बिहार की मिठाई सिलाव के खाजा को मिला जीआइ टैग, स्वाद की दुनिया है दीवानी

बिहार की मिठाई सिलाव के खाजा को अब जीआइ टैग मिल गया है। ये मिठाई अपने स्वाद और कुरकुरापन के लिए दुनियाभर में मशहूर है।

By Kajal KumariEdited By: Publish:Sat, 19 Jan 2019 01:50 PM (IST) Updated:Sun, 20 Jan 2019 09:27 AM (IST)
बिहार की मिठाई सिलाव के खाजा को मिला जीआइ टैग, स्वाद की दुनिया है दीवानी
बिहार की मिठाई सिलाव के खाजा को मिला जीआइ टैग, स्वाद की दुनिया है दीवानी

पटना, जेएनएन। बिहार की मिठाइयों में सिलाव का खाजा पहली मिठाई है, जिसे भारत सरकार की एजेंसी ने जीआई टैग की मान्यता दी है। इसके साथ ही अब लाजवाब व अनूठे स्वाद वाले सिलाव के खाजा को बकायदा राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पहचान मिल गई है।

चेन्नई की जीआई रजिस्ट्री ने बिहार सरकार को आधिकारिक तौर पर भी बता दिया कि सिलाव के खाजा को जीआई टैग (मार्क) मिला है। यानी, यह प्रमाणित किया गया कि सिलाव में बनने वाला खाजा अपनी गुणवत्ता व विशिष्टताओं के कारण दुनिया भर में अनूठा है। अब बिहार के अलावा कहीं और इस उत्पाद की बिक्री सिलाव के खाजा के रूप में नहीं की जा सकती है।

जीआइ टैग से क्या होता है फायदा

जीआइ टैग राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उत्पाद के अनूठेपन की प्रामाणिकता देता है। अब सिलाव के खाजा उत्पादक, अपने उत्पाद पर जीआई टैग लगाकर बिक्री कर सकते हैं। कुछ दिन पहले रसगुल्ला को लेकर बंगाल और ओडिशा के बीच जीआई टैग लेने के लिए लंबा विवाद चला था। अंततः बंगाल को जीआई टैग मिला। 

सीएम नीतीश कुमार की पहल पर गठित बिहार विरासत विकास समिति ने सिलाव के खाजा को जीआई टैग दिलाने में खास भूमिका निभाई है। समिति ने सिलाव खाजा औद्योगिक स्वावलंबी सहकारी समिति के माध्यम से जीआई रजिस्ट्री (चेन्नई) को जीआइ टैग के लिए आवेदन भेजा था।

विरासत समिति ने सिलाव खाजा की प्राचीनता मगध महाजनपद और नालंदा के इतिहास से जुड़ा हो सकता है। लिखित दस्तावेज के तौर पर ब्रिटिश पुराविद् बेगलर द्वारा 1872 में सिलाव खाजा की प्राचीनता के संबंध में दिए गए नोट को भी बताया गया। 

बिहार से इनकाे मिला है जीआइ टैग

मुजफ्फरपुर की शाही लीची, भागलपुर का कतरनी चावल, तसर सिल्क, जर्दालु आम, नवादा का मगही पान, सिक्की कला, सुजनी, मधुबनी पेंटिंग्स, एप्लीक वर्क को पहले ही जीआइ टैग मिल चुका है।

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