कैंसर पीड़ित संजय ने नक्सली मंसूबों को किया नाकाम

जमुई। समाज में स'चा पथ प्रदर्शक हो तो लोगों को मुख्यधारा से अलग होने से रोकना कितना आसान है इसे कैंसर पीड़ित संजय मुर्मू ने कर दिखाया है।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 17 Aug 2017 03:01 AM (IST) Updated:Thu, 17 Aug 2017 03:01 AM (IST)
कैंसर पीड़ित संजय ने नक्सली मंसूबों को किया नाकाम
कैंसर पीड़ित संजय ने नक्सली मंसूबों को किया नाकाम

जमुई। समाज में सच्चा पथ प्रदर्शक हो तो लोगों को मुख्यधारा से अलग होने से रोकना कितना आसान है इसे कैंसर पीड़ित संजय मुर्मू ने कर दिखाया है। नक्सलियों की मांद में रहकर संजय ने ढाई दर्जन युवाओं को संगठन में जुड़ने से रोककर उन युवाओं को नई ¨जदगी दी है। जिले के खैरा अंचल अंतर्गत हरणी पंचायत में नेंगड़ीमोड़ गांव का संजय दलित विकास ¨बदु से जुड़कर बाल केंद्रित सामुदायिक विकास के कार्यक्रमों को अंजाम देने के साथ ही मुफ्त शिक्षा और युवाओं को फुटबॉल का प्रशिक्षण देना उसके नियमित दिनचर्या में शामिल है। विपरीत परिस्थितियों में भी समाज के प्रति समर्पण भाव और सामाजिक कार्यों में उसकी लगन के लिए प्लान इंडिया ने संजय का चयन नेशनल अवार्ड के लिए किया है। 18 अगस्त को उसे इंडिया हैबिटेट सेंटर में पुरस्कृत किया जाएगा। संजय पर अर्जुन एंड स्वामीनाथन फिल्म्स, बंगलुरू ने दस अगस्त को उसके गांव आकर फिल्म शूट किया है। जिला निश्शक्तता समिति के सदस्य संजय मुर्मू के प्रतिभा और अदम्य साहस के मुरीद जिला बाल संरक्षण इकाई के निदेशक प्यारे मांझी, डीबीबी के सचिव नवीन कुमार एवं प्रबंधक शिवशंकर कहते हैं 2013 में बोन कैंसर से पीड़ित होने के बाद जीवन रक्षा के लिए हाथ गंवाने की घटना से भी वह नहीं टूटा।

केस स्टडी-1

नेंगड़ीमोड़ निवासी पप्पू कहता है कि जब नक्सली संगठन की ओर यहां के युवा अग्रसर होने को थे तभी संजय ने युवाओं को समाज की मुख्यधारा से कटने का नफा-नुकसान बता कर करीब ढ़ाई दर्जन युवकों को भटकाव की राह पर जाने से रोक लिया।

केस स्टडी-2

सुरेश मरांडी और पवन मुर्मू की मानें तो संजय ने जिस चालाकी से यहां के युवकों को नक्सली संगठन से जुड़ने से रोका है उसकी जितनी भी तारीफ की जाए कम होगी। उसने फुटबॉल का ऐसा जुनून पैदा किया कि नौजवानों को असामाजिक संगठनों के बारे में सोचने का मौका ही नहीं दिया। वह इस पिछड़े इलाके में हर वर्ष फुटबॉल टूर्नामेंट कराता है। संजय खुद भी फुटबॉल का बेहतरीन खिलाड़ी रहा है।

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2013 में हुआ था बोन कैंसर

वर्ष 2013 में संजय के दाहिने हाथ में बोन कैंसर हो गया। जान बचाने के लिए उसका हाथ काटना पड़ा। हाथ कटने के उपरांत संजय के लिए हस्ताक्षर बना पाना भी मुश्किल हो गया। तब उसे पत्नी सुनीता ने हिम्मत दी और वह बायां हाथ से लिखना शुरू किया तथा कागज-कलम की जगह मोबाइल को उसने हथियार बना लिया।

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