पार्टी टिकट के लिए भी चाहिए अपनी पूंजी

लोक सभा चुनाव भरत कुमार झासुपौल जनता के बीच अपना भाग्य आजमाने में भी प्रत्याशी की पूंजी

By JagranEdited By: Publish:Wed, 13 Mar 2019 09:57 PM (IST) Updated:Wed, 13 Mar 2019 09:57 PM (IST)
पार्टी टिकट के लिए भी चाहिए अपनी पूंजी
पार्टी टिकट के लिए भी चाहिए अपनी पूंजी

लोक सभा चुनाव:::

भरत कुमार झा,सुपौल: जनता के बीच अपना भाग्य आजमाने में भी प्रत्याशी की पूंजी आंकी जाती है। यह पूंजी उनका अपना आधार वोट होता है। पार्टी और गठबंधन भले ही सैद्धांतिक रूप से कैडर की बात करे लेकिन चुनाव में टिकट की दावेदारी तो वगैर अपनी पूंजी की नहीं होती। यह वोट बैंक अमूमन जाति के पैमाने पर ही मापा जाता है। यहां मुद्दे, विकास, नीति सब पिछले पायदान पर चले जाते हैं और जाति की बाहुल्यता शीर्ष पायदान पर आ जाती है। कोसी के इलाके की राजनीति हमेशा से जाति आधारित ही रही है। हवा, लहर आदि का भी प्रभाव समय-समय पर चला है लेकिन पार्टियों को जातीय हथकंडे तो अपनाने ही पड़े हैं। चुनावी मैदान में उतरना है तो पहले कुछ अपनी पूंजी तो होनी ही चाहिये। जी हां ये व्यापार में लगने वाली पूंजी नहीं बल्कि जनता के बीच अपना भाग्य आजमाने में भी प्रत्याशी की पूंजी आंकी जाती है। यह पूंजी उनका अपना आधार वोट होता है। पार्टी और गठबंधन भले ही सैद्धांतिक रूप से कैडर की बात करे लेकिन चुनाव में टिकट की दावेदारी तो वगैर अपनी पूंजी की नहीं होती। यह वोट बैंक अमूमन जाति के पैमाने पर ही मापा जाता है। यहां मुद्दे, विकास, नीति सब पिछले पायदान पर चले जाते हैं और जाति की बाहुल्यता शीर्ष पायदान पर आ जाती है। कोसी के इलाके की राजनीति हमेशा से जाति आधारित ही रही है। हवा, लहर आदि का भी प्रभाव समय-समय पर चला है लेकिन पार्टियों को जातीय हथकंडे तो अपनाने ही पड़े हैं। एकाध अपवाद को छोड़ दें तो हमेशा से जातीय समीकरण पर ही टिकट का बंटवारा भी होता रहा है। इसीलिये बीच-बीच में चुनाव के वक्त जातीय संगठन अपनी पूछ बढ़ाने अथवा अपनी दावेदारी को ले आगे आते रहे हैं। इसबार के चुनाव को ही लें तो सीटिग की उम्मीदवारी तय मानी जा रही है वहीं सामने जिस उम्मीदवार की चर्चा हो रही है उसका मुख्य आधर जातीय बाहुल्यता को ही माना जा रहा है। जहां जाति है तो है अन्यथा समर्थन वाली जाति या फिर जमात का भरोसा चल रहा है। पार्टी भी इस बात का पूरा ख्याल रख रही है किसके पाले कितना वोट अपना है जो पार्टी वोट के अलावा बतौर बोनस होगा। या फिर ये फार्मूला काम करता है कि पार्टी का अपने प्रभाव से जो वोट है वो तो है ही, उम्मीदवार को अपना कितना वोट है। यानी कुल मिलाकर केमेस्ट्री पूरी जाति की ही। टिकटों के देन लेन में ऐसा भी देखा गया है कि एक पार्टी दूसरी पार्टी के उम्मीदवारी की प्रतिक्षा करती है और नाम घोषणा के बाद उसके काट में अपने उम्मीदवार के नाम की घोषणा करती है। राजनीतिक गलियारे में भी चर्चा इसी फार्मूले पर होती है। हालांकि अब तक तो एक गठबंधन की उम्मीदवारी तय मानी जा रही है। सामने के उम्मीदवार के लिए बहस चलती है कि अगर फलां उम्मीदवार को वह पार्टी टिकट दे देती है तब तो कंटेस्ट जबर्दस्त होगा अन्यथा..। कुल मिलाकर यूं कह लीजिये घर में'वोट तो बाहर भी वोट'.।

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