Bihar, Muzaffarpur Election 2020 : पहले जनता के बीच से चुने जाते थे नेता, चंदा देकर लड़ाया जाता था चुनाव

Bihar Muzaffarpur Election 2020 दल के कार्यकर्ता आपस में बैठकर तय करते थे कि किसे विधानसभा चुनाव लड़ाया जाए। पंचायत में चर्चा चलती। सहमति बनती और उसके बाद प्रखंडस्तर पर बैठक की जाती। इसके बाद जिलास्तर फिर राज्य मुख्यालय जाकर अंतिम निर्णय होता था।

By Ajit KumarEdited By: Publish:Thu, 08 Oct 2020 08:56 AM (IST) Updated:Thu, 08 Oct 2020 08:56 AM (IST)
Bihar, Muzaffarpur Election 2020 : पहले जनता के बीच से चुने जाते थे नेता, चंदा देकर लड़ाया जाता था चुनाव
जिसके दरवाजे पर गए, वहां जो मिला खाया व प्रचार में लग गए।

मुजफ्फरपुर, अमरेंद्र तिवारी। Bihar, Muzaffarpur Election 2020 : चुनाव में शोर अब भी हो रहा, तब भी होता था। लेकिन, नजारा बदला-बदला है। मीनापुर बनुआ रानी खैरा निवासी समाजवादी नेता तेजनारायण झा उर्फ तेजू झा कहते हैं कि पहले प्रचार के लिए इतना हाईटेक सिस्टम नहीं था। दल के कार्यकर्ता आपस में बैठकर तय करते थे कि किसे विधानसभा चुनाव लड़ाया जाए। पंचायत में चर्चा चलती। सहमति बनती और उसके बाद प्रखंडस्तर पर बैठक की जाती। इसके बाद जिलास्तर, फिर राज्य मुख्यालय जाकर अंतिम निर्णय होता था। लेकिन, अब जो नजारा देख रहे, उसमें कौन नेता कहां का प्रत्याशी बन जाए, कहा नहीं जा सकता। एक तरह से जनता पर प्रत्याशी थोपने का सिलसिला चल रहा है।

जनता के समर्थन से पहुंचे सदन

समाजवादी नेता नरेंद्र प्रसाद सिंह को मीनापुर से प्रत्याशी बनाने के घटनाक्रम पर चर्चा करते हुए कहते हैं कि 1977 के चुनाव में गंजबाजार पर उस समय के समाजवादियों की बैठक हुई। उसमें महदेइंया के मुखिया राजेंद्र सिंह, समाजवादी नेता ध्रुव पांडे, सिवाईपट्टी के चुल्लाई महतो, हरैया पंचायत के सरपंच योगेंद्र सिंह, कोइली के रामध्यान राय जैसे दिग्गज शामिल हुए। आपसी राय से नरेंद्र प्रसाद सिंह का नाम तय हुआ और वे प्रत्याशी बने। आम सहमति से वे प्रत्याशी बने थे, इसलिए उन्हें इतना समर्थन मिला कि सदन तक पहुंच गए।

गठबंधन से दरके सभी मानक

साल 1990 के बाद गठबंधन का दौर चला। विधानसभा चुनाव के लिए पांच साल तक जनता और पार्टी के लिए लगे रहिए। लेकिन, जब तक चुनाव के लिए सिंबल नहीं मिल जाता, मन में बेचैनी बनी रहती है। जनता के बीच से नेता का चुनाव होने से जो विधायक बनता था, उसका जनता से संबंध होता था। पहले धन-बल की नहीं, जन-बल की ताकत की बदौलत चुनाव होता था। इतना खर्च भी कहां होता था। कार्यकर्ता गांव-गांव जाकर जुलूस निकालकर प्रचार करते चलते थे। टमटम व साइकिल से प्रचार होता था। बहुत कम खर्च पर लोग चुनाव लड़ लेते थे। अपने घर से कार्यकर्ता खाना खाकर चले। जिसके दरवाजे पर गए, वहां जो मिला खाया व प्रचार में लग गए।

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