सरकारी स्कूलों की गरिमा बहाल का हो प्रयास

मधुबनी। एक दशक पूर्व तक सरकारी स्कूल की बेहतर पठन-पाठन की सराहना की जाती थी। आज भी जिले में अनेक सरक

By JagranEdited By: Publish:Thu, 14 Dec 2017 01:09 AM (IST) Updated:Thu, 14 Dec 2017 02:44 AM (IST)
सरकारी स्कूलों की गरिमा बहाल का हो प्रयास
सरकारी स्कूलों की गरिमा बहाल का हो प्रयास

मधुबनी। एक दशक पूर्व तक सरकारी स्कूल की बेहतर पठन-पाठन की सराहना की जाती थी। आज भी जिले में अनेक सरकारी विद्यालयों में शिक्षण व्यवस्था की गरिमा देखने को मिलती है। एक दशक से प्राइवेट स्कूलों का बढ़ता फैशन सरकारी विद्यालयों को मुंह चिढ़ाने लगा है। सरकारी विद्यालयों की बदहाल व्यवस्था से बच्चों की संख्या कम होने के साथ प्राइवेट स्कूलों में बच्चों की संख्या बढ़ती चली गई। सरकारी स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति सुनिश्चित करने का प्रयास तो जारी है लेकिन विद्यालयों के माहौल में बदलाव नहीं होने से लोगों में सरकारी विद्यालयों के प्रति बदली नजरिया से सवाल उठने लगा है। आíथक रूप से कमजोर लोग भी सरकारी के बजाय प्राइवेट स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं। जरूरत है सरकारी स्कूलों के प्राचीन परम्परा बहाल करने की। आमतौर पर यह पाया जाता रहा है कि कर्मी-पदाधिकारियों के बच्चे सरकारी स्कूल की बजाय निजी स्कूलों में पठन-पाठन करते हैं। शिक्षा के अधिकार के तहत पटना हाई कोर्ट द्वारा इस तरह के एक मामले में राज्य सरकार से सवाल किया गया है कि अधिकारियों के बच्चे सरकारी स्कूलों में क्यों नहीं पढ़ सकते।

'लोगों में शिक्षा की महत्ता बढ़ने के साथ सरकारी विद्यालयों के शिक्षा व्यवस्था में गिरावट आने से लोग अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाना बेहतर मान रहे हैं। शिक्षा की अहमियत को तरजीह मिल रहा है।'

- दुर्गा रमण दास

'सरकारी स्कूलों की प्राचीन परम्परा का बरकरार रखने के लिए सरकार और शिक्षकों को गंभीर प्रयास करना होगा। गुरु-शिष्य की परंपरा आज भी सरकारी विद्यालयों में देखने को मिलता है। प्राइवेट स्कूलों हो तरजीह नही देना चाहिए।'

- उषा झा

'सरकारी स्कूलों के शिक्षकों को पठन-पाठन के अलावा अन्य कार्य लेने से स्कूल कार्य प्रभावित होना लाजमी है। सरकारी विद्यालयों के शिक्षकों को आंदोलन की राह छोड़ शिक्षण कार्य पर ध्यान देना चाहिए।'

- हृदयनाथ शास्त्री

'पदाधिकारियों एवं कर्मियों के अलावा तथा शिक्षकों को अपने बच्चों के बच्चों का पठन-पाठन करना सरकारी स्कूलों सरकारी स्कूलों में कराना चाहिए। ताकि एक समान शिक्षा का माहौल कायम हो सके।'

- रविकांत झा

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