'मैला आंचल' से खत्म हुआ कालापानी का दाग

पूर्णिया। कभी पूर्ण अरण्य और कालापानी के उपनाम से और फणीश्वरनाथ रेणु के मैला आंचल से जान

By JagranEdited By: Publish:Sun, 09 Feb 2020 09:00 PM (IST) Updated:Sun, 09 Feb 2020 09:00 PM (IST)
'मैला आंचल' से खत्म हुआ कालापानी का दाग
'मैला आंचल' से खत्म हुआ कालापानी का दाग

पूर्णिया। कभी पूर्ण अरण्य और कालापानी के उपनाम से और फणीश्वरनाथ रेणु के मैला आंचल से जाना जाने वाला पूर्णिया आज सिक्सलेन पर सवार विकास पथ पर सरपट दौड़ लगा रहा है। बैलगाड़ी से हिचकोले खाने वाली सड़कों पर लग्जरी गाड़ी की सवारी से आगे अब हवाई सफर की ओर अग्रसर है। बड़ी रेलवे लाइन ने विकास को और रफ्तार दिया है। अरण्य की जगह कंक्रीट की बड़ी-बड़ी मकानें खड़ी हैं तो कालापानी का दाग भी मशीनों ने धो डाला है। यहा का पानी आज बोतलों में बंद होकर दूसरे राज्य के लोगों की प्यास बुझा रहा है। कभी सजा के तौर पर पूर्णिया तबादला आज बाबुओं से लेकर उच्चाधिकारियों की पहली पसंद है। जंगलों से शुरू हुआ पूर्णिया का सफर 250 साल का हो चुका है।

काफी प्राचीन है पूर्णिया का इतिहास

प्राचीन ग्रंथों व पुस्तकों में वर्णित तथ्यों के आधार पर इतिहासकारों ने इसकी स्थापना का वर्ष 1770 निर्धारित किया है लेकिन जानकारों के अनुसार इसका अस्तित्व इससे भी पुराना है। सामरिक, आध्यात्मिक, भौगोलिक और प्राकृतिक दृष्टिकोण से इस क्षेत्र का शुरू से ही महत्व रहा है। पूर्व में पूर्णिया का क्षेत्र काफी विस्तृत रहा है। एक शोध के अनुसार जिला एक समय 370 किमी के परिक्षेत्र में फैला था तथा

दर्जिलिंग न्यायिक परिक्षेत्र में आता था। बाद में शासन की सहुलियत के लिए अंग्रेजों से लेकर आजाद भारत के शासकों ने इसका खंडित किया। बावजूद आज भी इसका महत्व कम नहीं हुआ है। बाग्लादेश और नेपाल की सीमा से सटे होने के कारण इसका सामरिक महत्व बरकरार है। सामरिक महत्व को देखते हुए ही यहा सैन्य हवाई अड्डा स्थापित किया गया। अब लोगों के लिए भी हवाई सेवा यहा शीघ्र शुरू होने वाली है। वहीं हिमालय व बंगाल की खाड़ी के नजदीक होने के कारण इसकी आबोहवा भी इसे विशिष्ट स्थान दिलाती है। अनुकूल मौसम के कारण ही यह इलाका मिनी दार्जिलिंग के नाम से भी मशहूर है।

पूर्ण अरण्य आज शिक्षा और मेडिकल का हब भी बन चुका है। कई बड़े-बड़े शिक्षा संस्थान आज यहा सीमाचल के साथ साथ दूसरे राज्यों के छात्रों को शिक्षा प्रदान कर रही है। उच्च शिक्षा के लिए कई इंजीनियरिंग कॉलेज यहा हैं तो मेडिकल कॉलेज का निर्माण भी प्रगति पर है। विश्रि्वद्यालय के अलावा बिहार शिक्षा बोर्ड, मदरसा बोर्ड के क्षेत्रीय कार्यालय की स्थापना हो गया है। नेपाल से लेकर बंगाल तक के लोग यहा मेडिकल सुविधा लेने आते हैं। बड़े -बड़े नर्सिंग होम में यहा 600 से अधिक चिकित्सक अपनी सेवा दे रहे हैं।

उद्योग-धंधों का भी विस्तार हो रहा है। गैस बॉटलिंग प्लाट, वाटर प्लाट, मक्का आधारित उद्योग, जूट उद्योग सहित कई लघु उद्योग यहा हजारों लोगों को रोजगार मुहैया करा रहे हैं। बियाडा क्षेत्र में भी औद्योगिक विस्तार जारी है। आने वाले समय में जिला विकास के हवाई सफर को तैयार है।

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