सुभाष चंद्र बोस के कहने पर अंग्रेजों से लड़े थे जमींदार सिह

बगहा। वाल्मीकिनगर के पिपराकुट्टी निवासी आजाद हिद फौज के सिपाही स्वतंत्रता सेनानी जमींदार सिंह ने सुभाषचंद्र बोस के आह्वान पर देश हित के लिए अंग्रे•ाी सेना के विरुद्ध लड़ाई लड़ी थी।

By JagranEdited By: Publish:Sun, 23 Jan 2022 12:31 AM (IST) Updated:Sun, 23 Jan 2022 12:31 AM (IST)
सुभाष चंद्र बोस के कहने पर अंग्रेजों से लड़े थे जमींदार सिह
सुभाष चंद्र बोस के कहने पर अंग्रेजों से लड़े थे जमींदार सिह

बगहा। वाल्मीकिनगर के पिपराकुट्टी निवासी आजाद हिद फौज के सिपाही स्वतंत्रता सेनानी जमींदार सिंह ने सुभाषचंद्र बोस के आह्वान पर देश हित के लिए अंग्रे•ाी सेना के विरुद्ध लड़ाई लड़ी थी। बाद में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ताम्रपत्र देकर उन्हें सम्मानित किया था।

नेता जी सुभाषचंद्र बोस के साथ आजादी की जंग लड़ने वाले महान स्वतंत्रता सेनानी लांस नायक जमींदार सिंह सही मायने में स्वतंत्रता के सारथी थे। 10 मई 2014 को इनका निधन हो गया। उम्र के अंतिम पड़ाव तक स्वतंत्रता दिवस व गणतंत्र दिवस पर वे पूरी तैयारी के साथ झंडोत्तोलन किया करते थे। झंडे को सलामी देते थे। गांव के लोगों और बच्चों को बुलाकर मिठाई खिलाते थे और आजादी की लड़ाई के अपने संस्मरण सुनाते थे। युवाओं और स्कूली छात्रों के लिए वे प्रेरणास्रोत थे। उनके पुत्र हरिश्चंद्र सिंह आज भी अपने पिता की परंपरा को पूरी निष्ठा के साथ निभाते आ रहे हैं।

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25 दिन भूखे रह किया युद्ध 60 फौजियों के साथ जमींदार सिंह दो हजार फीट ऊंचे पोपाटांव पर पहुंच गए। वहां राशन व पानी के अभाव में 25 दिनों तक केले को आग में भूनकर खाया एवं दुश्मनों का रास्ता रोके रखा। हालांकि इस दौरान बमबारी में कई जवान शहीद हो गए। 25 दिनों के पश्चात फौजी कंपनी इनकी मदद को पहुंच गई तथा राशन पानी भी आ गया। कुछ दिनों के बाद नेता जी भी पोपाटांव पहाड़ी पर आए और उन्हें बताया कि हमारे मुख्य सहयोगी जापान देश के हिरोसिमा तथा नागासाकी नगर पर मित्र राष्ट्र की सेना ने अणु बम गिरा दिया है। जापान ने आत्मसमर्पण कर दिया है। इस बमबारी में हमारे काफी फौजी मारे जा चुके हैं। इस लिए आप लोग भी आत्मसमर्पण कर दें। नेता जी के आदेश का पालन करते हुए सभी ने दुश्मन सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। वहां से तीन चार दिनों के बाद उन्हें बांबो हवाई अड्डा से चटगांव जेल (भारत) में लाकर कैद कर दिया गया। वहां तरह-तरह की यातनाएं दी गई वहां से इन्हें चटगांव शैलीलगंज (नोआरपाली जिला) जेल में लाया गया। वहां आधा पेट खाना देकर पूरे दिन पहाड़ों पर काम कराया जाता था। यहां भी छह माह रखकर जिगर कच्छा लाया गया। उसके बाद दिल्ली लाया गया। वहीं जमींदार सिंह महात्मा गांधी के प्रार्थना सभा में शामिल होते रहे और वहां पहरा देने का काम करते थे। जवाहर लाल नेहरू के प्रयास से उन्हें वर्मा जाने का आदेश मिल गया। अप्रैल 1947 में वे वर्मा वापस आ गए। सन 1948 में वर्मा सरकार का भारतीय मूल के लोगों के प्रति भेदभाव बढ़ने लगा। भारतीयों की संपत्ति सीज कर ली गई। इंदिरा गांधी के प्रयास से सन 1974 के अप्रैल माह में वर्मीज रिफ्यूजी वापस अपनी मातृ भूमि भारत लौट आए। 10 मई 2014 को 96 वर्ष की अवस्था में इनका निधन हो गया।

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