हुक्मरानों की नजर से दूर शेरगढ़ का भूमिगत किला

????? ?????? ?? ????? ?????? ?? ???? ??????? ?? ???? ??? ???? ???? ???? ?? ??? ??? ??? ?????? ????? ?? ??? ?? ???? ????????? ?????? ?????? ?? ??? ?????? ?? ??????? ??? ???? ??????????? ?? ?? ???? ????? ?? ?? ???? ?? ???? ? ?? ????? ????? ? ?? ?????? ????? ??????????? ???? ????? ?? ??????? ?? ??? ??? ? ??? ??? ????? ???? ??? ?? ?? ????

By JagranEdited By: Publish:Fri, 19 Jul 2019 05:45 PM (IST) Updated:Sat, 20 Jul 2019 06:31 AM (IST)
हुक्मरानों की नजर से दूर शेरगढ़ का भूमिगत किला
हुक्मरानों की नजर से दूर शेरगढ़ का भूमिगत किला

रोहतास। कैमूर पहाड़ी पर स्थित शेरगढ़ का किला संरक्षण के अभाव में

अपना वजूद खोते जा रहा है। जिन भूमिगत कमरों के लिए यह किला मध्यकालीन इतिहास लेखकों के लिए कौतुहल का केन्द्र रहा, जिसे इतिहासकारों ने जी भरकर सराहा है, उस किले को अबतक न तो राज्य सरकार, न ही केंद्र सरकार पुरातात्विक स्थल घोषित कर संरक्षण के लिए आगे आ रही है। जिससे किले में उग आए पेड़ व झाड़ उन्हें दिन-प्रतिदिन ध्वस्त करते जा रहे हैं। अब सवाल यह उठने लगा है कि यह ऐतिहासिक और अनुपम कलाकृति पर आखिर कब हुक्मरानों की नजर पड़ेगी।

शेरगढ़ का किला सासाराम से 30 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम व चेनारी से लगभग 12 किमी दक्षिण में लगभग 800 फीट ऊंची कैमूर श्रृंखला की एक पहाड़ी पर स्थित है। लगभग 6 वर्ग मील क्षेत्रफल में फैले इस किले के पास से दुर्गावती नदी दक्षिण व पश्चिम से बहती है। इसके नीचे ही दुर्गावती जलाशय परियोजना का विशाल बांध बन चुका है। यहीं से गुप्ताधाम और सीताकुंड के लिए रास्ता भी है। पर्यटन की संभावनाएं यहां भरपूर हैं। सासाराम के भाजपा सांसद छेदी पासवान से भी लोगों ने इस किले को पुरातात्विक स्थल घोषित कराने की मांग की है। लोगों की मांगे कब पूरी होगी, यह भविष्य के गर्त में छिपा है। संरक्षण के अभाव में ध्वंसित हो रहा किला :

इस किले के सिंहद्वार के ऊपर पहले आठ बुर्जियां थीं, जिनमें से आज मात्र पांच बुर्जियां बची हैं। सिंहद्वार से दक्षिण की ओर रास्ता मुख्य भवन की ओर जाता है। उबड़-खाबड़ रास्ता अब जंगल व कंटिली झाड़ियों से भरा पड़ा हैं। सिंहद्वार से लगभग एक किमी दूर दक्षिण में दूसरी पहाड़ी है, जिसके रास्ते में ही एक तालाब बना हुआ है। यह रानी पोखरा के नाम से जाना जाता है। दूसरी पहाड़ी भी प्राचीर से घिरी है। इस भूमिगत किला के अंदर मुख्य महल है। प्राचीर के दरवा•ो तक जाने के लिए सीढि़यां बनी हैं। दरवाजा भी अब क्षतिग्रस्त हो चला है। भूमिगत गोलाकार कुआं है। भूमिगत कुएं से पूरब में चार मेहराब बनाते खंभों पर टिका चौकोर तह़खाना है। इस तह़खाने से पश्चिम-उत्तर में एक विशाल महल के ध्वंसावशेष बिखरे हैं। कहते हैं जानकार :

रोहतास के पुरातात्विक धरोहरों पर शोध कर चुके इतिहासकार डॉ. श्याम सुन्दर तिवारी कहते हैं कि वर्तमान शेरगढ़ का नाम पहले भुरकुड़ा का किला था। उसका उल्लेख मध्यकालीन इतिहास की पुस्तकों तारी़ख-ए-शेरशाही और 'तबकात-ए-अक़बरी' में मिलता है। खरवार राजाओं ने अपने किले को रोहतासगढ़ की ही तरह अति प्राचीन काल में बनवाया था। लेकिन इस किले पर 1529-30 ई. में शेर खां ने अधिकार कर लिया। फ्रांसिस बुकानन के अनुसार यहां भारी नरसंहार हुआ था, इसी कारण यह किला अभिशप्त और परित्यक्त हो गया।

chat bot
आपका साथी