कैसे मजबूत होता है रुपया और क्यों आती है गिरावट, जानिए

रुपए की हालत पूरी तरह मांग एवं आपूर्ति और आयात एवं निर्यात पर निर्भर करती है

By Praveen DwivediEdited By: Publish:Thu, 22 Feb 2018 05:34 PM (IST) Updated:Thu, 22 Feb 2018 05:34 PM (IST)
कैसे मजबूत होता है रुपया और क्यों आती है गिरावट, जानिए
कैसे मजबूत होता है रुपया और क्यों आती है गिरावट, जानिए

नई दिल्ली (बिजनेस डेस्क)। डॉलर में कमजोरी के कारण आखिर रुपए में मजबूती क्यों आती है? जितना मासूम यह सवाल है उतना ही मासूम इसका जवाब भी है। देश की आबादी में एक बड़ा हिस्सा रखने वाले छोटे बच्चे भी अक्सर ऐसे ही मासूम से सवाल अपनों से पूछ बैठते हैं। हम भी आपको बेहद आसानी से समझाने की कोशिश करेंगे कि आखिर डॉलर और रुपए के बीच चलने वाली उठापठक कैसे रुपए की हालत कभी पतली तो कभी मजबूत कर देती है।

रुपए ने पार किया 65 का स्तर, बढ़ गई लोगों की चिंताएं:

गुरुवार को जैसे ही रुपए ने 65 का स्तर पार किया निवेशकों के साथ साथ ऐसे लोगों की चिंताएं बढ़ गईं जिनका सरोकार अक्सर डॉलर के साथ होता है। मसलन अमेरिका जाने वालों को डॉलर चाहिए होता है, विदेश में पढ़ने वाले बच्चों को पैसे भेजने होते हैं जो कि रुपए के हिसाब से ही डॉलर में बदलते हैं। दोपहर तक रुपया 65 के बेहद करीब कारोबार करता रहा।

रुपए की हालत क्यों पतली करता है डॉलर?

रुपए की हालत पूरी तरह मांग एवं आपूर्ति और आयात एवं निर्यात पर निर्भर करती है। दरअसल हर देश के पास उन उन देशों का मुद्रा भंडार होता है जिनसे वो लेनदेन यानी सौदा (आयात-निर्यात) करता है। इसे सामान्य भाषा में विदेशी मुद्रा भंडार कहा जाता है। इसका डेटा आरबीआई की ओर से जारी किया जाता है। इसके घटने और बढ़ने से ही उस देश की मुद्रा की स्थिति बदलती रहती है। जैसा कि डॉलर को वैश्विक करेंसी का रुतबा प्राप्त है लिहाजा रुपए की स्थिति को इसी के सापेक्ष तौली जाती है। भारत अपनी जरूरत का करीब दो तिहाई कच्चा तेल विदेशों से आयात करता है। देश मोबाइल फोन और अन्य इलेक्ट्रॉनिक सामानों का भी बड़े पैमाने पर आयात करता है। कई कार कंपनियां अपनी कार के अधिकांश कल-पुर्जों के लिए आयात पर ही निर्भर होती हैं। दाल और खाद्य तेल भी बड़े पैमाने पर हमारे यहां आयात किए जाते हैं। इसलिए भारत के विदेशी मुद्रा भंडार से ज्यादा रकम बाहर चली जाती है, जबकि उसमें इजाफा उस अनुपात में नहीं होता है जिस अनुपात में वो बाहर जाता है।

उदाहरण से समझिए: भारत की अधिकांश डीलिंग डॉलर में होती है। अगर अब आप अपनी जरूरत का कच्चा तेल, खाद्य पदार्थ और इलेक्ट्रॉनिक्स आइटम्स अधिक मात्रा में मंगवाएंगे तो आपको ज्यादा डॉलर खर्च करने होंगे। इससे आपको सामान तो मिल जाएगा लेकिन आपका मुद्राभंडार थोड़ा कम हो जाएगा। मान लीजिए आप अमेरिका से कुछ डीलिंग कर रहे हैं। अमेरिका के पास 65,000 रुपए हैं और आपके पास 1000 डॉलर। डॉलर का रेट 65 है तो दोनों के पास फिलहाल समान राशि है। अब अगर आपको अमेरिका से भारत में कोई ऐसी चीज मंगानी है जिसकी कीमत आपकी करेंसी के हिसाब से 6,500 रुपए है तो आपको इसके लिए 100 डॉलर चुकाने होंगे। यानी अब आपके भंडार में सिर्फ 900 डॉलर रह गए, लेकिन अमेरिका के पास पहुंच गए 71,500 रुपए, यानी अमेरिका के पास हमसे ज्यादा पैसे हो गए। यानी अमेरिका (विदेशी मुद्रा भंडार में) के पास भारत के जो 65,000 रुपए थे वो तो बने ही रहे, लेकिन भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में पड़े 100 डॉलर भी उसके पास पहुंच गए। अब भारत जब तक इतनी ही राशि यानी 100 डॉलर का सामान अमेरिका को नहीं दे देगा उसकी स्थिति कमजोर ही बनी रहेगी। यह स्थिति जब बड़े पैमाने पर होती है तो हमारे मुद्राभंडार में से रकम काफी तेजी से कमजोर होती है।

भारत में कैसे आता है डॉलर: विदेशी सैलानियों के भ्रमण से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) से एफआईआई के निवेश से रेमिटेंस से (विदेश में रहने वाले लोग जो भारत में पैसा भेजते हैं)

भारत से कैसे जाता है डॉलर: कच्चे तेल के आयात से लग्जरी गाड़ियों के आयात से इलेक्ट्रिक और कॉस्मेटिक सामान के आयात से खाद्य पदार्थों के आयात से विदेश में बच्चों की पढ़ाई के लिए पैसा भेजने से

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