पटना म्यूजियम में है फारसी में लिखा तीन सौ साल पुराना शिवपुराण, जानें और क्या होने जा रहा बदलाव

पटना म्यूजियम की पहचान वैश्विक स्तर पर रही है। कई दुलर्भ पांडुलिपियां और पुरावशेष म्यूजियम की महत्ता को और बढ़ाते हैं। संग्रहालय में राहुल सांकृत्यायन द्वारा तिब्बत से लाई दुर्लभ पांडुलिपियां तीन सौ वर्ष पूर्व फारसी लिपि में लिखित शिव पुराण दुर्लभ आइका पेंटिंग आदि सामग्री है।

By Akshay PandeyEdited By: Publish:Sat, 31 Oct 2020 05:03 PM (IST) Updated:Sat, 31 Oct 2020 05:03 PM (IST)
पटना म्यूजियम में है फारसी में लिखा तीन सौ साल पुराना शिवपुराण, जानें और क्या होने जा रहा बदलाव
पटना म्यूजियम में रखा फारसी में लिखा शिवपुराण। जागरण आर्काइव।

पटना, जेएनएन। शहर के पुराने संग्रहालय में से एक पटना म्यूजियम की पहचान वैश्विक स्तर पर रही है। कई दुलर्भ पांडुलिपियां और पुरावशेष म्यूजियम की महत्ता को और बढ़ाते हैं। संग्रहालय में राहुल सांकृत्यायन द्वारा तिब्बत से लाई दुर्लभ पांडुलिपियां, तीन सौ वर्ष पूर्व फारसी लिपि में लिखित शिव पुराण, दुर्लभ आइका पेंटिंग आदि सामग्री है। इसके सरंक्षण को लेकर राष्ट्रीय सांस्कृतिक संपदा अनुसंधानशाला लखनऊ और पटना म्यूजियम काम करने में लगा है। पटना संग्रहालय के शोध एवं प्रकाशन के प्रभारी व बिहार रिसर्च सोसाइटी के प्रभारी डॉ. शिव कुमार मिश्र ने बताया कि पांडुलिपियों के सरंक्षण का कार्य बीते वर्ष दिसंबर माह से आरंभ है।

सरंक्षण कार्य को पूरा करने को 78 लाख का बजट

राष्ट्रीय सांस्कृतिक संपदा सरंक्षण अनुसंधानशाला लखनऊ और म्यूजियम के बीच 20 माह का एग्रीमेंट के तहत काम को जल्द पूरा करना है। पांडुलिपियों के सरंक्षण कार्य को पूरा करने के लिए 78 लाख रुपये का बजट है। यहां राहुल सांकृत्यायन द्वारा तिब्बत से लाई गई पांडुलिपियां हैं। म्यूजियम में रखे हाथी दांत, लकड़ी से निर्मित पुरावशेष, तीन सौ वर्ष पूर्व फारसी लिपि में लिखित शिव पुराण, पक्षधर मिश्र द्वारा लिखित 1464 द्वारा लिखित विष्णु पुराण है, जो कि मिथिलाक्षर लिपि में तालपत्र भी लिखा गया है। इसका भी सरंक्षण कार्य पूरा किया जाएगा।

दुर्लभ आइका पेंटिंग, ऑयल पेंटिंग के सरंक्षण पर काम किया जाना बाकी

दुर्लभ आइका पेंटिंग, ऑयल पेंटिंग के सरंक्षण पर काम किया जाना बाकी है। म्यूजियम में रखी 78 दुर्लभ पांडुलिपियों में से 26 सामग्री पर सांस्कृतिक संपदा संरक्षण अनुसंधानशाला के सरंक्षण विशेषज्ञ अजय प्रताप सिंह की देखरेख में काम चल रहा है। जिसमें हाथी दांत कलावस्तु के पांच सामग्री का सरंक्षण का कार्य पूरा हो चुका है। दुर्लभ पांडुलिपियों का संरक्षण कार्य पूरा होने के बाद अगले वर्ष लोगों के लिए प्रदर्शित किया जाएगा। जिसके बाद शोधार्थी को भी इसका लाभ मिलेगा।

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