मुजफ्फरपुर: जमीन की लालसा में तालाबों को पीते जा रहे हम, पेयजल संकट से परेशान

इसके अधिकतर भाग को भरकर मकान बना लिए गए हैंं। वहीं जो बचा है वह भी अंतिम सांस ले रहा है। सिमट रहा पड़ाव पोखर का दायर पानी को तरसेगी आस-पास की आबादी। पोखर में संचित होता है वर्षा जल भू-जल स्तर बनाए रखने में अहम भूमिका।

By Ajit KumarEdited By: Publish:Wed, 02 Jun 2021 11:41 AM (IST) Updated:Wed, 02 Jun 2021 11:41 AM (IST)
मुजफ्फरपुर: जमीन की लालसा में तालाबों को पीते जा रहे हम, पेयजल संकट से परेशान
अतिक्रमण के कारण इसका यह संकट में है।

मुजफ्फरपुर, जासं। हम तालाबों को पीते जा रहे हैं। इन पर अतिक्रमण कर मकान व दुकान बना रहे हैं। लिहाजा हम सब पानी को तरस रहे हैं। समाज की उदासीनता ने शहर के तालाबों को सूखने पर विवश कर दिया है। परिणामस्वरूप जलसंकट हमारे सामने खड़ा है। शहर के अन्य पोखरों की तरह जमीन की लालसा ने आमगोला स्थित पड़ाव पोखर के दायरे को समेट दिया है। इसके अधिकतर भाग को भरकर मकान बना लिए गए हैंं। वहीं, जो बचा है वह भी अंतिम सांस ले रहा है। समय रहते इसे नहीं बचाया गया तो आने वाले समय में आसपास की आबादी को भीषण जल संकट का सामना करना पड़ेगा। पोखर में सालोंभर वर्षा जल संचित रहने से आस-पास के इलाकों का भू-जल स्तर नहीं गिरता था। इससे लोगों के घरों में लगी मोटर सालोंभर पानी देती रहती थीं। जब से पोखर का दायरा सिमटा है आसपास के इलाकों में गर्मी आते ही भू-जल का स्तर गिरने लगा है। दैनिक जागरण के सहेज लो हर बूंद अभियान के तहत मंगलवार को बातचीत में लोगों ने ये बातें कहीं।

अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा दो एकड़ में फैला पोखर

एक समय था जब पथिक यहां रुककर अपनी प्यास बुझाते थे। दो पल आराम करके थकान मिटाते थे। आसपास के लोग यहां सुबह-शाम टहलने आते थे। बुजुर्गों की यहां चौपाल लगती थी। अफसोस, जिस पोखर का पानी शीशे की तरह साफ चमकता था अब वह काला हो गया है। पोखर अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। शहर के प्रतिष्ठित रईस उमाशंकर प्रसाद ङ्क्षसह ने आमगोला रोड से सटे दो एकड़ से अधिक भू-भाग में इसे खुदवाया था। लोगों ने इसके महत्व को नहीं समझा और अपने घरों की नालियों का मुंह इसमें खोल दिया। कूड़ा-कचरा डालना शुरू कर दिया। मौका देख अतिक्रमणकारियों ने इसके बड़े हिस्से को हड़प लिया।

पोखर के जीर्णोद्धार की अनदेखी

जल-जीवन-हरियाली कार्यक्रम के माध्यम से सरकार पोखर एवं तालाबों का जीर्णोद्धार कर रही है। न तो स्थानीय लोगों ने और न ही जनप्रतिनिधियों ने इसके जीर्णोद्धार की आवाज उठाई। नगर निगम ने भी इसके विकास को अपने एजेंडे में जगह नहीं दी। लिहाजा यह पोखर अंतिम सांस ले रहा है। इसे बचाया नहीं गया तो आने वाले समय में आसपास के इलाके में रहने वाली बड़ी आबादी को जल संकट का सामना करना पड़ेगा।  

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