स्वतंत्रता के सारथी::::::पीड़ितों की आवाज बन जाते हैं रामचंद्र

फोटो फाइल नंबर-11एसयूपी-9 -पिता थे स्वतंत्रता सेनानी विरासत में मिली गरीबों की आवाज बनने की

By JagranEdited By: Publish:Sat, 11 Aug 2018 10:45 PM (IST) Updated:Sat, 11 Aug 2018 10:45 PM (IST)
स्वतंत्रता के सारथी::::::पीड़ितों की आवाज बन जाते हैं रामचंद्र
स्वतंत्रता के सारथी::::::पीड़ितों की आवाज बन जाते हैं रामचंद्र

फोटो फाइल नंबर-11एसयूपी-9

-पिता थे स्वतंत्रता सेनानी विरासत में मिली गरीबों की आवाज बनने की सीख

-सरकारी सेवा के दौरान भी जोरदार ढंग से उठाते रहे अराजपत्रित कर्मचारियों की आवाज

-अपने गांव की महादलित बस्ती को नदी कटान से बचाने के लिए बदलवाया खैरदाहा नदी की धारा

जागरण संवाददाता, सुपौल: स्वतंत्रता सेनानी पिता फुलेश्वर ¨सह से मिली गरीबों की आवाज बनने की सीख को पूरी तरह से आत्मसात कर लिया है पिपरा प्रखंड अंतर्गत हटबरिया निवासी रामचंद्र प्रसाद ¨सह ने। जहां कहीं गरीबों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रहार देखते हैं वहां पीड़ितों की आवाज बन जाते हैं। सरकारी सेवा के दौरान अराजपत्रित कर्मचारियों की आवाज जोरदार ढंग से उठाते रहे। समाज सेवा के लिए कई राजनीतिक दलों में गए लेकिन गरीबों की आवाज दबती देख नाता भी तोड़ा। अपने गांव में महादलित बस्ती को खैरदाहा नदी के कटान से बचाने के लिए जोरदार ढंग से आवाज उठाई जिस पर प्रशासन द्वारा नदी की धारा को मोड़ा गया। रामचंद्र बताते हैं कि 1963 में उन्होंने जनसेवक के रूप में सरकारी सेवा की शुरुआत की और 1998 में मरौना से सेवानिवृत्त हुए। बताया कि बचपन में ही पिताजी ने लोगों की आवाज बनने की सीख दी थी जो मेरे जीवन का मूलमंत्र है। सरकारी सेवा के दौरान यूनियन से जुड़ा रहा और अराजपत्रित कर्मचारियों की आवाज जोरदार ढंग से उठाता रहा। सेवानिवृत्ति बाद कई राजनीतिक दलों से जुड़ा लेकिन गरीबों की आवाज के नाम पर नाता तोड़ भी लिया। कहा कि जहां कहीं गरीबों की आवाज दबती नजर आती है वे उनके अगुवा बन जाते हैं। उनकी आवाज दबे नहीं इसके लिए सदैव तत्पर रहते हैं। कहा कि वे ऐसे वर्ग के लोगों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संबंध में जानकारी भी देते हैं। बताते हैं कि अपनी बात कहने का सबको संवैधानिक अधिकार है। बताया कि उनके गांव में लगभग डेढ़ सौ महादलित परिवार खैरदाहा नदी के कटान से प्रभावित थे। उनकी आवाज सुनने के लिए कोई तैयार नहीं था। तब उन्होंने इस टोले को बचाने के लिए आवाज उठाई। नतीजा हुआ कि तत्कालीन जिलाधिकारी हटबरिया उस बस्ती में आए। वहां नदी की स्थिति देख उन्होंने इसकी धारा मोड़ने का निर्देश विभाग को दिया। उनके निर्देश बाद काम शुरू हुआ और नदी का रुख बदला। जिसका परिणाम है कि आज भी यह टोला सुरक्षित है। बताया कि गरीब वर्ग के लोगों को उनके अधिकारों की जानकारी देना और अपनी आवाज बुलंद करने के लिए प्रेरित करना उनकी आदत में शुमार है। जहां कहीं उनकी आवाज कमजोर पड़ती है वे आवाज उठाते हैं।

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