World Environment Day 2019: इनके बल पर सुरक्षित हरियाली, ये हैं बिहार के पर्यावरण प्रहरी

आज विश्व पर्यावरण दिवस है। इस अवसर पर जानिए कुछ ऐसे लोगों के बारे में जिन्‍होंने पर्यावरण की रक्षा का संकल्‍प लिया है। पढ़े उनके कार्यों पर फोकस करती ये विशेष रिपोर्ट।

By Amit AlokEdited By: Publish:Wed, 05 Jun 2019 11:35 AM (IST) Updated:Wed, 05 Jun 2019 10:46 PM (IST)
World Environment Day 2019: इनके बल पर सुरक्षित हरियाली, ये हैं बिहार के पर्यावरण प्रहरी
World Environment Day 2019: इनके बल पर सुरक्षित हरियाली, ये हैं बिहार के पर्यावरण प्रहरी
पटना [जागरण टीम]। पर्यावरण को लेकर चिंता तो सभी जताते हैं, मगर इसके संरक्षणके लिए आगे कुछ लोग ही आते हैं। पर्यावरण संरक्षण की दिशा में उनकी सार्थक पहल धरती की हरियाली की आस है। विश्‍व पर्यावरण दिवस के अवसर पर आइए जाने बिहार के ऐसे 10 पर्यावरण प्रहरियों को।
राजीव रंजन भारती: हरियाली मिशन बनाकर घर-घर लगा दिए पौधे
नालंदा के नूरसराय निवासी राजीव रंजन भारती उर्फ राजू ने 33 लोगों का समूह (मिशन हरियाली) बनाकर पर्यावरण संरक्षण में अपनी अलग पहचान बना ली है। उन्होंने नालंदा जिला के नूरसराय प्रखंड का बेलदारी पर गांव को हरित ग्राम बनाकर एक उदाहरण पेश किया है। यहां के हर घर में फलदार पौधे लगे हैं। मिशन हरियाली ने विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर 50 केंद्रों पर पांच हजार फलदार पौधों का वितरण भी कर रहा है।
33 सदस्यीय समूह में चिकित्सक और व्यवसायी जुड़े हैं। सभी प्रतिमाह एक-एक हजार रुपये जमा कर देते हैं। समूह ने बिना सरकार के सहयोग के 3.80 लाख फलदार पौधों का वितरण किया है। समूह के सदस्य अब तक 700 से अधिक स्कूलों में बच्चों को जागरूक करने का प्रयास कर चुके हैं। बच्चों को मुफ्त में एक-एक पौधा भी दिया गया है। बच्चों को पौधे के महत्व के बारे में बताया जाता है।

राजू बताते हैं कि मिशन हरियाली मॉडल को सेवानिवृत्त कर्नल अनुराग शुक्ला ने इंदौर में भी अपनाया है। राजू की मानें तो स्कूली बच्चों को फलदार पौधे उपलब्ध करा दिया जाएं तो पौधे लग जाएंगे और हरियाली भी बढ़ जाएगी।
पवन कुमार: गांव के सूखे कुएं-चापाकल में भर दिया पानी
बूंद -बूंद पानी का महत्व क्या है, इसे पटना स्थित बिहटा के बभनलई गांव में देखिए। गर्मी के कारण आसपास के गांवों में कुएं और चापाकल सूख गए हैं, लेकिन यहां के पवन ने इतना पानी जमा कर रखा है कि किसान धान का बिचड़ा भी बिना बारिश के ही उगा सकते हैं। उन्‍होंने मत्स्य विभाग की बंजर भूमि पर जल संरक्षण कर भू-जल स्तर को कायम रखने में कामयाबी हासिल की है। खेतों को मुफ्त में सिंचाई और मछली से नकद कमाई भी हो रही है। यह बदलाव नौकरी छोड़कर गांव लौटे युवा इंजीनियर पवन कुमार के तीन वर्षों के प्रयास का नतीजा है।
पहले बभनलई गांव के खेतों को सोन नहर से पटवन के लिए भरपूर पानी मिलता था। नहर में पानी आना बंद हुआ और सोन नदी का सोता भी सूख गया। इसके बाद भू-जल स्तर इतना नीचे चला गया कि कुएं और चापाकल भी गर्मी के दिनों में सूखने लगे।

