आन द स्पाट::: थोड़ा लेट हो जाता है लेकिन ड्यूटी तो होती ही है

फोटो फाइल नंबर-5एसयूपी-6,7,8,9 जागरण संवाददाता, सुपौल: लाख सरकारी दावों के बाद भी सुपौल जिले में स

By JagranEdited By: Publish:Tue, 05 Jun 2018 05:47 PM (IST) Updated:Tue, 05 Jun 2018 05:47 PM (IST)
आन द स्पाट::: थोड़ा लेट हो जाता है लेकिन ड्यूटी तो होती ही है
आन द स्पाट::: थोड़ा लेट हो जाता है लेकिन ड्यूटी तो होती ही है

फोटो फाइल नंबर-5एसयूपी-6,7,8,9

जागरण संवाददाता, सुपौल: लाख सरकारी दावों के बाद भी सुपौल जिले में स्वास्थ्य व्यवस्था दुरुस्त नहीं हो पाई है। जिले के सबसे बड़े स्वास्थ्य संस्थान यानि सदर अस्पताल की स्थिति तो और भी बदतर बनी हुई है। लुंज-पुंज व्यवस्था के चलते यहां लचर कार्य संस्कृति ने जन्म ले लिया है। नतीजा रोगियों को जहां बड़े अस्पताल का फायदा मिलना चाहिए वहीं उन्हें यहां सिर्फ परेशानी मिल रही है। हमेशा से यहां अस्पताल प्रशासन चिकित्सक व कर्मी की कमी का रोना रोता आ रहा है। लेकिन यहां लेट लतीफी ने एक संस्कृति का रूप ले लिया है। नतीजा ओपीडी की स्थिति ऐसी रहती है कि ओपीडी के पास मरीजों की भीड़ लगी रहती है और चिकित्सक की कुर्सियां घंटों खाली पड़ी रहती है।

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समय पर नहीं खुला था ओपीडी का ताला

दिन मंगलवार और समय सुबह के आठ बजे। यह समय सदर अस्पताल में ओपीडी चलने का है लेकिन इस समय जेनरल, मेडिकल व सर्जिकल ओपीडी, हड्डी व शिशु रोग ओपीडी, दंत रोग ओपीडी, महिला रोग ओपीडी, पैथोलॉजी व एक्स-रे वाले कमरे में ताले लटक रहे थे। यहां तक कि दवा काउंटर व पुर्जा काउंटर भी बंद था। लेकिन पुर्जा काउंटर पर मरीजों की भीड़ जरूर लगी हुई थी। न कोई चिकित्सक न कोई कर्मी ही नजर आ रहे थे। 8 बजकर 10 मिनट पर एक चिकित्सक आये और इमर्जेंसी रूम में प्रवेश किए। उक्त चिकित्सक के आते ही नाईट ड्यूटी पर तैनात चिकित्सक अपनी ड्यूटी समाप्त कर चले गए। दस मिनट के बाद नेत्र सहायक व दंत चिकित्सक आये और अपने-अपने कक्ष में ड्यूटी पर तैनात हो गए।

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तीन की जगह आए एक चिकित्सक

8 बजकर 23 मिनट पर एक काउंटर खुला और मरीज पुर्जा कटवाने के लिए मारामारी करने लगे। पुन: लगभग साढ़े आठ बजे दूसरा और उसके बाद तीसरा काउंटर भी खुला और मरीज पुर्जा लेकर ओपीडी की ओर जाने लगे। ओपीडी के सामने मरीजों की भीड़ लग गई। तत्पश्चात वहां एक गार्ड पहुंचा और गेट पर टेबुल लेकर बैठ गया। 8.40 में एक चिकित्सक आये और रोगियों का इलाज शुरु हुआ। पता चला कि उक्त चिकित्सक की ड्यूटी शिशु रोग ओपीडी में लगी थी लेकिन वे जेनरल, सर्जिकल व मेडिकल ओपीडी में रोगियों का इलाज कर रहे थे। मालूम हो कि जेनरल, सर्जिकल व मेडिकल ओपीडी एक ही कमरे में चलता है और तीनों ओपीडी के लिए एक-एक चिकित्सक की ड्यूटी लगी थी। बावजूद एक ही चिकित्सक सबका इलाज कर रहे थे। इधर हड्डी व शिशु रोग ओपीडी जो कमरा नं.-39 में चलता है जहां दो चिकित्सक की ड्यूटी लगी थी लेकिन दोनों की कुर्सी खाली थी। उस कमरे में अंदर तक रोगियों की भीड़ लगी थी।

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साहब के आने का दिखा अपना समय

नौ बजे के लगभग ¨पकी देवी नाम की एक महिला दंत चिकित्सक के पास आई जो दर्द से कराह रही थी। शायद उसके पैर में मोच आ गया था। उक्त महिला ने दंत चिकित्सक से एक्स रे लिख देने के लिए कहा। दंत चिकित्सक ने उसे हड्डी वाले चिकित्सक के पास जाने की सलाह दी। लेकिन महिला का कहना था कि डाक्टर साहब नहीं आए हैं। इधर एक अन्य मरीज भी मिला जो हड्डी के इलाज के लिए बेचैन था। जब घड़ी की सूई दस पर गई साहब ओपीडी में दाखिल हुए। इधर महिला ओपीडी का नौ बजे कमरा खुला और एक गार्ड टेबुल लेकर गेट पर बैठ गया। वहीं ओपीडी के पास धीरे-धीरे महिला मरीज की भीड़ भी इकट्ठी होने लगी। दस बजकर पांच मिनट तक मैडम अपनी ड्यूटी पर नहीं पहुंची थी।

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कई दिनों से नहीं बदला गया था चादर

अस्पताल में नौ बजे तक साफ-सफाई ही चल रही थी। कहीं झाड़ू लगाया जा रहा था तो कहीं पोछा। इधर वार्डों का मुआयना करने पर पता चला कि कई-कई दिन तक बेड का चादर भी नहीं बदला जाता। इसका प्रमाण भी देखने को मिला। किसी बेड पर बैगनी तो किसी बेड पर पीला चादर बिछा हुआ था। जबकि दिन के अनुसार आसमानी रंग की चादर बेड पर बिछी रहनी चाहिए। नियम के अनुसार बैगनी चादर रविवार को तथा पीला चादर गुरुवार को बेड पर बिछा रहना चाहिए। बेड पर बिछे हुए बैगनी व पीले रंग के चादर इस बात की गवाही दे रहे थे कि कई दिन से बेड का चादर भी नहीं बदला गया है।

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कोट-

थोड़ा लेट-सेट लेकिन सभी चिकित्सक आ गये थे। दिन के अनुसार चादर क्यों नहीं बिछी हुई थी इसकी जांच करवाते हैं। वैसे व्यवस्था को पटरी पर लाने का हम भरसक प्रयास कर रहे हैं। बहुत जल्द यहां सु²ढ़ व्यवस्था देखने को मिलेगी।

डा.अजय कुमार भारती,

उपाधीक्षक,

सदर अस्पताल, सुपौल।

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