रक्षाबंधन : भाई-बहन का प्यार, अॉनलाइन हुआ त्योहार...जानिए
बदलते वक्त के साथ सबकुछ बदला है। रक्षाबंधन के लिए अब सबकुछ बस एक क्लिक में उपलब्ध है। राखी से जुड़ीं यादें, संदेश, तस्वीरें और वीडियोज शेयर कर राखी मनाने की परंपरा शुरू हो गई है।
पटना [काजल]। सावन के पूर्णिमा के दिन बहन-भाई के प्यार का त्योहार रक्षाबंधन मनाते हैं। इसका पौराणिक महत्व, एतिहासिक महत्व, सामाजिक महत्व जो भी महत्व हो, लेकिन विधि-विधान, पूजा-पाठ से परे भाई-बहन के रिश्ते को हर साल नई मजबूती देने वाला रिश्ता रक्षाबंधन, धर्म -संस्कृति से परे सबसे अनोखा और प्यारा त्योहार है।
रक्षाबन्धन को सामाजिक और पारिवारिक रिश्तों को जोड़ने का भी त्योहार कहा जा सकता है। विवाह के बाद बहनें जब पराये घर में चली जाती हैं तो इसी बहाने हर साल वे अपने सगे ही नहीं अपितु दूरदराज के रिश्तों के भाइयों तक को उनके घर जाकर राखी बाँधती है और इस प्रकार रिश्तों में दूरियां नहीं आतीं रिश्ते जीवित रहते हैं।
हर साल चलता है राखियों का ट्रेंड
रक्षाबंधन को लेकर सावन की शुरुआत के साथ ही पूरे महीने रंग-बिरंगी राखियों की दुकानें सजी रहती हैं। तरह-तरह की राखियां जिसे जो पसंद आए ले सकता है। राखियों का हर साल कुछ नया ट्रेंड रहता है। कभी तो बाजार में राजनेताओं के छोटे-छोटे मुखौटों वाली राखियां आती हैं तो कभी मशहूर फिल्म स्टारों की तस्वीरें लगी राखियां और बच्चों के लिए कार्टून कैरेक्टर वाली राखियां, इस तरह हर साल एेसी राखियों का ट्रेंड चलता है और एेसी राखियां खूब बिकती है।
अॉनलाइन शॉपिंग ने मिटा दी हैं दूरियां
जैसे-जैसे हम संचार क्रांति की इस दुनिया के करीब होते जा रहे हैं हमारे रिश्ते भी अॉनलाइन होते जा रहे हैं। भागमभाग से भरे इस जीवन में लोगों के पास वक्त की कमी आ गयी है लेकिन रिश्ते और परंपराएं अभी भी जीवित हैं। सोशल मीडिया और अॉनलाइन शॉपिंग का बढता ट्रेंड रिश्तों में दूरियां मिटाने का सबसे अच्छा साधन बनता जा रहा है।
अब अगर आपके पास राखी खरीदने या भाई के लिए थाल सजाने का वक्त नहीं है तो बस घर या अॉफिस में बैठकर एक क्लिक कीजिए सबकुछ अॉनलाइन उपलब्ध है। अब घर या अॉफिस में बैठे-बैठे ही आप रक्षाबंधन की पूरी तैयारी कर सकती हैं।
आपका भाई अगर देश के दूसरे शहरों में रह रहें हैं और नहीं आ सकते तो बस घर बैठे अाप अपने भाई के घर तक राखी के साथ मिठाई, पूजा की थाल और गिफ्ट पहुंचा सकती हैं। वैसे ही भाई भी बहनों के लिए अॉफिस में बैठकर ही एक क्लिक से गिफ्ट उनके घर तक पहुंचा सकते हैं। यह सब अॉनलाइन कंपनियों के जिम्मे है। आपको बस पैसे देने हैं और अपनी पसंद बतानी है।
सोशल मीडिया पर छाया रक्षाबंधन ट्रेंड
एेसे ही तमाम सोशल मीडिया साइट्स पर रक्षाबंधन का ट्रेंड चल रहा है। आप अपने भाई को और भाई अपनी बहन को अच्छे से अच्छे संदेश भेज सकते हैं। कुछ दिनों पहले से ही लोग रक्षाबंधन की तैयारियों को लेकर, रक्षाबंधन की पिछली यादों को लेकर वीडियो, तस्वीरें फेसबुक पर पोसट कर रहे हैं। ट्विटर के जरिए ट्वीट कर अपना संदेश पहुंचा रहे हैं और अपनी यादें साझा कर रहे हैं। सोशल साइट्स पर रक्षाबंधन के नए-पुराने गानों के अॉडियो वीडियो भी शेयर किए जा रहे हैं ।
किसी जाति-धर्म से नहीं बंधा है रक्षाबंधन
इस त्योहार को वैसे तो हिंदू का त्योहार कहते हैं लेकिन इतिहास गवाह है कि यह त्योहार किसी धर्म जाति से बंधा नहीं रहा है। इतिहास की घटना है कि मेवाड़ की रानी कर्मावती को बहादुरशाह द्वारा मेवाड़ पर हमला करने की पूर्व सूचना मिली। रानी लड़ने में असमर्थ थी अत: उसने मुगल बादशाह हुमायूँ को राखी भेज कर रक्षा की याचना की।
हुमायूँ ने मुसलमान होते हुए भी राखी की लाज रखी और मेवाड़ पहुँच कर बहादुरशाह के विरूद्ध मेवाड़ की ओर से लड़ते हुए कर्मावती व उसके राज्य की रक्षा की।
एक अन्य प्रसंगानुसार सिकन्दर की पत्नी ने अपने पति के हिन्दू शत्रु पुरूवास को राखी बाँधकर अपना मुँहबोला भाई बनाया और युद्ध के समय सिकन्दर को न मारने का वचन लिया। पुरूवास ने युद्ध के दौरान हाथ में बँधी राखी और अपनी बहन को दिये हुए वचन का सम्मान करते हुए सिकन्दर को जीवन-दान दिया। सगे भाई बहन के अतिरिक्त अनेक भावनात्मक रिश्ते भी इस पर्व से बँधे होते हैं जो धर्म, जाति और देश की सीमाओं से परे हैं।
भाई-बहन के सम्मान का प्रतीक है रक्षाबंधन
यह कच्चे धागे को पक्के रिश्ते में बदलने वाला त्योहार है। रक्षाबंधन के लिए रक्षा-सूत्र एक कच्चा धागा भी हो सकता है तो महंगी-महंगी राखियां भी हो सकती हैं। राखी और उपहारों सेे परे इस त्योहार की प्रासंगिकता यह है कि एक-दूसरे की सम्मान की रक्षा करना। यह एक ऐसा पावन पर्व है जो भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को पूरा आदर और सम्मान देता है।
महाभारत में वर्णित आख्यान कि जब कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध किया तब उनकी तर्जनी में चोट आ गई। द्रौपदी ने उस समय अपनी साड़ी फाड़कर उनकी उँगली पर पट्टी बाँध दी। यह श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था। कृष्ण ने इस उपकार का बदला बाद में चीरहरण के समय उनकी साड़ी को बढ़ाकर चुकाया।