दरभंगा में दीक्षांत समारोह में बोले राज्यपाल : वर्तमान समय में भी संस्कृत शिक्षा नितांत आवश्यक

संस्कृत साहित्य के आदर्श वाक्यों का समावेश प्रारंभिक कक्षाओं के पाठ्यग्रंथों में होना चाहिए ताकि बालकों को नैतिक शिक्षा शुरू से ही मिल सके।

By Ajit KumarEdited By: Publish:Tue, 20 Nov 2018 01:20 PM (IST) Updated:Tue, 20 Nov 2018 01:20 PM (IST)
दरभंगा में दीक्षांत समारोह में बोले राज्यपाल : वर्तमान समय में भी संस्कृत शिक्षा नितांत आवश्यक
दरभंगा में दीक्षांत समारोह में बोले राज्यपाल : वर्तमान समय में भी संस्कृत शिक्षा नितांत आवश्यक
मुजफ्फरपुर, जेएनएन। कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय में आयोजित छठे दीक्षांत समारोह की अध्यक्षता करते हुए राज्यपाल सह कुलाधिपति लालजी टंडन ने कहा कि वर्तमान समय में भी संस्कृत शिक्षा नितांत आवश्यक है। आदिकाल से ही चारित्रिक शिक्षा,शांति, सद्भाव व विश्व बंधुत्व का पाठ संस्कृत विश्व को पढ़ाती रही है। वेदों, उपनिषदों, पुराणों एवं धर्मशास्त्रों में उल्लखित मातृ देवो भव,पितृ देवो भव, आचार्य देवो भव,अतिथि देवो भव की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि संस्कृत साहित्य के इन आदर्श वाक्यों का समावेश प्रारंभिक कक्षाओं के पाठ्यग्रंथों में होना चाहिए ताकि बालकों को नैतिक शिक्षा शुरू से ही मिल सके।
    इतना ही नहीं, भारत वर्ष की विश्व प्रसिद्ध सभ्यता,संस्कृति के अलावा यहां के जीवन मूल्य व आदर्श देववाणी संस्कृत में ही समाहित है। विश्व में मात्र यही एक भाषा है जो सभी प्राणियों के सुख,आरोग्य एवं कल्याण की कामना करती है। कुलाधिपति ने कहा कि संस्कृत के ज्ञान के अभाव में हम न तो भारतीय सांस्कृतिक संवृद्धि और विपुल ज्ञान संपदा से परिचित हो पाएंगे और न ही अपने राष्ट्र की बहुलता व एकात्मकता को ही सुरक्षित रख पाएंगे।
   उन्होंने संस्कृत को ही एकमात्र वैज्ञानिक भाषा बताते हुए कहा कि संस्कृत जैसी बोली जाती है वैसी ही लिखी भी जाती है। दुनिया के अनेक भाषाविदों ने स्पष्ट रूप से स्वीकार किया है कि आधुनिक तकनीकी विकास के युग तथा कम्प्यूटर के दृष्टिकोण से भी संस्कृत सर्वाधिक उपयुक्त भाषा है। भाषावाद, प्रांतवाद, क्षेत्रवाद, नक्सलवाद, आतंकवाद, जातिवाद जैसे नकारात्मक विचारों को चुनौती देने तथा राष्ट्रीय एकता को मजबूत करने के लिए संस्कृत भाषा की समग्र उन्नति के सार्थक प्रयास किये जाएं।
   वस्तुतः जगदगुरु के रूप में अगर हमें पुनः भारत को प्रतिष्ठित करना है तो संस्कृत भाषा साहित्य को समृद्ध करना होगा। उन्होंने आगाह किया कि समय रहते संस्कृत में दुर्लभ पाण्डुलियों का संरक्षण व डिजिटलाइजेशन जरूरी है। हमें तकनीकी विकास का लाभ उठाकर प्राचीन गौरवशाली व दुर्लभ कृतियों को संरक्षित कर लेना चाहिए। उन्होंने माहाराजाधिराज सर कामेश्वर सिंह के प्रति आभार व्यक्त किया।
   उम्मीद जताई कि जिस आशा व भरोसा से उन्होंने इस संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना की थी उसमें यह एकदम खरा उतरेगा। समारोह में उपाधि व मेडल प्राप्त करने वाले सभी छात्रों को शुभकामनाएं देते हुए उम्मीद जताई कि वे अब समाज व देश को नई सांस्कृतिक दिशा प्रदान करेंगे। 
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