रसातल की ओर राजनीति, रुपये नहीं तो टिकट नहीं

गोबर्धना गांव निवासी शारदा महतो जीवन के 80 वसंत देख चुके हैं। पुराने दिनों को याद करते हुए कहते हैं कि पहले के उम्मीदवार बेहद शालीन स्वभाव के होते थे।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 20 Apr 2019 10:39 PM (IST) Updated:Sat, 20 Apr 2019 10:39 PM (IST)
रसातल की ओर राजनीति, रुपये नहीं तो टिकट नहीं
रसातल की ओर राजनीति, रुपये नहीं तो टिकट नहीं

बगहा । गोबर्धना गांव निवासी शारदा महतो जीवन के 80 वसंत देख चुके हैं। पुराने दिनों को याद करते हुए कहते हैं कि पहले के उम्मीदवार बेहद शालीन स्वभाव के होते थे। सादगी उनकी पहचान होती थी। प्रत्याशियों की किस्मत का फैसला करने वाले मतदाता भी खुद के वोट के प्रति सजग रहते थे। धन और बल का प्रयोग चुनाव में नहीं होता था। हां चुनावी रैलियों को लेकर लोगों में खासा उत्साह रहता था। तब सिने स्टार को देखने के लिए हम लंबी दूरी तय करते थे। मतदान के दिन उत्साह से लबरेज होकर हम बूथ पर जाते थे। तब महिलाओं में वोटिग को लेकर इतना उत्साह नहीं दिखता था। श्री महतो कहते हैं कि अब तो राजनीति का मतलब रुपये से हो गया है। जिसके पॉकेट में पैसे हैं उन्हें ही टिकट मिलता है। बीते कई चुनाव का रिकार्ड उठाकर देख लीजिए, राष्ट्रीय पार्टियों ने किसी गरीब को अपना उम्मीदवार नहीं बनाया। जबकि पहले रुपये नहीं, क्षेत्र में उम्मीदवार की छवि देखी जाती थी। अब उस तरह की सहजता भी नहीं दिखती है। हर चुनाव में सैकड़ों दागी लोग उम्मीदवार बनते हैं। ऐसे लोगों के राजनीति में आने से ही देश समस्याएं खड़ी होती हैं। जन प्रतिनिधित्व अपने आप में बहुत जवाबदेही का काम हैं।

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