है, बैंकों में उनका पैसा पूरी तरह से सुरक्षित है। ऐसे में अब यह सवाल अहम हो चला है कि आखिर ये एफआरडीआई बिल है क्या और यह क्यों लोगों की चिंताओं में इजाफा कर रहा है। हम अपनी इस रिपोर्ट में इन्हीं सवालों के जवाब देने जा रहे हैं। 

बीते कुछ महीनों से एफआरडीआई बिल चर्चा में: केंद्र सरकार की ओर से प्रस्तावित वित्तीय संकल्प और जमा बीमा (एफआरडीआई) बिल की हाल फिलहाल में खूब चर्चा हुई है। इसको लेकर इतना हल्ला मचा हुआ है कि बैंकर्स ने यहां तक कह दिया है कि अगर इस प्रस्ताव को अमल में लाया जाता है तो वो हड़ताल पर चले जाएंगे। वर्तमान में यह संसद की संयुक्त समिति के विचाराधीन है। एफआरडीआई बिल का उद्देश्य वित्तीय संस्थानों जैसे कि बैंक, बीमा कंपनियों, गैर-बैंकिंग वित्तीय सेवाओं (एनबीएफसी) कंपनियों और स्टॉक एक्सचेंज जैसे संस्थानों की दिवालिया होने के मामले में देखरेख के लिए एक ढांचा तैयार करना है। गौरतलब है कि इस बिल को सबसे पहले इस साल अगस्त में लोकसभा में पेश किया गया था।

आखिर क्यों विवादों में है एफआरडीआई बिल: इस साल अगस्त में संसद में पेश किया गया वित्तीय संकल्प और जमा बीमा (एफआरडीआई) विधेयक 2017 सुर्खियां बना हुआ है और इसकी वजह इसका विवादास्पद बेल-इन क्लॉज है।

क्या करेगा यह विधेयक: एफआरडीआई विधेयक, केंद्र सरकार की ओर से सभी वित्तीय कंपनियों (बैंकों, बीमा कंपनियों और अन्य वित्तीय मध्यस्थों) के व्यवस्थित समाधान के लिए एक बड़ा और अधिक व्यापक दृष्टिकोण का हिस्सा है। दिवाला और दिवालियापन संहिता के साथ आया यह विधेयक एक बीमार कंपनी के सुधार या पुनरुद्धार के लिए प्रक्रिया को तैयार करता है। इस तरह के विशिष्ट विनिमय की आवश्यकता साल 2008 के वित्तीय संकट के बाद महसूस की जाने लगी थी, क्योंकि बड़े पैमाने पर हाई प्रोफाइल बैंकरप्सी के मामलों को देखा गया है। केंद्र सरकार की ओर से भी लोगों को बैंकिंग सेक्टर के साथ सक्रिय रूप से जुड़ने पर जोर एवं प्रोत्साहन दिया गया है। जन धन खाते और नोटबंदी ने कुछ ऐसा ही काम किया है। बैंक ओर बीमा कंपनियों के मुश्किल स्थिति में आने की सूरत में जमाकर्ताओं की सुरक्षा के लिहाज से यह काफी अहम हो जाता है।

क्या कहता हैं बिल: यह बिल रेजोल्यूशन कार्पोरेशन की स्थापना की सुविधा प्रदान करता है जो कि मौजूदा जमा बीमा एवं क्रेडिट गारंटी निगम की जगह लेगा। इसे वित्तीय कंपनियों की निगरानी, विफलता के जोखिम की आशंका, सुधारात्मक कार्रवाई करने और विफलता के मामले में उन्हें हल करना का जिम्मा दिया जाएगा। इतना ही नहीं कार्पोरेशन को एक निश्चित अवधि तक बीमा सुरक्षा प्रदान करने का जिम्मा भी दिया गया है, हालांकि इस अवधि का निर्धारण किया जाना अभी बाकी है। इसके साथ ही कार्पोरेशन के पास यह जिम्मा भी होगा कि वो फेल्योर होने की आशंका के आधार पर कंपनियों को लो, मॉडरेट, मैटीरियल, इमीनेंट और क्रिटिकल में वर्गीकृत करे। कंपनी के गंभीर स्थिति में आते ही यह कंपनी के प्रबंधन का जिम्मा अपने हाथ में ले लेगी।

एफआरडीआई विधेयक और बेल-इन क्लॉज की क्या है तात्कालिकता?

तथ्य यह है कि साल 2014 में विकसित देशों की जी-20 बैठक में इस अवधारणा को रखा गया था। इसके पीछे साल 2008 के उस आर्थिक संकट की दलील दी जिसमें अमेरिका और यूरोप के बैकों को सरकार की जमानत की जरूरत पड़ी थी। भारत आंखे मूंद कर इस क्लॉज को फॉलो करना चाहता है, जबकि हमारे देश के बैंकिंग सेक्टर की स्थिति पूरी तरह से अलग है।

क्या कहते हैं एक्सपर्ट:

पंजाब नेशनल बैंक के पूर्व चीफ जनरल मैनेजर उदय शंकर भार्गव ने बताया मुख्य आपत्ति एफआरडीआई बिल के बेल इन क्लॉज को लेकर है, जो कहता है कि अगर बैंक बुरी स्थिति में आते हैं तो वो जमाकर्ताओं के पैसे से भी अपने नुकसान की भरपाई कर सकते हैं। लेकिन यह प्रैक्टिस विदेशों में चलन में है लेकिन भारत में इसका अनुसरण नहीं किया जा सकता है। वहीं उन्होंने यह भी कहा कि फिलहाल इस बिल पर कुछ भी बोलना उचित नहीं है, अभी इसका ड्रॉफ्ट तैयार होने दीजिए, इसी के बाद तस्वीर कुछ साफ हो सकती है।

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