भूखे रहने का नहीं, सब्र और इबादत का नाम है रोजा : सबूर

कटिहार। रोजा गुनाह और अजाब से हिफाजत का जरिया है। इस्लाम में रमजान- ऊल-मुबारक की विश्

By JagranEdited By: Publish:Sun, 18 Apr 2021 07:26 PM (IST) Updated:Sun, 18 Apr 2021 07:26 PM (IST)
भूखे रहने का नहीं, सब्र और 
इबादत का नाम है रोजा : सबूर
भूखे रहने का नहीं, सब्र और इबादत का नाम है रोजा : सबूर

कटिहार। रोजा गुनाह और अजाब से हिफाजत का जरिया है। इस्लाम में रमजान- ऊल-मुबारक की विशेष महत्ता है। इस महीने को अल्लाह का महीना भी कहा जाता है जिसमें रहमतों की बारिश होती है। यह बातें फलका बस्ती जामा मस्जिद के पेश-ए-इमाम हाफिज अब्दुस सबूर ने कही। उन्होंने कहा कि रमजान-ऊल-मुबारक का पहला अशरा (दस दिन) रहमत का चल रहा है। दस रमजान के बाद दूसरा अशरा मगफिरत का शुरू हो जाएगा। उन्होंने कहा कि भूखे रहने का नहीं, बल्कि सब्र और इबादत का नाम रोजा है। आंख, मुंह, कान, नाक, हाथ, पैर अर्थात शरीर के हर अंग का रोजा होता है। जिस शख्स ने इस माह को गफलत में गुजार दिया, उसके जैसा बदनसीब इंसान दुनियां में कोई नहीं और बड़ा ही खुशनसीब है वह शख्स जिसने खुदा के खौफ से रोजा रखा और अल्लाह की इबादत की। लोगों को चाहिए कि रमजान के दूसरे अशरा में अपनी मगफिरत के लिए जितना ज्यादा हो अल्लाह से दुआएं मांगे। उन्होंने कुरआन पाक की तिलावत करने पर जोर दिया। उन्होंने सदका-ए-फितर व जकात पर रोशनी डालते हुए कहा कि हर आकिल व बालिग मुसलमान पर अपनी और अपनी नाबालिग औलाद की तरफ से जकात, खैरात तथा सदका-ए- फितर अदा करना वाजिब है। उन्होंने कहा कि गरीब पड़ोसियों के अलावा अनाथ व दीनी मदरसों के छात्रों को यह रकम देना बेहतर है। क्योंकि इसमें दोहरा सवाब हैं। उन्होंने कहा कि पूरी दुनिया आज कोरोना महामारी से लड़ रही है। प्रशासन इंसानियत को बचाने के लिए गाइडलाइन का पालन करवा रही है। खास कर कोरोना योद्धा के जज्बे को सलाम करना चाहिए। इसलिए कोरोना गाइडलाइन का पालन हर हाल में करें। अल्लाह पाक इसका भी एक नेकी बदले 70 नेकी के शबाब देंगे।

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