Rohini Acharya : किसकी सलाह पर लालू यादव ने रोहिणी को सारण से उतारा? खुद दिया जवाब, 1977 के चुनाव का किया जिक्र

Bihar Political News In Hindi राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव बुधवार को सारण में पहुंचे। याहन्न उन्होंने अपनी बेटी और राजद प्रत्याशी रोहिणी आचार्य के पक्ष में चुनाव प्रचार किया। इस दौरान उन्होंने जनता के बीच यह भी बताया कि उन्होंने रोहिणी को ही सारण से क्यों उतारा है। उन्होंने कहा कि रोहिणी ने ही उन्हें गंभीर बीमारी से बाहर निकाला।

By Jagran NewsEdited By: Mukul Kumar Publish:Thu, 18 Apr 2024 08:33 AM (IST) Updated:Thu, 18 Apr 2024 08:33 AM (IST)
Rohini Acharya : किसकी सलाह पर लालू यादव ने रोहिणी को सारण से उतारा? खुद दिया जवाब, 1977 के चुनाव का किया जिक्र
राजद प्रमुख लालू यादव और उनकी बेटी रोहिणी आचार्य। फाइल फोटो

HighLights

  • कर्ज उतारने को संसदीय चुनाव एक मौका था- लालू यादव
  • लालू यादव ने कहा कि सारण का उन पर कर्ज है

जागरण संवाददाता, छपरा। Bihar Politics In Hindi राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव बुधवार को पत्नी राबड़ी देवी और प्रत्याशी बनी बेटी रोहिणी आचार्य के साथ छपरा पहुंचे। इस दौरान उन्होंने भाषण तो नहीं दिया, लेकिन बतकही का अंदाज उनके पुराने समय का स्मरण करा रहा था। कुर्ता पायजामा पहने लालू लोगों से सीधे बात कर रहे थे। बीच बीच में चुटकी भी।

लालू (Lalu Yadav) ने कहा कि सारण का उन पर कर्ज है। 1977 की याद दिलाई कि पैसा नहीं था। यहीं के लोगों के चंदे से लड़ा और जीता। यहां के लिए बहुत कुछ करना है। कर्ज उतारने को संसदीय चुनाव एक मौका था, दल के नेताओं और वरीय कार्यकर्ताओं से बात की तो सभी ने परिवार से उम्मीदवार देने की सलाह दी।

सारण की सेवा कर यहां के लोगों के कर्ज से भी उबारेंगी

उन्होंने कहा कि आप सभी की सलाह पर ही रोहिणी (Rohini Acharya) को प्रत्याशी बनाया है। अब इन्हें लोकसभा पहुंचाना आप नेताओं-कार्यकर्ताओं की जवाबदेही है। लालू ने यह भी जोड़ा कि जिस तरह रोहिणी ने उन्हें बीमारी से उबारा, उसी तरह सारण की सेवा कर यहां के लोगों के कर्ज से भी उबारेंगी।

रोहिणी ने लालू को अपनी किडनी दान की है। रोहिणी ने भी कहा कि वे पिता के कर्ज को उतारेंगी। वे पटना से गड़खा प्रखंड के मौजमपुर गांव होते हुए छपरा के रौजा स्थित जिला राजद कार्यालय पहुंचे। यहां उनका दो दिवसीय प्रवास है।

गुरुवार को भी वे यहीं रहेंगे। लालू पहली बार यहीं से सांसद बने और यहीं से उनकी लोकसभा की यात्रा भी संपन्न हुई। इसके बाद वे लोकसभा नहीं जा सके। उन्हें देख कार्यकर्ताओं का उत्साह चरम पर था। वे स्वयं एक-एक से मिले और चुनाव की रणनीति समझाई।

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