गांव के पवन कुमार सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे। उनके पिता को फसल की वैकल्पिक सिंचाई के प्रबंध में इतना खर्च हो जाता था कि बेटा को समय पर कॉलेज का शुल्क चुकाना मुश्किल होता था। पवन ने इंजीनियीिंग की डिग्री के बाद जब हरियाणा में नौकरी शुरू की, तो घर के लिए जो पैसा भेजता वह खेतों की सिंचाई में खत्म हो जाता। इसी वजह से नौकरी छोड़ गांव में सिंचाई और पीने के लिए पानी का संकट दूर करने के इरादा से वापस लौट आए।
पवन ने जल संरक्षण के लिए मत्स्य विभाग की बंजर जमीन ली और उसमें पानी जमा रखने के लिए बांध बनाया। तालाब की खुदाई कराई। तीन वर्षों के प्रयास में पवन ने तालाब में मछली पालन कर नकद कमाई शुरू कर दी।  50 किसानों को उनके जल संचय से खेतों में पानी मिला तो मछली से अपनी कमाई भी करने लगे।
पवन बताते हैं कि पहले तो गांव में अगला-पगला कहते थे, लेकिन जब भू-जल स्तर कायम हुआ तो लोगों का सहयोग भी मिलने लगा है। अब गांव के खेतों को रसायनिक उर्वर से मुक्त कराने के लिए जैविक खाद का निर्माण और उपयोग करने के लिए प्रेरित कर रहा है।
सूबेदार यादव: सौ से ज्यादा वृक्षों के संरक्षक
भोजपुर जिले के उदवंतनगर प्रखंड के रघुपुर निवासी 65 वर्षीय सूबेदार यादव पर्यावरण संरक्षण के लिए पौधे लगाने और वृक्ष बचाने की मुहिम में जुटे हैं। सूबेदार अपने गांव में पौधरोपण के साथ उसको बचाने के लिए घेराबंदी से लेकर सिंचाई तक करते हैं। 100 से ज्यादा वृक्षों को जीवन देने में सफलता पाई है।
वे कहते हैं कि 15 वर्ष पूर्व पत्नी की मौत के बाद दुखी हो गया था। खालीपन दूर करने को पौधरोपण और वृक्ष बचाने के अभियान को जीवनसाथी बना लिया। अब पीपल, बरगद, पाकड़, नीम आदि पर्यावरणीय पौधों को जीवन देना उनकी दिनचर्या है। एक पीपल का पौधा लगा अभियान का शुरुआत की थी। उदवंतनगर प्रखंड के कोहड़ा, रघुपुर, कोहड़ा बांध, भुटौली, सोनपुर के महाराज के टोला में उनका यह अभियान जारी है। जेठ की दुपहरी हो या कड़ाके की ठंड वे खुद के लगाए पौधे को एक बार जरूर निहारने जाते हैं। आसपास खर-पतवार को साफ करने के साथ पानी देते हैं। कहीं-कहीं तो उन्हें आधा किलोमीटर से भी अधिक दूरी से पानी लाना पड़ता है।

विपिन कुमार: हरियाली से सींच रहे रिश्तों को
2017 में तिलक समारोह में सगे-संबंधियें एवं परिवार से रिश्ता बनाने के लिए परिजनों की भीड़ जुटी। रस्में हो रहीं थीं। इसी दौरान तिलक के रूप में जब पौधे भेंट किए गए तो लोगों को यह मनभावन लगा। पर्यावरण को संरक्षित करने का यह प्रयास करने वाले विपिन कुमार थे, जो अब पर्यावरण मित्र के रूप में जाने जाते हैं। 
बक्सर के मूल निवासी और पेशे से शिक्षक विपिन कुमार ने ममेरी बहन की शादी में लड़के वालों को पांच पौधे रस्म अदायगी के तौर पर दिए थे। यहां से उनका कारवां चल पड़ा और शादी-विवाह, जन्मोत्सव, तिलकोत्सव, श्राद्ध, मुंडन समारोह समेत अन्य कार्यक्रमों में पौधे गिफ्ट कर विपिन ने अन्य लोगों को प्रेरित भी किया।

