Bihar Assembly Election 2020: बड़े नेताओं का ये छोटा समूह, कुछ सीटों पर बढ़ाएगा बड़े दलों की परेशानी

Bihar Assembly Election 2020 विधानसभा चुनाव को लेकर कुछ नेताओं का एक छोटा समूह सक्रिय है जिसका कई सीटों पर असर है। इस कारण बड़े दलों की परेशानी बढ़ गई है।

By Amit AlokEdited By: Publish:Tue, 18 Aug 2020 08:27 PM (IST) Updated:Wed, 19 Aug 2020 09:02 PM (IST)
Bihar Assembly Election 2020: बड़े नेताओं का ये छोटा समूह, कुछ सीटों पर बढ़ाएगा बड़े दलों की परेशानी
Bihar Assembly Election 2020: बड़े नेताओं का ये छोटा समूह, कुछ सीटों पर बढ़ाएगा बड़े दलों की परेशानी

पटना, अरुण अशेष। Bihar Assembly Election 2020: बिहार विधानसभा का चुनाव करीब है। दल-बदल का दौर शुरू है। बड़े दल अपने से छोटे दलों के साथ समझौता कर रहे हैं। दो गठबंधन मुखर हैं। दोनों आमने-सामने की लड़ाई के लिए तैयार हो रहे हैं। किस गठबंधन में कौन दल शामिल होगा, यह लगभग तय है। हाल के दिनों में एक और समूह सक्रिय हो गया है। यह समूह छोटा है। खासियत यह है कि इससे एक दौर के बड़े-बड़े नेता जुड़े हुए हैं। इस समूह का कुछ क्षेत्रों में प्रभाव देखते हुए कुछ सीटों पर बड़े दलों को परेशानी हो सकती है।

जिलों के दौरे पर यशवंत सिन्हा के नेतृत्व वाला समूह

पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा (Yashwant Sinha) के नेतृत्व वाला यह समूह जिलों का दौरा कर रहा है। लोगों से कह रहा है कि बेहतर बिहार के लिए इस बार मतदान करें। यह समूह तीसरा मोर्चा (Third Front) के नाम पर सक्रिय है। बड़े दल प्रत्यक्ष तौर पर इनके अस्तित्व और चुनाव को प्रभावित करने की क्षमता को को नकार कर अपने कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। नकार का यह भाव बड़े दलों के उम्मीदवारों या संभावित उम्मीदवारों के मन में नहीं है। वे डर रहे हैं। इसलिए कि इस समूह से जुड़े नेताओं का अपने इलाके में प्रभाव है। इनके उम्मीदवार जीत के करीब न पहुंचें, फिर भी जीत का दावा करने वाले उम्मीदवारों की संभावना को कम तो कर ही सकते हैं।

जेपी आंदोलन से जुड़े रहे थे देवेंद्र प्रसाद यादव

पूर्व केंद्रीय मंत्री देवेंद्र प्रसाद यादव (Devendra Prasad Yadav) जेपी आंदोलन (JP Movement) से जुड़े रहे हैं। 1977 में कर्पूरी ठाकुर (Karpuri Thakur) मुख्यमंत्री बने थे। देवेंद्र ने कर्पूरी ठाकुर को विधायक बनाने के लिए विधानसभा से इस्तीफा दिया था। बाद में वे विधान परिषद और लोकसभा के सदस्य बने। केंद्र में मंत्री बने। इसमें कोई दो राय नहीं कि लोकसभा में उनकी जीत लालू प्रसाद (Lalu Prasad Yadav) और नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की मदद से ही संभव हो सकी। फिर भी मधुबनी जिले की कुछेक विधानसभा सीटों पर उनके समर्थन से परिणाम में बदलाव आता है।

नरेंद्र सिंह व नागमणि का भी कई सीटों पर प्रभाव

इस समूह से जुड़े पूर्व मंत्री नरेंद्र सिंह (Narendra Singh) मुुंगेर, जमुई और बांका जिले की कुछ विधानसभा सीटों के परिणाम को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं और पूर्व सांसद अरुण कुमार (Arun Kumar) दक्षिण बिहार की कुछ विधानसभा सीटों को। पूर्व सांसद रेणु कुशवाहा (Renu Kushwaha) और पूर्व केंद्रीय मंत्री नागमणि (Nagmani) भी इसी समूह से जुड़े हैं। हरेक विधानसभा क्षेत्र के स्थानीय नेताओं का भी जुड़ाव है। अधिक नहीं, ये नेता अगर दो-चार पंचायतों के वोट भी इधर-उधर कर दें तो किसी की शर्तिया जीत भी हार में बदल सकती है।

इन्हें मिल जाएंगे मजबूत उम्मीदवार

यह तय है कि मौजूदा सभी विधायकों को टिकट नहीं मिलने जा रहा है। इनमें से कुछ ऐसे भी होंगे, जिनकी क्षेत्र में तो पकड़ होगी, मगर नेतृत्व की नाराजगी के चलते बेटिकट हो जाएंगे। इस श्रेणी के उम्मीदवारों को अगर तीसरे मोर्चे का आसरा मिलेगा तो इनमें से कुछ जीत की उम्मीद पाल सकते हैं।

इनका 20 फीसद वोट पर प्रभाव

निर्दलीय और छोटे दल मिलकर बिहार विधानसभा चुनाव में 15 से 20 फीसद वोट काटते हैं। विधानसभा के पिछले चुनाव में ही छोटे दलों ने 7.82 और निर्दलीयों ने 9. 57 फीसदी वोट काटा था। इनके वोटों का योग 17.39 फीसद था। यह राजद के 18.35 से मामूली कम, लेकिन जदयू के 16.83 फीसद वोटों से थोड़ा अधिक था। अगर विकल्प उपलब्ध हो तो निर्दलीय उम्मीदवार छोटे दलों से जुड़ भी जाते हैं। इस बार इनके सामने तीसरे मोर्चे की उम्मीदवारी भी एक विकल्प है।

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