बिहार में लाखों ने अपार्टमेंट में आशियाना तो बना लिया मगर आरक्षण के फेर में उलझ गया मामला

आरक्षण के फेर में निबंधन नहीं हो पा रहा। निबंधन के दो रास्ते हैं-सहकारिता एक्ट में कराएं या कंपनी एक्ट में। सहकारिता एक्ट के तहत कराने पर बोर्ड में आरक्षण के नियमों का पालन करना जरूरी होता है और कंपनी एक्ट में कराने पर इनकम टैक्स के लफड़े हैं।

By Akshay PandeyEdited By: Publish:Thu, 29 Jul 2021 05:05 PM (IST) Updated:Thu, 29 Jul 2021 05:05 PM (IST)
बिहार में लाखों ने अपार्टमेंट में आशियाना तो बना लिया मगर आरक्षण के फेर में उलझ गया मामला
बिहार में आरक्षण के फेर में अपार्टमेंट सोसाइटियों को मसला फंसा है। प्रतीकात्मक तस्वीर।

राज्य ब्यूरो, पटना। बिहार में लाखों लोगों ने अपार्टमेंट में आशियाना तो बना लिया, किंतु उनकी सोसाइटियों के अनधिकृत होने का ठप्पा लगा हुआ है। आरक्षण के फेर में निबंधन नहीं हो पा रहा। निबंधन के दो रास्ते हैं-सहकारिता एक्ट में कराएं या कंपनी एक्ट में। सहकारिता एक्ट के तहत कराने पर बोर्ड में आरक्षण के नियमों का पालन करना जरूरी होता है और कंपनी एक्ट में कराने पर इनकम टैक्स के लफड़े हैं। अपार्टमेंट में फ्लैट खरीदकर रहने वाले लोगों की परेशानी पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। सरकार ने एक्ट में संशोधन से इनकार कर दिया है। रास्ते बंद हैं। लिहाजा सोसाइटियां अवैध हैं। 

पटना समेत पूरे प्रदेश में तेजी से अपार्टमेंट बन रहे हैं। रेरा एक्ट के तहत कम से कम आठ फ्लैट का भी अपार्टमेंट है तो सोसाइटी बनाना जरूरी हो जाता है। बुुकिंग के छह महीने के भीतर ही निबंधन कराना होता है। किंतु लोग फ्लैट खरीद ले रहे हैं। सोसाइटी बना ले रहे हैं पर निबंधन नहीं हो पा रहा है। विवाद होने पर निबंधन नहीं होने की स्थिति में पुलिस को पता नहीं होता कि किस एक्ट में कार्रवाई की जाए। अदालत में भी मामला नहीं ठहरता। 

सोसाइटी ऑफ रजिस्ट्रेशन एक्ट के तहत पूरे देश में अपार्टमेंट सोसाइटियां निबंधित होती हैं। ऐसा बिहार में भी होना चाहिए था। निबंधन विभाग को करना चाहिए था, मगर वह इस लफड़े को लेने के लिए तैयार नहीं है। मामला जब विधानसभा में उठा तो नगर विकास विभाग ने नियमन दिया कि सहकारिता या कंपनी एक्ट के तहत निबंधन कराया जा सकता है। निर्देश के साथ-साथ दोनों विभागों को फ्रेम बनाकर भी दिया गया। किंतु समाधान तब भी नहीं मिला। सहकारिता विभाग ने हाथ खड़े कर दिए। कहा गया कि सोसाइटी में पहले आरक्षण के नियमों का पालन किया जाए। 

समस्या वहीं की वहीं रह गई। अपार्टमेंटों में फ्लैटों की बिक्री आरक्षण के नियमों के तहत नहीं होती। ऐसे में आरक्षित वर्ग का प्रतिनिधित्व बोर्ड में कैसे किया जाए। लिहाजा विधानसभा में तीसरी बार मामला उठाया गया तो सरकार ने स्पष्ट व्यवस्था दी कि आरक्षण के नियमों का पालन किए बिना निबंधन नहीं हो सकता। 

एक्ट में है लफड़ा 

कापरेटिव एक्ट की धारा-26 में प्रविधान है कि प्रत्येक सहकारी समिति के बोर्ड में एससी-एसटी, पिछड़ा वर्ग और अति पिछड़ा वर्ग के लिए दो-दो स्थान आरक्षित होंगे। इतने ही स्थान महिलाओं के लिए आरक्षित है। कुल संख्या 50 से ज्यादा नहीं होगी। 

कंपनी एक्ट में भी सौ लफड़े हैं

कंपनी एक्ट में बोर्ड को निबंधित कराने पर अलग समस्याएं आती हैं। इसमें सीए और कंपनी सेक्रेटरी रखना जरूरी होता है। आडिट एवं रिटर्न फाइल में भी लफड़े होते हैं। ऐसे में बोर्ड को वकील चलाने लग जाते हैं, जिन्हेंं अलग से पारिश्रमिक देना पड़ता है। 

निकाला जा सकता है रास्ता

सहकारिता एक्ट की धारा-5 में प्रविधान है कि एसोसिएशन किसी वजह से आरक्षण नियमों का अनुपालन नहीं कर पा रहा तो सरकार नियम को शिथिल कर सकती है। अगर जिलों के सहकारिता पदाधिकारियों को निर्देश दिया जाए कि ऐसा विषय आने पर आरक्षण का फार्मूला नहीं देखना है। निबंधन कर देना है तो बहुत हद तक समस्या खत्म हो सकती है।

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