बैंकों के NPA में भारी बढ़ोतरी के आसार, मार्च 2021 तक बढ़कर 12.5 फीसद होने की आशंका: आरबीआई रिपोर्ट

हालात ज्यादा खराब होने पर एनपीए का स्तर कुल अग्रिम के मुकाबले रिकार्ड 14.7 फीसद और सरकारी क्षेत्र के बैंकों के लिए तो फंसे कर्जे का स्तर 15 फीसद को भी पार कर सकता है।

By NiteshEdited By: Publish:Fri, 24 Jul 2020 08:46 PM (IST) Updated:Fri, 24 Jul 2020 08:46 PM (IST)
बैंकों के NPA में भारी बढ़ोतरी के आसार, मार्च 2021 तक बढ़कर 12.5 फीसद होने की आशंका: आरबीआई रिपोर्ट
बैंकों के NPA में भारी बढ़ोतरी के आसार, मार्च 2021 तक बढ़कर 12.5 फीसद होने की आशंका: आरबीआई रिपोर्ट

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। इस बात की पहले से ही आशंका जताई जा रही थी कि कोविड-19 ने जिस तरह से समूची अर्थव्यवस्था का पहिया जाम किया है उसका असर वित्तीय सेक्टर पर पड़ने वाला है। अब आरबीआइ की वित्तीय सेक्टर की मजबूती का आकलन करने वाली बेहद प्रतिष्ठित फाइनेंसिएल स्टैबिलिटी रिपोर्ट (एसबीआर) ने कहा है कि अगर हालात खराब हुए तो वर्ष 2019-20 के एनपीए का स्तर 8.5 फीसद से वर्ष 2020-21 के दौरान बढ़ कर 12.5 फीसद हो सकता है। 

हालात ज्यादा खराब होने पर एनपीए का स्तर कुल अग्रिम के मुकाबले रिकार्ड 14.7 फीसद और सरकारी क्षेत्र के बैंकों के लिए तो फंसे कर्जे का स्तर 15 फीसद को भी पार कर सकता है। इस रिपोर्ट में मई, 2020 के बाद से इकोनोमी के खोले जाने के बाद आर्थिक गतिविधियों के धीरे धीरे पटरी पर लौटने की बात है लेकिन इस बात पर ज्यादा जोर दिया गया है कि हालात अभी काफी अस्पष्ट है। रिपोर्ट के भीतर जाने पर चालू वित्त वर्ष लिए शायद ही कोई शुभ बात कही गई है। एक जगह तो यहां तक कहा गया है कि कोविड-19 से उपजी अस्थिरता का असर अगले कुछ वर्षो तक देखने को मिल सकता है।

कोविड-19 ने घरेलू अर्थव्यवस्था को लेकर कई तरह की दिक्कतें तो पैदा कर ही दी हैं लेकिन इसने दूसरे देशों को जिस तरह से परेशान किया है उसका असर भी भारत को झेलना पड़ेगा। खास तौर पर इसकी वजह से जो भू-राजनीतिक हालात बने रहे हैं उससे पूरी दुनिया के कारोबार व इकोनोमी में काफी बदलाव देखने को मिल सकते हैं। यह अनिश्चितता भारत जैसे विकासशील देश के लिए सही नहीं है। इसकी वजह से भारत की विकास दर चालू वित्त वर्ष में क्या रहेगी, इसको लेकर अभी तक अनिश्चितता बनी हुई है। विकास दर की रफ्तार बहुत नीचे आने के खतरे के साथ सरकार के राजस्व को लेकर चुनौतियों की तरफ से भी नीति नियामकों का ध्यान केंद्रीय बैंक ने आकर्षित करवाया है।

आरबीआइ वर्ष 2008-09 की वैश्विक मंदी के बाद से एफएसआर दे रहा है और शुक्रवार को जारी रिपोर्ट को पिछले एक दशक की सबसे महत्वपूर्ण रिपोर्ट कही जा सकती है। इस रिपोर्ट में मुख्य तौर पर इस बात का आकलन होता है कि देश के वित्तीय सेक्टर की स्थिति क्या है। इस बार की रिपोर्ट में कोविड-19 के पड़ने वाले असर पर ज्यादा जोर है और इस संदर्भ में सरकार की तरफ से घोषित सावधि कर्ज चुकाने पर लागू मोरोटोरियम का भी जिक्र है। रिपोर्ट ने इस बात की तरफ से इशारा है कि इस मोरोटोरियम को लेकर बैंकों की स्थिति कैच-22 की है। 

यानी इसे लागू करना जरुरी भी है और इसका उल्टा असर होने का भी खतरा है। मोरोटोरियम का फायदा होगा, यह भी स्पष्ट नहीं है। रिपोर्ट में स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि इसकी वजह से बैंकों पर बहुत ज्यादा वित्तीय बोझ पड़ने की स्थिति बनती दिख रही है। बैंकों पर एनपीए का बोझ बढ़ेगा तो इसका असर उनके पूरे ढांचे पर होगा। 

सरकारी बैंकों को केंद्र सरकार से ज्यादा राशि की दरकार होगी। सरकारी बैंकों के एनपीए का स्तर 15.2 फीसद व निजी बैंकों का स्तर 7.3 फीसद हो सकता है। ऐसा हुआ तो कई बैंकों के लिए कानून तौर पर न्यूनतम पूंजी रखने संबंधी मानकों का पालन करना भी मुश्किल हो जाएगा।इस रिपोर्ट के शुरुआत में आरबीआइ गवर्नर डॉ. शक्तिकांत दास ने माना है कि स्थिति अच्छी नहीें है लेकिन उन्हें बैंकों को यह भी कहा है कि अगर उन्होंने कर्ज देने में जोखिम लेना बंद कर दिया तो हालात और खराब हो सकते हैं। दास ने कहा है कि स्थिति के मुताबिक हमें एकदम सतर्क रहना है।

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