Bihar Assembly Election: बिहार में मांझी लग गए किनारे, अब मंझधार में सहनी की नाव

पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी जदयू के करीब चले गए हैं। अब महागठबंधन में रहे विकासशील इंसान पार्टी मुकेश सहनी मंझधार में फंसे नजर आ रहे हैं।

By Akshay PandeyEdited By: Publish:Sat, 05 Sep 2020 06:41 PM (IST) Updated:Sat, 05 Sep 2020 06:41 PM (IST)
Bihar Assembly Election: बिहार में मांझी लग गए किनारे, अब मंझधार में सहनी की नाव
Bihar Assembly Election: बिहार में मांझी लग गए किनारे, अब मंझधार में सहनी की नाव

अरुण अशेष, पटना। महागठबंधन में महत्व न मिलने के चलते पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी जदयू के करीब चले गए। उनके साथ महागठबंधन में रहे विकासशील इंसान पार्टी मुकेश सहनी मंझधार में फंसे नजर आ रहे हैं। उन्हें राजद-कांग्रेस से उम्मीद के मुताबिक सीटें नहीं मिल रही हैं। एनडीए के लिए भी महज उपयोग के पात्र हैं।  

मुकेश सहनी अधिक से अधिक और कम से कम कितनी सीटों पर लड़ेंगे यह नहीं हो पाया है। पार्टी की मान्यता के लिए 10 फीसदी सीटों पर लडऩे की अनिवार्यता है। वे इसी का हवाला देकर न्यूनतम 25 सीटों की मांग कर रहे हैं।  महागठबंधन में उन्हें इतनी सीटें मिलने नहीं जा रही हैं। खबर है कि महागठबंधन में वीआइपी के लिए अधिकतम 10 सीटें रखी गई हैंं। इनमें से कुछ सीटों पर उम्मीदवार भी दिए जाएंगे। सहनी ने एनडीए के प्रति कभी इस स्तर की कटुता का प्रदर्शन नहीं किया है, जिसे याद कर उन्हें उससे जुडऩे में शर्मिंदगी उठानी पड़े। फिर वहां भी उन्हें सीटों की किल्लत का सामना करना पड़ सकता है। एनडीए में पहले से ही सीटों के लिए मारामारी चल रही है। एक विकल्प सभी सीटों पर चुनाव लडऩे का है। सहनी के लिए इस विकल्प का चयन दुस्साहस ही माना जाएगा, क्योंकि संगठन के स्तर पर विकासशील पार्टी इतनी मजबूत नहीं है कि उसे सभी 243 विधानसभा क्षेत्रों में सक्षम उम्मीदवार मिल जाए। वैसे यह क्षमता राज्य के किसी राजनीतिक दल में नहीं है। 

पिछले साल के मई महीने में लोकसभा का चुनाव हुआ था। वीआइपी को तीन सीटें मिली थीं। एक सीट पर वह खुद लड़े। दो सीटों के लिए उन्हें बाहर से उम्मीदवार लेना पड़ा था। इनमें से एक उम्मीदवार दूसरे दल में चले गए। दूसरे की राजनीतिक सक्रियता का पता नहीं चल रहा है। सहनी की सीमा से महागठबंधन और एनडीए के दूसरे दल भी परिचित हैं। लिहाजा, दोनों खेमे में उनके लिए बहुत अधिक सीटों की गुंजाइश नहीं है। असल में महागठबंधन के दोनों बड़े दल राजद और कांग्रेस में इस बात पर अंदरूनी सहमति बनी हुई है कि जीत की अधिकतम संभावना वाले उम्मीदवारों को ही मैदान में उतारा जाए। ये विकासशील इंसान पार्टी और रालोसपा की जमीनी ताकत का भी आकलन कर रहे हैं। इस लिहाज से वीआइपी की तुलना में रालोसपा का भाव अधिक है। रालोसपा को उम्मीद से कम, मगर वीआइपी की तुलना में अधिक सीटें दी जा सकती हैं। पार्टी के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा के लिए एनडीए का मौजूदा स्वरूप स्वीकार्य नहीं है, जिसमें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व को वरीयता हासिल है। सभी सीटों पर प्रभावशाली उम्मीदवारों की खोज उनके लिए भी मुश्किल है। 

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