Sitamarhi News: पुपरी में नहीं बना 75 बेड वाला अनुमंडलीय अस्पताल, 11 साल पहले मुख्यमंत्री ने किया था शिलान्यास

पुपरी अनुमंडलीय अस्पताल के शिलान्यास को 11 वर्ष बीत गए। बावजूद अब तक 75 बेड वाले अनुमंडलीय अस्पताल भवन का निर्माण कार्य नहींं हो सका। 3.66 करोड़ की लागत से बनना था 75 बेड वाले अनुमंडलीय अस्पताल का भवन

By Murari KumarEdited By: Publish:Fri, 20 Nov 2020 09:25 AM (IST) Updated:Sat, 21 Nov 2020 09:48 AM (IST)
Sitamarhi News: पुपरी में नहीं बना 75 बेड वाला अनुमंडलीय अस्पताल, 11 साल पहले मुख्यमंत्री ने किया था शिलान्यास
शिलान्यास के 11 साल बाद भी पूरा नहीं हुआ अनुमंडलीय अस्पताल का भवन

सीतामढ़ी, जेएनएन। चुनाव दर चुनाव जनप्रतिनिधि बदलते गए। लेकिन, नहीं बदली पुपरी अनुमंडलीय अस्पताल की तस्वीर। शिलान्यास के 11 वर्ष बीत गए। बावजूद अब तक 75 बेड वाले अनुमंडलीय अस्पताल भवन का निर्माण कार्य नहींं हो सका। इस मामले में भवन निर्माण कंपनी की लापरवाही और सिस्टम की उदासीनता सामने आ रही है। कोर्ट के आदेश के बाद भी न तो संवेदक को शेष राशि व जुर्माने की राशि का भुगतान हो रहा है और न कार्य पूरा कर अस्पताल भवन को स्वास्थ्य विभाग को सुपुर्द किया जा रहा।

मुख्यमंत्री ने किया था शिलान्यास

अनुमंडल में पीएचसी के बोझ को कम करने के उद्देश्य से एक आधुनिक बहुमंजिले अस्पताल की नींव मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने रखी थी। उन्होंने 3 फरवरी 2009 को सिनेमा हॉल मैदान में आयोजित चुनावी सभा मे मंच से ही इसका शिलान्यास किया था। हालांकि अनुमंडलीय अस्पताल की स्वीकृति वर्ष 2005 में ही मिली। इसके बाद वर्ष 2006 की निविदा के बाद अस्पताल निर्माण कार्य का जिम्मा अवंतिका कंस्ट्रक्शन इंडिया प्राइवेट लिमिटेड नामक कंपनी को मिला। अस्पताल निर्माण के लिए विभाग से भूमि उपलब्ध कराने का आग्रह किया।

संबंधित एजेंसी ने सरकार से की। जिसके बाद राजबाग छात्रावास वाली भूमि उपलब्ध कराया गया। लेकिन, भूमि जिला परिषद की होने के कारण जिला परिषद द्वारा भूमि के बदले सरकारी कीमत के तहत राशि की मांग की गई। इस तकनीकी पेच के बाद तत्कालीन विधायक सह मंत्री शाहिद अली खां के प्रयास से निविदा के 3 साल बाद सीतामढ़ी पथ में पेट्रोल पंप के सामने कब्रिस्तान के बगल में भूमि उपलब्ध कराई गई। वह भूमि गड्ढानुमा व जलजमाव भरा रहने के बावजूद संवेदक द्वारा 23 मार्च 2009 को एग्रीमेंट किया।

अठारह माह में बनना था अस्पताल

बताया जाता है कि करीब 3.66 करोड़ की लागत से इस अत्याधुनिक अस्पताल का निर्माण प्रारंभ के अठारह माह अवधि में पूरा किया जाना था। लेकिन, भूमि उपलब्धता के कारण तीन साल बिलंब से कार्य शुरू हुई। इसके बाद संवेदक द्वारा तेजी से कार्य शुरू किए गए और 2 अप्रैल 2011 को भवन के ग्राउंड फ्लोर तक निर्माण कार्य पूरा कर भवन निर्माण विभाग से पैसे की मांग की गई। इस कार्य के आलोक में विभाग द्वारा संवेदक को कुल राशि में महज 3.18 करोड़ रुपये का ही भुगतान किया गया।

 साथ ही निर्माण के शेष कार्य पर रोक लगा दी गई। बाद में संवेदक द्वारा किए गए कार्य की शेष राशि की मांग विभाग से की जाने लगी। ऐसा नहीं होते देख संवेदक ने वर्ष 2013 में बिहार पब्लिक वर्क्स कॉन्ट्रैक्ट्स डिस्प्यूट आर्बिट्रेशन ट्रिब्यूनल पटना कोर्ट में मामला दर्ज करा दिया। इसके बाद पिछले साल आए फैसले में कोर्ट ने 3 माह में 6.50 फीसद ब्याज के साथ संवेदक को करीब 72 लाख रुपये भुगतान उपलब्ध कराकर भवन को अपने अधीन कर लेने का आदेश विभाग को दिया। इतना ही नही तीन माह में भुगतान नही होने पर 18 प्रतिशत ब्याज की दर के बिलंब रुपये लौटाने का भी निर्देश दिए गए। हैरत की बात यह है कि विभाग अब तक संवेदक को तय राशि ही दी है और बिलंब पर लगने वाली ब्याज मद की प्रति माह करीब 39 हजार रुपये बढ़ने की चिंता साल रही है।

क्या कहते हैं लोग

हरदिया गांव निवासी कमलेश मिश्र कहते है कि बीमार पड़ने पर दरभंगा व सीतामढ़ी जाना पड़ता है। हर चुनाव में नेता वोट लेने के लिए वादा कर जीतने के बाद सुधि नहीं लेते। विक्रमपुर गांव के दिलीप महतो कहते है कि अगर यह अस्पताल चालू होता तो परेशानी कम हो जाती। रामपुर गांव के शिवजी राय कहते हैं कि हर चुनाव में अस्पताल का मामला उठता रहा है लेकिन, जीतने के बाद घूम कर नहीं आते हैं।

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