जो कमाया, वह दो महीनों में पेट पर लुटा कर आए

दुनिया में हम आए हैं तो जीना भी पड़ेगा जीवन है जहर तो पीना ही पड़ेगा। दशकों पुरानी फिल्म मदर इंडिया फिल्म की गीत की सार्थकता आज भी बरकरार है।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 29 May 2020 02:08 AM (IST) Updated:Fri, 29 May 2020 07:42 AM (IST)
जो कमाया, वह दो महीनों में पेट पर लुटा कर आए
जो कमाया, वह दो महीनों में पेट पर लुटा कर आए

मुजफ्फरपुर। दुनिया में हम आए हैं तो जीना भी पड़ेगा, जीवन है जहर तो पीना ही पड़ेगा। दशकों पुरानी फिल्म मदर इंडिया फिल्म की गीत की सार्थकता आज भी बरकरार है। रोजाना महानगरों को छोड़ सीने में लॉकडाउन की पीड़ा और सबकुछ गंवा जिदगी बचाकर लौट रहे प्रवासियों पर यह गीत सौ फीसदी लागू होती है। अबतक, मजदूरी की मजबूरी में मजदूरों का पलायन परंपरा बन गई थी। लेकिन, इस बार तस्वीर उलट है। कोरोना वायरस के संक्रमण से उत्पन्न तस्वीर ने मजदूरों को महानगरों में बेबस और लाचार कर दिया। दो माह तक महानगरों में जिदगी की जद्दोजहद के बीच अब मजदूरों की घर वापसी की राह आसान हुई है। हालांकि, सफर भी कम भयावह नहीं है। गुरुवार को दिल्ली, गुजरात और हरियाणा से लौटे प्रवासियों ने हाल पूछने पर कहा-हजूर क्या करोगे हाल जानकर। दुनिया में हम आए हैं तो जीना ही पड़ेगा। कहा- केवल जान बची है।और कुछ नहीं बचा पाए। जो कमाया था वह दो महीनों में पेट पर लूटा कर आया हूं। कभी नहीं भूलने वाले जख्म मिले

दिल्ली के पालम इलाके में ऑटो रिक्शा चलाकर जिदगी मजे में काट रहे शिवहर जिले के तरियानी निवासी मुकेश पासवान को क्या पता था कि, जिस दिल्ली में वह जिदगी संवारने आया था, वही दिल्ली इस तरह बेबस कर घर लौटने पर मजबूर करेगी। वह दिल्ली की सड़कों पर ऑटो रिक्शा चलाकर तरियानी में घर बनाने के लिए पैसे जमा कर रहा था। लेकिन, लॉकडाउन ने ऑटो रिक्शा की रफ्तार थमा दी। दो माह तक जैसे-तैसे जिदगी काटी। इस दौरान जमा पैसे समाप्त हो गए। दाने-दाने को मोहताज हो गया था। लेकिन ट्रेन चली तो वह उसमें अन्य प्रवासियों की तरह सवार हो गया। तीन दिन में बेगूसराय पहुंचा। वहां से बेतिया जाने वाली ट्रेन में सवार होकर मुजफ्फरपुर पहुंचा। कुछ इसी तरह पारू के मनोज कुमार, संतोष कुमार, सीतामढ़ी के नवीन, सरोज, मो. शाकीर, अलहसन, मीना देवी आदि ने दिल्ली में गुजरे दहशत के पलों को याद कर घर वापसी पर ईश्वर के प्रति आभार जताया। हरियाणा के रेवाड़ी में बैग कंपनी में काम करने वाले राम लाल और अजय कुमार सपरिवार मुजफ्फरपुर लौटे। पारू के रहने वाले इन लोगों ने बताया कि पांच दिन के सफर के बाद यहां पहुंचे हैं। पहले कटिहार एक्सप्रेस से बेगूसराय और फिर बेगूसराय से यहां पहुंचे हैं। बताया कि ट्रेन की रफ्तार काफी धीमी रही। कब कहां और कैसे रूट बदल जाता है, पता नहीं चलता है। इस कारण घंटों की दूरी दिनों में तय हो रही है।

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