विपिन कहते हैं-मैंने जब अपने गांव की सूखी नदी को देखा तो यह भाव जगा कि अगर हम आज नहीं चेतते हैं तो हमारा कल कितना भयावह होगा। फिर मैंने यह संकल्प लिया कि कुछ करुंगा और मैंने अपने घर से इसकी शुरुआत की। अब तो बहुत सारे लोग मेरे साथ जुड़ गए हैं।
6000 पौधे कर चुके दान
विपिन बताते हैं, इस मुहिम के तहत अब तक कितने पौधे लगे इसका आधिकारिक आंकड़ा तो उनके पास नहीं हैं लेकिन, लगभग छह हजार पौधों का अर्पण वह कर चुके हैं।
हो चुके हैं सम्मानित
पर्यावरण के क्षेत्र में बेहतर कार्य करने के लिए पिछले साल 15 सितंबर को विपिन कुमार को पटना में आपदा प्रबंधन प्राधिकरण एवं एसोसिएशन फॉर स्टडी एंड एक्शन(आसा) तथा बिहार राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित पर्यावरण सुरक्षा संगोष्ठी सह सम्मान समारोह में सम्मानित किया गया। विपिन कुमार को वन विभाग के एमडी पर्यावरण योद्धा सम्मान से सम्मानित कर चुके हैं।
नागेंद्र सिंह: सुधा दूध के प्लास्टिक बैग में उगा रहे नीम के पौधे
80 वर्ष की उम्र में भी मेहता नागेंद्र सिंह पर्यावरण संरक्षण में अहम भूमिका निभा रहे हैं। सुधा दूध के बैग में 300 से अधिक नीम के पौधे तैयार कर लोगों को पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रेरित कर रहे हैं। पेड़-पौधे लगाने को लेकर जगह का रोना रोनेवालों के लिए वे एक बेमिसाल उदाहरण हैं।
भू-वैज्ञानिक रहे मेहता हरित आवरण बनाए रखने में अपनी अहम भूमिका निभाते हैं। पर्यावरण पर आधारित त्रैमासिक पत्रिका हरित वसुंधरा निकालते हैं। नौकरी के दौरान ही उन्होंने जल संरक्षण और पौधरोपण को अपने जीवन का मुख्य अंग बना लिया था। देशभर में जहां कहीं भी पर्यावरण विषय पर सेमिनार होता, उसमें हिस्सा लेते।
सुधा दूध का बैग पर्यावरण के लिए घातक बन गया है। बड़ी मात्रा में लोग दूध निकालने के बाद इसे नाली या सड़क पर फेंक देते हैं, लेकिन नागेंद्र सिंह के इस कदम से लोग जागरूक हो रहे हैं और इसमें पौधा तैयार कर रहे हैं। यही नहीं डॉक्टर्स कॉलोनी स्थित अपने आवास में मिनरल वाटर वाले प्लास्टिक के बोतल में भी पौधे तैयार कर हरियाली को बचाने का काम कर रहे हैं। लोग इनसे सीख लेकर इस्तेमाल नहीं होने वाले बैग से पौधे उगाने की सीख ले रहे हैं। मेहता नागेंद्र योजना विभाग सहित कई स्थानों पर रहकर पर्यावरण को बढ़ावा देने का काम किए हैं।
डॉ. धमेंद्र: लोगों को पढ़ा रहे पर्यावरण का पाठ
पर्यावरण संरक्षण को लेकर लोगों को प्रेरित करने के लिए धर्मेंद्र ने नया तरीका अपना लिया है। वे सोशल मीडिया पर पारंपरिक पौधे नीम, तुलसी, पीपल के बारे में जानकारी देते हैं। इसके साथ ही पौधे का वितरण करने में भी लगे हैं। किसी के जन्मदिन पर उपहार में पौधे देकर अधिक से अधिक पौधे पर जोर देते हैं। खुद जगह-जगह पर जाकर  पीपल, नीम और तुलसी का पौधा लगाते रहते हैं।
मूल रूप से अरवल जिले के रहने वाले डॉ. धर्मेद्र पर्यावरण प्रहरी होने के साथ एक चिकित्सक भी हैं। सिपारा के पास उनकी स्वयं की एक नर्सरी भी है, जहां वे लोगों को मुफ्त में पौधे वितरित करते हैं। धर्मेंद्र ने अपने गांव में पीपल और नीम के 40 पौधे लगाए हैं। 1991 से लेकर आज तक धमेंद्र ने बिहार के विभिन्न जिलों के अलावा पटना शहर में भी पौधा रोपण किया। अधिक से अधिक नीम, तुलसी, पीपल, पाकड़ लगाने को प्रेरित कर रहे हैं। वे अपनी संस्था के जरिए पर्यावरण के प्रति काम करने वाले लोगों को हौसला बढ़ाने के लिए पुरस्कृत भी करते हैं।

