पर्यावरण प्रदूषण का खतरा, सालों बाद भी नष्ट नहीं होती है पॉलीथिन

यदि हम समय रहते नहीं चेते तो आने वाला कल पर्यावरण सुरक्षित नहीं रह पाएगा। स्वस्थ पर्यावरण के लिए सबसे पहले हमें प्लास्टिक बैग पर रोक लगानी होगी तब ही जाकर पर्यावरण स्वस्थ हो पाएगा।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 17 Mar 2018 04:26 PM (IST) Updated:Sat, 17 Mar 2018 04:26 PM (IST)
पर्यावरण प्रदूषण का खतरा, सालों बाद भी नष्ट नहीं होती है पॉलीथिन
पर्यावरण प्रदूषण का खतरा, सालों बाद भी नष्ट नहीं होती है पॉलीथिन

पटना [जेएनएन]। राजधानी में 50 माइक्रॉन से कम मोटाई की पॉलीथिन के उपयोग पर रोक है। इसके बावजूद इसका इस्तेमाल धड़ल्ले से जारी है। इससे पर्यावरण प्रदूषण का खतरा काफी अधिक है। दरअसल पचास माइक्रॉन से कम मोटाई के पॉलीथिन की रिसाइकिलिग सभव नहीं है। इस कारण यह पर्यावरण के लिए सबसे अधिक नुकसानदेह हो जाती है।

पॉलीथिन यदि किसी भी तरीके से भूमि के अंदर दब गई तो यह भूमि को बजर बना देती है। जबकि 50 माइक्रॉन से अधिक मोटाई की पॉलीथिन को काफी हद तक रिसाइकिल करना आसान होता है। इससे पर्यावरण की सुरक्षा सभव हो पाती है।

नाला उड़ाही पर खर्च होती तीन गुना राशि

पटना नगर निगम क्षेत्र के नालों में पॉलीथिन जमा होने के कारण इसकी उड़ाही का खर्च बढ़ जाता है। राजधानी में हर दिन लगभग 05 टन प्लास्टिक कचरा निकलता है। यह पॉलीथिन किसी न किसी तरह नाले में प्रवेश कर जाती है। नालों में इसके जमा होने के कारण उड़ाही में आने वाला खर्च तीन गुना हो जाता है। निगम के अधिकारी बताते हैं कि एक नाले की दो-तीन बार तक सफाई कराई जाती है, इसके बावजूद बड़े नालों की सतह पॉलीथिन से पटी रहती है। 50 माइक्रॉन से कम की पॉलीथिन का भूमि या नाले में गलना सभव नहीं होता है। इससे सबसे अधिक परेशानी होती है। विशेषज्ञों के अनुसार कचरा प्वाइंट पर इस प्लास्टिक को पशु खा लेते हैं। इस कारण पशुओं की मौत तक हो जाती है।

जल प्रदूषण में भी पॉलीथिन की बड़ी भूमिका

पॉलीथिन उच्च घनत्व वाले पॉलीएथिलीन (एचडीपीई), अल्प घनत्व वाले पॉलीएथिलीन (एलडीपीई) और लीनियर अल्प घनत्व वाले पॉलीएथिलीन (एलएलडीपीई) में से किसी एक पदार्थ से बनी होती है। किराना एव सब्जी की दुकानों में आम इस्तेमाल में आने वाली पॉलीथिन एचडीपीई की बनी होती है। जबकि अन्य थैले एलडीपीई से निर्मित होते हैं। यदि पॉलीथिन कचरे का सही से निपटारा नहीं हो तो यह सीवरेज व जलापूर्ति पाइप लाइन तक में पहुंच जाती है। यह नाला जाम होने के साथ-साथ जल प्रदूषण का कारण भी बनती है। यहीं नहीं जमीन के अंदर दबने वाला प्लास्टिक कचरा सालों बाद भी नहीं गलता है। इससे भूमि की उर्वरा शक्ति भी खत्म हो जाती है। पेड़-पौधे के पास प्लास्टिक कचरा रखे जाने से यह सूखने भी लगता है।

प्लास्टिक कचरे से सड़क बनाने का है प्लान

नगर निगम की ओर से शहर से निकलने वाले पॉलीथिन कचरे को गलाकर सड़क बनाने की परियोजना है। निगम ने ग्रामीण कार्य विभाग से वार्ता के बाद डीपीआर विभाग को भेज दिया है। विभाग से स्वीकृति मिलने के बाद कार्रवाई आगे बढ़ेगी। निगम के इस कार्य में सिपेट, हाजीपुर तकनीकी सपोर्ट करेगी।

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