52 साल से हैं जेल में हैं बंद, रिहाई के इंतजार में पथरा गईं परिजनों की आंखें

अपने इकलौते बेटे की हत्या मामले में 52 साल से जेल में बंद अंबिका चौधरी की रिहाई के इंतजार में उनकी पत्‍नी की मौत हो गई। भतीजा घर लौटने का इंतजार कर रहा है।

By Ravi RanjanEdited By: Publish:Tue, 27 Mar 2018 03:58 PM (IST) Updated:Tue, 27 Mar 2018 10:47 PM (IST)
52 साल से हैं जेल में हैं बंद, रिहाई के इंतजार में पथरा गईं परिजनों की आंखें
52 साल से हैं जेल में हैं बंद, रिहाई के इंतजार में पथरा गईं परिजनों की आंखें

गोपालगंज [जेएनएन]। क्रोध में आकर अपना होश हवास खो देना कितना भारी पड़ सकता है इसके उदाहरण हैं भोरे थाना क्षेत्र के हरदिया गांव निवासी 77 वर्षीय अंबिका चौधरी। अपने इकलौते बेटे की हत्या मामले में वाराणसी जेल में उम्रकैद की सजा भुगत रहे अंबिका चौधरी के रिहा होने का मामला लटके रहने से इस परिवार के सदस्य निराश हो चुके हैं।

52 साल से जेल में बंद इस वृद्ध की रिहाई को लेकर कई बार घर पर पत्र आया। दो साल पूर्व इनफरमिटी रोल के आधार पर उत्तर प्रदेश के राज्यपाल ने अंबिका चौधरी की रिहाई का अनुमोदन किया। लेकिन राज्यपाल के अनुमोदन के बाद भी इस वृद्ध की अब तक रिहाई नहीं हो सकी है। उम्रकैद की सजा के दौरान इस वृद्ध की पत्नी की भी मौत हो गई। दो भाइयों को भी देहांत हो गया। अब इनके भतीजे इनके घर लौटने को इंतजार कर रहे हैं।

घटना 1965 की है। तब अंबिका चौधरी के भतीजे मुरली चौधरी महज पांच साल के थे। मुरली बताते हैं कि कुछ बड़े होने पर इस घटना की जानकारी घर के सदस्यों से मिली थी। अंबिका चौधरी सेना में भर्ती हुए थे, लेकिन ट्रेनिंग के दौरान साथियों से कहा सुनी होने के बाद घर लौट आए। नौकरी छोडऩे को लेकर अंबिका चौधरी काफी तनाव में रहते थे।
इस दौरान इनका अपनी पत्नी वीणा देवी से झगड़ा हो गया। पत्नी अपने पांच साल के बेटे को छोड़ कर अपने मायके उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के भाटपारानी थाना क्षेत्र के माली छापर गांव चली गईं।

मुरली बताते हैं कि चाची के घर छोड़ कर जाने के बाद उनके चाचा की हालत विक्षिप्त जैसी हो गई थी। कुछ दिन बाद ये अपने बेटे को लेकर अपनी ससुराल चले गए। बाद में खबर आई की इन्होंने अपने बेटे की हत्या दी है तथा पुलिस ने इन्हें गिरफ्तार कर लिया है। इस मामले में 10 अगस्त 1966 को सत्र न्यायालय देवरिया ने अंबिका चौधरी को उम्र कैद की सजा सुनाई।
हाईकोर्ट ने भी 26 फरवरी 1969 को सुनाए गए अपने फैसले में उम्रकैद की सजा बरकरार रखा। तब से 52 वर्षों से अंबिका चौधरी जेल में कैद हैं। इस बीच इनकी पत्नी वीणा देवी, भाई छेदी चौधरी तथा सत्यदेव चौधरी की भी मौत हो गई।
मुरली चौधरी बताते हैं कि 1997 में एसपी के माध्यम से जेल से रिहाई का घर पर पत्र आया था, जिसमें साक्ष्य लेकर आने को कहा गया था। इसके बाद कई बार इनकी रिहाई का पत्र आया। पर बार-बार किसी ने किसी कारण से पूरी तरह से विक्षिप्त हो चुके अंबिका चौधरी की रिहाई का मामला टलता गया।
दो साल पूर्व राज्यपाल ने वाराणसी सेंट्रल जेल में इनफरमिटी रोल के आधार पर अंबिका चौधरी की रिहाई का अनुमोदन किया। राज्यपाल के अनुमोदन करने से यह उम्मीद थी कि अब उनके चाचा की रिहाई हो जाएगी। लेकिन अब तक उनकी रिहाई नहीं हो सकती है। परिजन उनके घर लौटने का इंतजार कर रहे हैं।

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