डॉ. कलाम के निधन पर छोड़ दिया था अन्न-जल, रुक नहीं रहे आंसू
नालंदा अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय के पुनर्निर्माण के लिए अपनी जमीन देने वाले किसान भोला महतो ने पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के निधन पर दो दिन तक अन्न-जल त्याग दिया। ग्रामीणों की मान-मनौवल पर बुधवार को उन्होंने अन्न-जल ग्रहण करना शुरू तो कर दिया है, लेकिन आंखें नम हैं।
नालंदा [मनोज मायावी]। नालंदा अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय के पुनर्निर्माण के लिए अपनी जमीन देने वाले किसान भोला महतो ने पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के निधन पर दो दिन तक अन्न-जल त्याग दिया।
ग्रामीणों की मान-मनौवल पर बुधवार को उन्होंने अन्न-जल ग्रहण करना शुरू तो कर दिया है, लेकिन आंखें नम हैं। मलाल यह कि अब नालंदा के गरीब किसानों की कौन सुनेगा!
पिल्खी गांव वासी भोला बताते हैं कि नालंदा अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय निर्माण को लेकर पिल्खी सहित छह गांवों की कृषि योग्य 550 एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया गया है। इसमें तीन बीघा जमीन उनकी भी है। इस जमीन से उनके 15 सदस्यीय परिवार का भरण-पोषण होता था, लेकिन औने-पौने दाम चुकाकर सरकार ने दर्जनों किसानों का भविष्य खराब कर दिया। डॉ. कलाम से गुहार पर आश्वासन मिला था कि वे राज्य सरकार के समक्ष उनका मुद्दा उठाएंगे।
बकौल भोला, पिल्खी गांव के स्टेट हाई-वे से दक्षिण में उसकी भूमि पर सिंचाई के लिए साल भर पानी उपलब्ध रहता था। इस जमीन पर सभी फसलें होती थीं।
2008 में जमीन देने की गुहार के वक्त डॉ. कलाम ने किसानों के हितों की रक्षा की बात कही थी, लेकिन अधिग्रहण के बाद सरकार ने भारी दबाव बनाकर मुआवजा प्रति कट्ठा महज 12 हजार रुपये ही दिए।
रोते हुए भोला कहते हैं कि इस मुआवजे से हमारा जीवन निर्वाह संभव नहीं है। जमीन का अधिग्रहण हो जाने से उनके समेत कई परिवार के लोगों को बाहर मजदूरी करनी पड़ रही है।
उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय की आधारशिला रखने के लिए आयोजित समारोह में आए तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. कलाम ने आस-पास के गांव के विकास का ख्याल रखते हुए विश्वविद्यालय के निर्माण की चर्चा की थी। उनके निधन से हम किसानों की उम्मीदों ने भी दम तोड़ दिया है।
कलाम साहब जब भी आते थे, गरीब किसानों को उन्नत खेती की सलाह देते थे। उनके सुझाव की वजह से ही नालंदा ने उन्नत खेती में देश-विदेश में नाम रोशन किया।