बीएन कपूर:  अब तक लगा चुके पांच हजार पौधे
पटना सिटी के हाजीगंज में रहने वाले समाजसेवी बीएन कपूर अब तक 5000 से अधिक पौधे विभिन्न स्थानों पर लगा चुके हैं। उन्हें इस बात का अफसोस रहता है कि उनके द्वारा लगाए पौधों को लोग उखाड़ देते हैं। उन्होंने बताया कि वर्ष 2010 से मंगल तालाब के भीतरी भाग में चारों ओर पौधा लगाने का काम किया। मार्निंग वॉक के बाद सुबह में फूलों को पानी देते हैं। पौधों के आसपास से कूड़ा हटाते हैं। पर्यावरण संरक्षण के लिए वे दूसरों को भी पौधे बांटते हैं। वे आने वाले दिनों में चौक से कटरा बाजार तक पडऩे वाले स्कूलों, सामुदायिक भवनों, स्लम क्षेत्रों के प्रांगण में पौधारोपण करेंगे। उन्होंने कहा कि हर मनुष्य का दायित्व बनता है कि वे पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करें।

नरेश अग्रवाल: जहां मिलती खाली जगह, लगा देते पौधे
32 साल के नरेश अग्रवाल पर्यावरण प्रहरी की भूमिका निभा रहे हैं। पिछले एक साल से पर्यावरण की सेवा कर रहे हैं। राजधानी में राजेंद्रनगर से लेकर गांधी मैदान के रास्ते में सड़के किनारे उन्हें जो भी खाली जगह मिलती है, वहां नीम, बरगद, पीपल, और अशोक के पौधे लगाते हैं। रोज सुबह उस इलाके में जाकर पानी भी देते हैं। बताते हैं कि वे हमेशा वैसे पौधे लगाते हैं, जो आसानी से लग जाते हैं।

सच्चिदानंद सिंह: घूम-घूमकर लगाए पौधे
पटना विश्वविद्यालय के अंतर्गत बी.एड. ट्रेनिंग कॉलेज में प्रोफेसर और राष्ट्रीय सेवा योजना के विश्वविद्यालय को-ऑडिनेटर रहे डॉ. सच्चिदानंद सिंह साथी ने अपने कार्यकाल में पर्यावरण संरक्षण को लेकर कई महत्वपूर्ण कार्य किए। उन्होंने पटना विश्वविद्यालय, पटना कॉलेज, साइंस कॉलेज, पटना बीएड ट्रेनिंग कॉलेज, सिन्हा लाइब्रेरी तथा राजधानी के कई मोहल्लों में घूम-घूमकर पौधे लगाए। वे पौधे आज विशाल वृक्ष बन चुके हैं। शीशम, सखुआ, आम, अर्जुन, गमहार, पीपल जैसे वृक्षों से भविष्य को ऑक्सीजन मिल रहा है।
डॉ. साथी ने बताया कि पर्यावरण संरक्षण एंव पौधारोपण के लिए उन्होंने जन जागरुकता अभियान भी चलाया। अभियान में उनकी पत्नी डॉ. किरण सिन्‍हा भी शामिल रही। बीएनआर उच्च विद्यालय में प्रधानाध्यापिका रही डॉ. किरण ने विद्यालय परिसर तथा अन्य जगहों पर पौधे लगाए हैं। इस वृद्ध दंपती ने अपने घर आंगन को भी हरा-भरा रखा है।

प्रो. शशि शर्मा: कॉलेज में पेड़ों पर बनाए घोंसले
मगध महिला कॉलेज की प्राचार्या प्रो. शशि शर्मा ने छात्राओं को पर्यावरण के प्रति जागरूक करने के लिए अनोखी पहल की है। उन्‍होंने कॉलेज प्रांगण में ही मछलियों के  साथ ही हंस, बत्तख और चिडिय़ों के रहने की पूरी व्यवस्था है। शशि शर्मा का कहना है कि उनके पास अभी 10 बत्तख, छह हंस और मछलियां हैं। इसके अलावा उन्‍होंने कॉलेज के हर वृक्ष पर लकड़ी का घोंसला बना दिया गया है, जिसमें रात में पक्षियों को बसेरा मिलता है। साथ ही हंस और बत्तखों को भी रखने के लिए अलग से घर बनाकर दिया गया।

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