दाल के हब शेखपुरा में अब बची हैं गिनी-चुनी मिलें
शेखपुरा। दाल के कारोबार के रूप कभी चमन रहे शेखपुरा में अब रेगिस्तान (सहरा) जैसी वीरानगी छाई है। दो दशक पहले तक शेखपुरा दाल के कारोबार के मामले में समूचे पूर्वी भारत के मुख्य केंद्र था। यहां तीन दर्जन से अधिक दाल मिलें संचालित थी तथा यहां से तैयार दालें दक्षिण बिहार (अब झारखंड) बंगाल के साथ असम मेघालय त्रिपुरा मेघालय नागालैंड तक सप्लाई होती थी।
शेखपुरा। दाल के कारोबार के रूप कभी चमन रहे शेखपुरा में अब रेगिस्तान (सहरा) जैसी वीरानगी छाई है। दो दशक पहले तक शेखपुरा दाल के कारोबार के मामले में समूचे पूर्वी भारत के मुख्य केंद्र था। यहां तीन दर्जन से अधिक दाल मिलें संचालित थी तथा यहां से तैयार दालें दक्षिण बिहार (अब झारखंड), बंगाल के साथ असम, मेघालय, त्रिपुरा, मेघालय, नागालैंड तक सप्लाई होती थी। मगर धीरे-धीरे दाल मील बंद होती गई। अब यहां गिनती के आधा दर्जन मील बचे हैं,उस पर भी तालाबंदी का खतरा लटक रहा है।
स्थानीय अर्थव्यवस्था पर पड़ा असर :
दाल मिलों के बंद होने से स्थानीय अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ा है। कारोबारी शहर छोड़कर पलायन करने को विवश हुए हैं तो हजारों श्रमिकों को रोजगार से हाथ धोना पड़ा है। व्यापार से जुड़े लोग कहते हैं शेखपुरा में दाल बनाने का काम दशकों पहले से होता था। 1990 के दशक के बाद नई तकनीक की मशीनें आने के बाद यहां की पुरानी तकनीक की मिलें पीछे होने लगी।
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नई तकनीक की वजह से पड़ा असर--
शेखपुरा के दाल मिलों के समाप्त होने के पीछे मील मालिकों के तकनीकी के मामले में पिछड़ना सबसे बड़ी वजह है। पुराने कारोबारी अनिल साव बताते हैं यहां की दाल मिलों में परंपरागत तकनीक का इस्तेमाल होता है,जबकि अब दाल मील सौर-टेक्स तकनीक की है। नई तकनीक वालों मील से दाल पूरी तरह से फ्रेंस निकलती है। सौर-टेक्स मशीन में एक से सवा करोड़ रुपया की पूंजी लगती है। यहां के मील मालिक इसमें पिछड़ गये।
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हजार से अधिक लोगों का रोजगार प्रभावित--
शहर के दाल मिलों के बंद होने से एक हजार से अधिक लोगों का रोजगार छिन गया। कारोबार से जुड़े अरुण प्रसाद बताते हैं एक दाल मील में औसतन डेढ़ से दो दर्जन श्रमिकों को काम मिलता था। शहर के लालबाग, चकदीवान तथा बुधौली में लगभग तीन दर्जन दाल मिल थे। मिल के बंद होने से इससे जुड़े कई लोगों को परिवार की परवरिश के लिए घर छोड़कर परदेश जाना पड़ा है। इसका असर शहर की अर्थव्यवस्था पर भी साफ दिखाई देता है। अब जो मील बचे हैं उसमें सालों भर काम भी नहीं होता है, फलत: मजदूरों को मौसमी काम ही मिल पाता है।
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पूर्वी-उत्तर भारत के दाल का हब था शेखपुरा--
शेखपुरा पहले पूर्वी-उत्तर भारत का दाल हब कहलाता था। पुराने कारोबारी संजय प्रसाद बताते था। यहां से प्रतिदिन औसतन 30 ट्रक दाल ( तीन सौ टन) बंगाल,असम,दक्षिण बिहार, अब झारखंड के साथ पूर्वी-उत्तर भारत के दूसरे राज्यों को भेजी जाती थी। यहां की दाल मिलों को स्थानीय टाल के साथ लखीसराय, बड़हिया, मोकामा के टाल क्षेत्र से दलहन के अनाज की आपूर्ति होती थी। बाढ़ तथा मोकामा में नई तकनीक वाली दाल मिलें स्थापित हो जाने के बाद यहां की पुरानी तकनीक वाली मीलें खंडहर हो रही है। बाजार में ही सौर-टेक्स तकनीक वाली मिलों की साफ- चकाचक दालें को पसंद की जाती है।