छठ घाटों पर जगह ढूंढना हुआ मुश्किल

चार दिनों तक चलने वाली छठ पूजा के तीसरे दिन जब दोपहर बाद छठ व्रती घाट पर पहुंचेंगे तो उनके लिए जगह ढूंढना अपने आप में चुनौती से कम नहीं होगी।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 12 Nov 2018 04:17 PM (IST) Updated:Mon, 12 Nov 2018 04:17 PM (IST)
छठ घाटों पर जगह ढूंढना हुआ मुश्किल
छठ घाटों पर जगह ढूंढना हुआ मुश्किल

गोपालगंज। चार दिनों तक चलने वाली छठ पूजा के तीसरे दिन जब दोपहर बाद छठ व्रती घाट पर पहुंचेंगे तो उनके लिए जगह ढूंढना अपने आप में चुनौती से कम नहीं होगी। कई छठ घाटों पर लोगों की भीड़ के बीच जगह ढूंढना मुश्किल है। जिला मुख्यालय के हजियापुर, सदर प्रखंड व अंचल कार्यालय के समीप का घाट, वीएम हाई स्कूल के पीछे स्थित घाट, हलखोरी साह के पोखरा, जंगलिया छठ घाट तथा तुरकहां स्थित छठ घाटों पर जगह एक बड़ी समस्या होगी।

शहर के कई छठ घाटों पर लोगों की भारी भीड़ जुटती है। भीड़ के बीच सबसे अधिक परेशानी उन परिवारों को उठानी पड़ती है, जो दूर दराज के रहने वाले हैं, तथा जिला मुख्यालय में किराये के मकान में रहते हैं। यहां के स्थाई लोगों ने तो अपना छठ प्रतिमा बनवा रखा है। लेकिन दूर दराज के लोगों का अपना कोई स्थान नहीं होने के कारण समस्याओं से जूझना पड़ता है। इस साल भी ऐसे परिवारों को घाट पर अपना स्थान ढूंढने के लिए मुश्किलों से जूझने को विवश होना पड़ेगा। वैसे प्रशासनिक स्तर पर घाट पर इंतजाम बेहतर बनाने का दावा किया जा रहा है। लेकिन असली अग्नि परीक्षा छठ घाट पर लोगों की भीड़ जमा होने के बाद होगी। इस बात की जानकारी प्रशासनिक अधिकारियों को है। ऐसे में इन घाटों पर अतिरिक्त संख्या में मजिस्ट्रेट तैनात किए गए हैं। इनसेट

क्या है छठ की लोक मान्यता

गोपालगंज : एक लोक मान्यता के अनुसार भगवान शिव के तेज से उत्पन्न बालक स्कंद को छह कृतिकाओं ने अपना स्तनपान कराकर उसकी रक्षा की थी। उस समय स्कंद के छह मुख हो गए थे। कृतिकाओं द्वारा उन्हें दुग्धपान कराया गया था इसलिए ये कार्तिकेय कहलाए। लोकमान्यता यह भी है कि यह घटना जिस मास में घटी थी उस मास का नाम कार्तिक पड़ गया। अतएव छठ मइया की पूजा कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को की जाती है। इनसेट

छठ पूजा के दौरान रखें सावधानी

- नहाय-खाय के बाद से ही साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें।

- षष्ठी के दिन यानी 13 नवंबर को पूर्वाह्न में वेदी पर जाकर छठ माता की पूजा करें, फिर घर लौट आएं।

- अपराह्न घाट पर वेदी के पास जाएं -पूजन सामग्री वेदी पर चढ़ाएं व दीप जलाएं।

- सूर्यास्त 5.25 बजे है, इसलिए अस्ताचलगामी सूर्य को दीप दिखाकर प्रसाद अर्पित करें, दूध व जल चढ़ाएं तथा दीप जल में प्रवाहित करें।

- 14 नवंबर को ब्रह्मा वेला (भोर) में परिजनों के साथ निकल जाएं और घाट पर पहुंचें। सूर्योदय 6.35 बजे है। पानी में खड़ा होकर सूर्य उदय की प्रतीक्षा करें।

- सूर्य का लाल गोला जब दिखने लगे तो दीप अर्पित कर उसे जल में प्रवाहित करें, अंजलि से जल अर्पित करें, दूध चढ़ाएं और प्रसाद भगवान सूर्य को अर्पित करें।

- स्वयं भी प्रसाद अपने आंचल में लें और आंचल का प्रसाद किसी को न दें।

- प्रसाद वितरण करें, घर आकर हवन करें और ओठगन, काली मिर्च तथा गन्ने के रस या शरबत से व्रत तोड़ें। इनसेट

छठ मइया के गीत

ये कोपि- कोपि बोलेली छठी मइया

सुनी ये सेवक लोग

ये मोरा घटिया दुबिया उपजी गइले,

मकड़ी बसेर लेले

ये हाथ जोड़ी बोलेले सेवक लोग

सुनी ये छठी मइया

ये रउरा घटिया दुबिया छीलवाई देबो,

मकड़ी उजाड़ी देबो.

ये रउरा घटिया चंदन से लिपवाई देबो,

दीपक जराई देबो

ये रउरा घटिया उखिया गड़ाई देबो,

अरघ दिलाई देबो

ये रउरा घटिया फूल छितराई देबो

हवन कराई देबो

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