खुले में शौच से मुक्त नहीं हुई ओडीएफ पंचायत, राष्ट्रपति अवार्ड से सम्मानित केशोपुर का हाल बेहाल

वर्ष 2008 व 19 नवंबर 2018 को ओडीएफ घोषित हुई पंचायत, पंचायत के वार्ड आज भी खुले में शौच से मुक्त नहीं हो सके।

By Ajit KumarEdited By: Publish:Wed, 13 Feb 2019 03:03 PM (IST) Updated:Wed, 13 Feb 2019 03:30 PM (IST)
खुले में शौच से मुक्त नहीं हुई ओडीएफ पंचायत, राष्ट्रपति अवार्ड से सम्मानित केशोपुर का हाल बेहाल
खुले में शौच से मुक्त नहीं हुई ओडीएफ पंचायत, राष्ट्रपति अवार्ड से सम्मानित केशोपुर का हाल बेहाल

मुजफ्फरपुर, जेएनएन। एक दशक में दो बार ओडीएफ घोषित होने के बाद भी सकरा के केशोपुर पंचायत की तस्वीर नहीं बदली। पंचायत के वार्ड आज भी खुले में शौच से मुक्त नहीं हो सके। हां इतना अवश्य हुआ कि कागजी खानापूरी कर ओडीएफ घोषित कराकर दो मुखिया पुरस्कृत हो चुके। 2008 में मुखिया सुनीता राय को राष्ट्रपति ने सम्मानित किया था। इसके ठीक 10 वर्ष बाद 19 नवंबर 2018 को पुन: पंचायत को ओडीएफ घोषित कर मुखिया दिनेश पुष्पम को सम्मानित किया गया।

महादलित बस्ती बदहाल

पंचायत का वार्ड नंबर चार महादलितों की बस्ती है। सरकार की तमाम कोशिशों के बाद भी आज भी यहां के लोगों के लिए शौचालय- पेयजल सपने के समान है। ढाई सौ परिवारों का गांव बुनियादी सुविधाओं से वंचित है। शौचालय का निर्माण कराया गया। नल जल हेतु पाइप लाइन बिछाई गई, लेकिन आधा से अधिक लोगों को शौचालय नसीब नहीं।

वार्ड सदस्य के चंगुल में मजदूर

गांव के संतू मांझी, राजेश मांझी, महेश मांझी, अरविंद मांझी, राजीव मांझी, मुकेश मांझी का कहना है कि हम लोग वार्ड सदस्य के चंगुल में फंसे हुए हैं। तीन माह से बाहर से आकर बैठे हैं, कोई सुनने वाला नहीं है। शौचालय का निर्माण अबतक नहीं हो सका है। नतीजा खाने के भी लाले पड़ गए हैं। बेकार बैठे हैं, मजदूरी भी छीन गई। अवधेश मांझी ने बताया कि गांव में नल जल का काम हो गया है। सुबह शाम पानी आता है।

जमीन नहीं होने से शौचालय से वंचित

नंदकिशोर मांझी, नेबालाल मांझी, सूरज मांझी, विजेंद्र मांझी, लालजी मांझी, शिवजी मांझी, शंभू मांझी आदि का शौचालय इसलिए नहीं बन सका कि उनके पास जमीन का अभाव है। गांव की महिलाएं आज भी शौच के लिए सुबह -शाम खेतों में जाती हैं। पेयजल की सुविधा का यह आलम है कि जहां चापाकल है वहीं कीड़े बजबजा रही है। सच तो यह है यह है कि पंचायत के लोगों को सुविधाओं के नाम पर ठगी हुई है।

तीन हजार से अधिक शौचालय बने

वर्ष 2008 में करीब दो हजार परिवारों को शौचालय बना। 2018 में करीब बारह सौ परिवार के लिए शौचालय का निर्माण कराया गया लेकिन स्थिति आज भी जस की तस है। वार्ड संख्या 5 के ग्रामीण महेश राम, प्रवेश राम का कहना है कि हम लोग 10 वर्षो से यहां पर बसे हैं, लेकिन शौचालय व पेयजल की सुविधा नहीं है। जमीन विवादित बताकर सुविधा से वंचित किया जा रहा है। पानी के लिए आधा किलोमीटर का सफर तय करना होता है। महिलाओ को शौचालय के लिए रात का इंतजार करना होता है।

    नतीजतन महिलाएं बीमार हो रही हैं।इस बावत मुखिया ने कहा कि पंचायत को ओडीएफ घोषित कर दिया गया है। 28 दिसंबर तक सभी लोगों के फॉर्म का इंट्री करा लिया गया था। जिनका काम रुक गया वे लोग कार्य करा रहे हैं। सामुदायिक शौचालय की पहल चल रही है।बीडीओ हुस्न आरा ने कहा कि वैसे लोग जो बाहर रह रहे थे, वे लोग अपने- अपने घरों में शौचालय का निर्माण करा रहे हैं। 

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