भरोसे के काबिल नहीं सरकारी स्वास्थ्य सेवाएं, बढ़ीं लोगों की मुश्किलें
जनसंख्या के अनुपात में अस्पताल व चिकित्सक नहीं होने से परेशानी। 400 चिकित्सक पूरे जिले में मानक के अनुसार चाहिए लेकिन अभी केवल 135 ही कार्यरत।
मुजफ्फरपुर, [अमरेंद्र तिवारी]। तमाम दावों के बावजूद सरकारी स्वास्थ्य सेवाएं अब भी भरोसेमंद नहीं हैं। इसकी एक बड़ी वजह प्राथमिक स्तर पर स्वास्थ्य सेवाओं का पूरी तरह से ध्वस्त होना है। ऐसे में पूरा दबाव बड़ी संस्थाओं पर आ जाता है। इस हालत में गुणवत्ता को बनाए रख पाना संभव नहीं हो पाता। जनसंख्या के अनुपात में अस्पताल व चिकित्सक नहीें रहने के कारण जिले की एक तिहाई आबादी निजी क्लीनिक के इलाज के भरोसे है। ऐसे में गरीब व जरूरतमंदों को महंगा इलाज कराने को विवश होना पड़ रहा है। गंभीर बीमारी की स्थिति में जमीन-मकान तक बेचने की नौबत आ जाती है।
सुविधाओं की कमी
जानकारों की मानें तो जिले की जनसंख्या 2011 के आंकड़े के अनुसार 48 लाख 01 हजार 062 है। अगर मानक की बात करें तो उसके हिसाब से जिले में कम से कम 10 रेफरल अस्पताल होने चाहिए, अभी एक है। इसी तरह कम्युनिटी हेल्थ सेंटर 16 चाहिए, अभी 15 हैं। हेल्थ सबसेंटर 960 चाहिए। यह केवल 508 है। उसी तरह 400 चिकित्सक चाहिए, लेकिन अभी जिले में 135 चिकित्सक ही हैं। मानक में एक चिकित्सक को एक दिन में 40 मरीज ही देखना है।
इसके हिसाब से एक चिकित्सक पर 43 हजार मरीज का लोड है। इस सिस्टम में सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि जिले की पूरी आबादी की एक बार हेल्थ जांच करना शायद संभव नहीं है। राज्य स्तर पर रेफरल अस्पताल का औसत डाटा तीन है। जबकि यहां पर केवल एक रेफरल अस्पताल है। सीएचसी की बात करें तो राज्य का औसत डाटा दो लाख पर एक सीएचसी जबकि अपने जिले में तीन लाख पर एक सीएचसी है।
व्यापक बदलाव की जरूरत
इस स्थिति में सरकार को मिशन मोड में काम करना होगा। अस्पताल, चिकित्सक व पारा मेडिकल स्टाफ की संख्या बढाऩी होगी। इसके बाद ही जिले की पूरी आबादी को सरकारी सेवा का लाभ मिलेगा।
मरीज लौटने को विवश
बोचहां के मनोज को सांस की बीमारी है। वे सदर अस्पताल पहुंचे। यहां मरीजों की इतनी भीड़ है कि उनका नंबर ही नहीं आया। निराश होकर लौटने लगे। सदर अस्पताल के गेट पर जब उनसे मुलाकात हुई तो बताया कि पहले बोचहां पीएचसी गया था। वहां बहुत भीड़ थी। उसके बाद सदर अस्पताल आया। यहां भी दो बजे तक इलाज ही नहीं हुआ। अब निजी अस्पताल में जाना मजबूरी है। जान बचानी है तो हर परेशानी झेलनी पड़ेगी।
ऐसे सैकड़ों मरीज यहां आते हैं जो सरकारी अस्पताल से निजी अस्पताल जाते हैं। यह हालत पीएचसी, सदर अस्पताल व एसकेएमसीएच तक की है। जब चिकित्सकों से इस संबंध में बात हुई तो उन्होंने कहा कि मरीज का इतना प्रेशर है कि क्या करें? एक दिन में डेढ़ से दो सौ मरीजों का इलाज करना हो तो स्थिति यही होगी।
स्वास्थ्य व्यवस्था की स्थिति
आवश्यकता -----मौजूद
चिकित्सक 400---135
नर्स ए ग्रेड-398----39
ड्रेसर---106-----8
फार्मासिस्ट--103--33
एलटी---164---47
कर्मियों की कमी दूर करने का प्रयास जारी: प्रांतीय महासचिव
बिहार हेल्थ सर्विस एसोसिएशन पूर्व प्रांतीय महासचिव डॉ. दिनेश्वर सिंह ने कहा कि सरकारी अस्पतालों में चिकित्सकों और पारा मेडिकल कर्मियों की कमी को दूर करने के लिए एसोसिएशन की ओर से लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। सरकार यदि इस कमी को दूर कर दे तो जिले के लोगों को निजी अस्पतालों पर निर्भर नहीं होना पड़ेगा।