Petroleum Products: 2022 में भारत की तेल मांग में 7.7 प्रतिशत की वृद्धि, OPEC ने मासिक रिपोर्ट में किया खुलासा

ओपेक ने अपनी मासिक रिपोर्ट में कहा कि भारत में पेट्रोलियम उत्पादों की दैनिक मांग 2021 में 47.7 लाख बैरल थी। इसके 2022 में बढ़कर 51.4 लाख बैरल प्रतिदिन होने का अनुमान है। भारत में तेल की मांग में वृद्धि दुनिया में सबसे तेज गति से हो रही है।

By Shashank_MishraEdited By: Publish:Wed, 17 Aug 2022 09:22 PM (IST) Updated:Wed, 17 Aug 2022 09:22 PM (IST)
Petroleum Products: 2022 में भारत की तेल मांग में 7.7 प्रतिशत की वृद्धि, OPEC ने मासिक रिपोर्ट में किया खुलासा
पेट्रोल-डीजल की मांग में आने वाले समय में 7.7 प्रतिशत वृद्धि का अनुमान

नई दिल्ली, एजेंसियां। भारत में पेट्रोल और डीजल जैसे पेट्रोलियम उत्पादों की मांग 2022 में 7.73 प्रतिशत बढ़ सकती है। यह दुनिया के किसी भी देश की तुलना में सबसे तेजी से बढ़ेगी। तेल निर्यातक देशों के संगठन (ओपेक) ने अपनी मासिक रिपोर्ट में कहा कि भारत में पेट्रोलियम उत्पादों की दैनिक मांग 2021 में 47.7 लाख बैरल थी। इसके 2022 में बढ़कर 51.4 लाख बैरल प्रतिदिन होने का अनुमान है। चीन में 1.23 प्रतिशत, अमेरिका में 3.39 प्रतिशत और यूरोप में 4.62 प्रतिशत के मुकाबले भारत में तेल की मांग में वृद्धि दुनिया में सबसे तेज गति से होगी।

भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक

बता दें कि अमेरिका और चीन के बाद भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक और उपभोक्ता देश है। रिपोर्ट में कहा गया है कि मानसून के चलते मौजूदा वर्ष की जुलाई-सितंबर तिमाही में तेल की मांग में गिरावट आएगी, लेकिन त्योहार और छुट्टियों के साथ अगली तिमाही में इसमें तेजी आएगी। आंकड़ों के अनुसार, भारत को कच्चे तेल के आयात के मामले में जून में रूस सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता बन गया है। जून में भारत के कुल तेल आयात में रूस की हिस्सेदारी 24 प्रतिशत थी।

वहीं, इराक की हिस्सेदारी 21 प्रतिशत और तीसरे स्थान पर 15 प्रतिशत की हिस्सेदारी के साथ सऊदी अरब का स्थान रहा। सऊदी अरब और इराक जैसे दुनिया के प्रमुख तेल निर्यातक देशों के संगठन ओपेक की रिपोर्ट में कहा गया है कि जुलाई में भारत का कच्चे तेल का आयात मौजूदा स्तर के करीब रहने की संभावना है, जिसमें रूसी प्रवाह 1 मिलियन बीपीडी से ऊपर है।

इसके अलावा, ब्याज दरों में हालिया बढ़ोतरी भी देश की विकास संभावनाओं को कमजोर कर सकती है क्योंकि वे पर्याप्त क्षमता उपयोग के बिना क्षेत्रों में निवेश योजनाओं को स्थगित करने का संकेत देते हैं। हालांकि मौजूदा रेपो दर ऐतिहासिक मानकों से कम बनी हुई है, वित्त पोषण की स्थिति 2022 के अंत से निजी निवेश में वसूली को रोक नहीं सकती है।

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