Bihar Politics: कांग्रेस-RJD में फूट का फायदा उठाएगी BJP? लालू यादव के साथ कहीं फिर ना हो जाए 'खेला'

मधुबनी सीट पर 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और राजद के बीच समय पर कोई ठोस फैसला नहीं हुआ था। बाद में महागठबंधन ने यह सीट वीआईपी को दे दी। वीआईपी ने बद्री कुमार पूर्वे को मैदान में उतारा। जैसे ही महागठबंधन का यह निर्णय सामने आया वैसे ही भाजपा के लिये लड़ाई आसान हो गई क्योंकि वीआईपी के लिये यह सीट पारंपरिक नहीं थी।

By Braj Mohan Mishra Edited By: Rajat Mourya Publish:Mon, 25 Mar 2024 05:58 PM (IST) Updated:Mon, 25 Mar 2024 05:58 PM (IST)
Bihar Politics: कांग्रेस-RJD में फूट का फायदा उठाएगी BJP? लालू यादव के साथ कहीं फिर ना हो जाए 'खेला'
कांग्रेस-RJD में फूट का फायदा उठाएगी BJP? लालू यादव के साथ कहीं फिर ना हो जाए 'खेला'

HighLights

  • कभी वीआईपी को टिकट देकर महागठबंधन ने भाजपा को दिया वॉकओवर
  • कभी कांग्रेस और राजद के अलग-अलग होने का मिला लाभ
  • मुस्लिम उम्मीदवारों की लड़ाई में भी भाजपा विरोधियों को हुआ नुकसान

ब्रज मोहन मिश्र, मधुबनी। मधुबनी लोकसभा सीट पर पिछली तीन बार से भाजपा लगातार जीत रही है। भाजपा की इस जीत के पीछे विरोधियों की आपसी फूट भी बड़ी वजह रही है। जैसे फिलहाल हालात बने हैं कि बिना सीट शेयरिंग के कांग्रेस की मर्जी के बिना राजद टिकट बांट रहा है। कहीं न कहीं यह स्थिति भाजपा के लिये फायदेमंद साबित होती रही है।

मधुबनी सीट को लेकर पिछले चुनावों का इतिहास यही दर्शाता है। 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और राजद के बीच समय पर कोई ठोस फैसला नहीं हुआ था। बाद में महागठबंधन ने यह सीट वीआईपी को दे दी। वीआईपी ने बद्री कुमार पूर्वे को मैदान में उतारा। जैसे ही महागठबंधन का यह निर्णय सामने आया वैसे ही भाजपा के लिये लड़ाई आसान हो गई, क्योंकि वीआईपी के लिये यह सीट पारंपरिक नहीं थी।

यहां भाजपा के खिलाफ राजद, कांग्रेस या वामदल ही परंपरागत तौर पर मुकाबला करते रहे थे। सीपीआई के कमजोर होने के बाद 1999 से लेकर 2014 तक कांग्रेस या राजद के मुस्लिम उम्मीदवार ने ही भाजपा को टक्कर दी थी। ऐसी स्थिति में वीआईपी को सीट देना महागठबंधन के लिये घातक हो गया। ऊपर से कांग्रेस के बड़े नेता पूर्व केंद्रीय मंत्री शकील अहमद निर्दलीय चुनाव मैदान में कूद पड़े।

बड़े अंतर से जीती भाजपा

भाजपा के लिये यह मुकाबला एकतरफा हो गया। भाजपा जीती ही नहीं बल्कि बड़े अंतर से जीती। जीत का मार्जिन 47.14 प्रतिशत रहा। वहीं, वर्ष 2013 में जदयू भाजपा से अलग हो गया था। बावजूद 2014 के लोकसभा चुनाव में राजद और जदयू साथ नहीं आये। दोनों ने अलग अलग उम्मीदवार उतारे। राजद से अब्दुल बारिक सिद्दकी और जदयू से गुलाम गौस चुनाव लड़े।

यहां भाजपा के खिलाफ मुस्लिम वोट राजद और जदयू में बंट गया। राजद को 39.22 प्रतिशत और जदयू को 6.55 प्रतिशत वोट मिले। जबकि 41.6 प्रतिशत वोट लेकर भाजपा के उम्मीदवार हुकुमदेव नारायण यादव जीत गये।

साल 2009 के चुनाव में क्या हुआ?

वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव पर नजर डालें तो विरोधियों के फूट का और भी रोचक आंकड़ा सामने आता है।राजद, कांग्रेस, सीपीआई सब अलग अलग थे और भाजपा को करीब डेढ़ प्रतिशत वोट से जीत मिली थी। राजद ने अब्दुल बारिक सिद्दकी, कांग्रेस ने शकील अहमद और सीपीआई ने डॉ. हेमचंद्र झा को मैदान में उतारा।

दो बड़े दलों के मुस्लिम उम्मीदवारों ने वैसे ही भाजपा की राह आसान कर दी। ऊपर से सीपीआई ने भाजपा के विरोधी वोट को और बांट दिया। राजद को 27 प्रतिशत वोट मिले थे। जबकि कांग्रेस को 20.2 प्रतिशत वोट मिले थे। वहीं सीपीआई 9.77 प्रतिशत वोट लायी थी। भाजपा के हुकुमदेव नारायण यादव 29.48 प्रतिशत वोट लेकर जीत गये थे।

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