Global Warming: तापमान बढ़ने से वैश्विक जीडीपी को 10 प्रतिशत तक नुकसान, दुनिया के इन हिस्‍सों पर पड़ेगा सबसे ज्‍यादा प्रभाव

Global warming शोधकर्ताओं ने पाया है कि विश्व में बारिश और तापमान के पैटर्न में बदलाव को जोड़ने पर जलवायु परिवर्तन की वजह से होने वाला आर्थिक नुकसान बढ़ जाता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि वैश्विक तापमान की वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने से अनुमानित आर्थिक नुकसान को दो तिहाई तक कम किया जा सकता है।

By AgencyEdited By: Praveen Prasad Singh Publish:Fri, 19 Apr 2024 11:00 AM (IST) Updated:Fri, 19 Apr 2024 11:00 AM (IST)
Global Warming: तापमान बढ़ने से वैश्विक जीडीपी को 10 प्रतिशत तक नुकसान, दुनिया के इन हिस्‍सों पर पड़ेगा सबसे ज्‍यादा प्रभाव
तापमान बढ़ने का सबसे ज्यादा असर अफ्रीका और मध्य पूर्व में पड़ने का अनुमान है।

पीटीआई, नई दिल्ली। पृथ्वी का तापमान 3 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ने से विश्व को वैश्विक जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) का 10 प्रतिशत तक नुकसान उठाना पड़ सकता है। एक नए शोध में यह बात कही गई है। शोध में यह भी पाया गया है कि गरीब और गर्म जलवायु वाले देशों पर इसका सबसे बुरा असर पड़ सकता है और इन देशों की जीडीपी को 17 प्रतिशत तक नुकसान हो सकता है।

ईटीएच ज्यूरिख, स्विटजरलैंड की अगुआई में किए गए अध्ययन के अनुसार वैश्विक स्तर पर जताए गए आर्थिक नुकसान का आधा हिस्सा अत्यधिक गर्मी से जुड़ा हो सकता है। चरम मौसमी घटनाओं के विश्लेषण में पाया गया है कि लू का लोगों के जीवन और आर्थिक गतिविधियों पर सबसे ज्यादा असर पड़ता है। अध्ययन में कहा गया है कि तापमान बढ़ने का सबसे ज्यादा प्रभाव अफ्रीका और मध्य पूर्व के देशों पर पड़ेगा।

शोधकर्ताओं ने पाया है कि विश्व में बारिश और तापमान के पैटर्न में बदलाव को जोड़ने पर जलवायु परिवर्तन की वजह से होने वाला आर्थिक नुकसान बढ़ जाता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि वैश्विक तापमान की वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने से अनुमानित आर्थिक नुकसान को दो तिहाई तक कम किया जा सकता है।

शोधकर्ताओं ने आगे पाया कि किसी स्थान पर थोड़े समय के भीतर होने वाली वर्षा और तापमान में परिवर्तन को ध्यान में रखने के बाद दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन की लागत बढ़ गई है।

अध्ययन के लिए, शोधकर्ताओं ने 33 वैश्विक जलवायु मॉडल का उपयोग किया और वर्ष 1850-2100 की अवधि के लिए ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और आय वृद्धि दोनों से संबंधित जलवायु संकेतकों का विश्लेषण किया। संकेतकों में वार्षिक औसत तापमान, वार्षिक वर्षा और अत्यधिक वर्षा शामिल थे।

शोधकर्ताओं ने स्वीकार किया कि जलवायु परिवर्तन के लागत प्रभावों का अनुमान लगाते समय पर्याप्त अनिश्चितताएं बनी हुई हैं। उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन की कुल लागत "काफ़ी अधिक" होने की संभावना है क्योंकि अध्ययन में गैर-आर्थिक प्रभाव, सूखा, समुद्र-स्तर में वृद्धि और जलवायु परिवर्तन बिंदु शामिल नहीं हैं।

 

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