यहां बाहरी लोगों के भरोसे होती है मरहम पट्टी

सुपौल । आम लोगों के स्वास्थ्य के प्रति व्यवस्था कितनी आम लोगों के स्वास्थ्य के प्रति व्यवस्था कितनी सजग है उसका जीता जागता नमूना है सुपौल का सदर अस्पताल। कहने को यह जिले का सबसे बड़ा अस्पताल है लेकिन यहां बाहरी लोगों के भरोसे मरीजों की मरहम पट्टी की जाती है।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 14 Sep 2020 09:28 PM (IST) Updated:Mon, 14 Sep 2020 09:28 PM (IST)
यहां बाहरी लोगों के भरोसे होती है मरहम पट्टी
यहां बाहरी लोगों के भरोसे होती है मरहम पट्टी

सुपौल । आम लोगों के स्वास्थ्य के प्रति व्यवस्था कितनी सजग है उसका जीता जागता नमूना है सुपौल का सदर अस्पताल। कहने को यह जिले का सबसे बड़ा अस्पताल है, लेकिन यहां बाहरी लोगों के भरोसे मरीजों की मरहम पट्टी की जाती है।

एक ड्रेसर की सेवानिवृत्ति के बाद उसे आग्रह कर संविदा पर रखा गया। अवधि समाप्त होने के बाद पुन: संविदा की अवधि नहीं बढ़ाई गई। जबकि सदर अस्पताल में चार ड्रेसर के पद सृजित हैं। ये सभी पद वर्षों से खाली है। ड्रेसर के पदस्थापन के लिए कई बार अस्पताल प्रशासन द्वारा पत्राचार भी किया गया लेकिन सरकार के कानों तक जूं नहीं रेंगा। नतीजा है कि अस्पताल प्रबंधन द्वारा बाहरी लोगों से मरहम पट्टी करवाई जाती है।

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माली भी करते हैं ड्रेसिग

सदर अस्पताल की स्थिति यह है कि ड्रेसिग व आपातकालीन कक्ष में बाहरी ड्रेसर के अलावा पुरुष कक्ष सेवक व माली ड्रेसिग के कार्य में लगे रहते हैं। वैसे जो बाहरी ड्रेसर है उन्हें अस्पताल से सेवानिवृत्त हुए ड्रेसर द्वारा ट्रेंड किया गया है। ये ड्रेसर अपने कार्य के प्रति इतने समर्पित हैं कि किसी सरकारी कर्मी की तरह ससमय अपनी ड्यूटी पर पहुंच जाते हैं ताकि किसी मरीज को दिक्कतों का सामना न करना पड़े। ---------------------

नहीं मिला संविदा विस्तार

सदर अस्पताल में एक प्रशिक्षित ड्रेसर जो सेवानिवृत्त होने के बाद संविदा पर कार्यरत थे। संविदा की समयावधि पूरी होने के बाद उन्होंने सेवा विस्तार के लिए आवेदन दिया, लेकिन विडंबना देखिए कि महीनों बीत जाने के बावजूद उन्हें संविदा विस्तार नहीं मिला है। बावजूद इसके वे अस्पताल में आकर अपने देखरेख में ड्रेसिग का कार्य संपादन करवाते हैं। --------------------

कोट-

बाहरी ड्रेसर को रखना मजबूरी है। वैसे ही बाहरी ड्रेसर से काम लिया जाता है जो अस्पताल के ट्रेंड ड्रेसर के साथ काम किया हो और ट्रेंड हो गया हो। अस्पताल में एक भी ड्रेसर प्रतिनियुक्त नहीं है। ड्रेसर के लिए कई बार उच्चाधिकारियों को पत्र लिखा गया है।

डॉ.अरूण वर्मा,

उपाधीक्षक, सदर अस्पताल सुपौल

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